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________________ भनेकान्त रिसर्च स्कॉलरों, विश्व विद्यालयों, कालेजों, हायरसेकण्डरी वेदी, डा. विद्याधर जोहरापुरकर, डा. श्यामाचरण जी स्कूलों और लायनेरियों में इसे मंगाकर अवश्य पढ़ना दीक्षित, पं० बेचरदास जी, पं० सुखलाल जी संघवी, चाहिये । और श्रमण सस्कृति के अनुयायियों को आर्थिक स्व. डा० जायसवाल, स्व० डा. वासुदेव शरण अग्रवाल, सहयोग प्रदान कर अर्थ संकट से बचाना चाहिए । प्रो० पुष्कर शर्मा एम० ए०, स्व० बा० कामता प्रसाद जी, पाभार प्रदर्शन श्रीगोपाल वाकलीवाल एम० ए०, तेजसिंह जी गौड़ एम० अनेकान्त में अब तक जैन जैनेतर विद्वानों द्वारा लिखे ए० बी० एड, श्री रामवल्लभ सोमानी, प्रो. दुर्गाप्रसाद गये शोधपूर्ण महत्व के लेख प्रकाशित किये गए है। जिनकी जी दीक्षित एम० ए०, डा० टी० एन० रामचन्द्रन. डा. संख्या डेढ़ हजार से अधिक है और कविता, कहानी भी प्रभाकर शास्त्री, डा० गंगाराम जी गर्ग, डा. सत्यरंजन रुचिपूर्ण दी गई है। हम उन सब विद्वानों के विशेष बनर्जी, डा. ज्योतिप्रसादजी, डा० कमलचन्द जी सोगानी, आभारी हैं। जिन्होंने लेख भेजकर हमारी सहायता की मुनि श्री विद्यान वीर सेवामन्दिर के विद्वानो द्वारा अधिकाश लेख लिखे भगवत जैन, प्रो० उदयचन्दजी, क्षल्लक सिद्धसागरजी, पं. गए है। अनेकान्त के लेखक विद्वानों में से कितने कैलाशचन्द जी सि० शास्त्री, फूलचन्द जी सि० शास्त्री, ही विद्वान दिवंगत हो चुके है। उनमें स्व०प० जुगल डा० गोकुलचन्द जी, डा० नरेन्द्र भानावत, पं० के० भुजकिशोर जी मुख्तार, स्व. बा. सूरजभान जी वकील, बली शास्त्री, डा० नेमिचन्द शास्त्री, श्री नीरज जैन, डा. स्व. डा. महेन्द्रकुमार जी न्यायाचार्य, स्व० ५० नाथूराम देवेन्द्रकुमार जी, बा० सलेकचन्द जी, डा० भागचन्द जी जी प्रेमी बम्बई, स्व. बा. जयभगवानजी एडवोकेट पानीपत, साहित्याचार्य, डा. कस्तूरचन्द जी कासलीवाल, स्व०५० स्व. बा. छोटेलालजी कलकत्ता के नाम उल्लेखनीय है तथा चैनसुखदास जी, डा० राजारम जी, बाबू बालचन्द जी न्या० ५० दरबारीलाल जी कोठिया, पं० ताराचन्द जी एम० ए०, अगरचन्द जी नाहटा, भवरलाल जी नाहटा, एम. न्यायतीर्थ, परमानन्द शास्त्री, प० हीरालाल सि० शास्त्री, पं. माणिकचन्द जी न्यायाचार्य, जबप्रसाद जी जैन, पं. दीपचन्द जी पाण्डया और बालचन्द्र जी सिद्धान्त आनन्द प्रकाश जैन, डा. कैलाशचन्द जी, पं० अनूपचन्द जी न्यायतीर्थ, मुनि श्री नथमल जी, मुनि श्री नगराज जी, शास्त्री। वीर सेवामन्दिर के इन विद्वानों के अतिरिक्त निम्न मुनि श्री महेन्द्रकुमार जी, द्वितीय, पं. गोपीलाल जी अमर विद्वानों के नाम साभार उल्लेखित किये जाते है। डा. एम० ए०, प्रो० भागचन्द जी, प्रो. प्रेम सुमन जी, डा. ए० एन० उपाध्ये कोल्हापुर, डा. हीरालाल जबलपुर, प्रद्युम्नकुमार जी, बा० माणिकचन्द जी, पं० कुन्दनलाल मुनि कान्तिसागर जी, अयोध्याप्रसाद जी गोयलीय, प० जी, डा. रवीन्द्रकुमार जैन, साध्वी श्री मंजुला, साध्वी श्री मिलापचन्द जी कटारिया, पं० रतनलाल जी कटारिया, संघमित्रा, पं० नेमचन्द धन्नूसा जैन तथा कल्याणकुमार जी 'शशि' आदि । वंशीधर जी व्याकरणाचार्य बीना, पन्नालाल जी साहित्याचार्य, डा. प्रेमसागर जी, डा. दशरथ शर्मा एम० ए० इन लेखक विद्वानों की कृतियों से हम अनेकान्त को ड़ी० लिट्, प्रो. कृष्णदत्त वाजपेयी, एस० वी० गुप्ता, डा. प्रकाशित कर सके है। इसके लिए हम उनके पुनः पुनः वी० एन० शर्मा, कालिकाप्रसाद जी एम० ए० व्यारणा- आभारी है । और प्राशा करते है कि इन सब विद्वानों का चार्य, श्री काका कालेलकर जी, पं. बनारसीदास जी चतु- हमे पूर्ववत् सदा सहयोग मिलता रहेगा। सुभाषित-नहि पराग नहि मधुर मधु, नहि विकास का काल । अली-कली में बंधि रह्यो, प्रागे कौन . गल ॥ निपट प्रबुध समुझत नहीं, बुधजन बचन रसाल । कबहुं भेक नहिं जानता, अमल-कमल बस वास ।।
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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