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________________ अनेकान्त पौरपं० परमानन्द जी शास्त्री परमानन्द जी को भी सम्मिलित कर लिया गया । वस्तुतः अपभ्रंश भाषाका जंबूस्वामीचरिउ पौर कविवीर १३प्रारम्भ से ही परमानन्द जी प्रकाशन व सम्पादन का द्रव्यसंग्रहकै कर्ता और टीकाकारके संबंध में विचार १९ समूचा भार वहन करते रहे हैं। प्राज भी उन्हें इस कार्य मध्यभारत का जैन पुरातत्त्व १६-१-२-५४ ।। में और कोई दूसरा विद्वान सहयोग नही देता। यथार्थ में क्या द्रव्यसग्रहके कर्ता व टीकाकार समकालीन नहीं हैं? वे भनेकान्त के लिए प्राण हैं । उनके बिना अनेकान्त में श्रमण संस्कृति के उद्भावक ऋषभदेव १६, १-२, २७३ प्राण प्रतिष्ठा बनी रहने की न सम्भावना पहले थी और अग्रवालोंका जैन संस्कृतिमे योगदान वर्ष २०, ३, ६८, २०, न पाज भी है। इस वृद्धावस्था में भी वे कुशल शिल्पी ४, १७७, २०, ५, २३३, २१, वर्ष २१ , ४६, २, की भांति साहित्य सृजन करते हुए भी अनेकान्त के ६१, ४, पृ० १८५ सम्पादन व प्रकाशन में जुटे हुए हैं। ग्वालियर के तोमर राजवंश में जनधर्म २, १-३३ विद्वज्जगत परमानन्द जी की सूक्ष्मेक्षिका से भली- भ० विनयचन्द के समय पर विचार २०, १, ३० भांति परिचित है। उन्होने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश तथा ब्रह्म जीवंधर और उनकी रचानाएं १७, ३, पृ० २४ हिन्दी के अनेक प्राचार्यों का काल निर्धारण किया एव कवि वल्ह या चिराज वर्ष १६ कि. ६, २५३ उनके कृतित्व व व्यक्तित्व पर असाधारण रूप मे शोध- ब्रह्म नेमिदत और उनकी रचनाएं १८, २, ८२ खोजकर प्रथमतः प्रकाश डाला। इतिहास, सस्कृति और भगवान पार्श्वनाथ वर्ष १८ कि. ६ पृ. २६९ भाषा पर उनका अधिकार है । अनेक शिलालेखों का हेमराज नाम के दो विद्वान वर्ष १८ कि. पृ. १३५ सम्पादन कर उन क्षेत्रों की ऐतिहासिकता आदि पर पूर्ण चित्तौड का दिगम्बर जैन कीर्तिस्तम्भ २१, ४, १७६ विचार किया है। महाकवि रइधू व कवि वीर के कृतित्व व छोहल २१-३-१२६ व्यक्तित्व पर सर्वप्रथम शास्त्री जी ने ही लेखनी चलायी। सीया चरिउ एक अध्ययन २१, ३, १३७ उसके बाद तो इन विषयों पर विद्वानों ने प्रबन्ध लिखकर जैन समाज की कुछ उपजातियाँ २२-२-५० PH. D. आदि उपाधिया भी ली। जैन रासा साहित्य, ग्वालियर के काष्ठासंघी भट्टारक २२-२-६४ अग्रवालों का जैन सस्कृति में योगदान, आदि लेख भी रासासाहित्य एक अध्ययन महत्वपूर्ण है। वस्तुतः परमानन्द जी का प्रत्येक लेख नई शुभकीति और शान्तिनाथ चरित्र २१, २, ९० दृष्टि और नई सूझबझ को लिए हए रहता है। तन, मन, अयोध्या एक प्राचीन ऐतिहासिक नगर १७, २, ७८ घन वे से साहित्य सृजन करनेमे जुटे हुए है। अनेक ग्रन्था- कविवर द्यानतराय ११, ४-५ गारों को देखकर उन्हे व्यवस्थित करना तथा नये ग्रन्थों अमरचन्द्र दीवान १३, ८, पृ. १९८ और ग्रन्थकारो पर निबन्ध लिखना उनका लक्ष्य बनचुका है। अतिशयक्षेत्र चन्द्रवाड़ वर्ष ८-६, ३४५ अनेकान्त मे अभी तक, अनेक ग्रन्थों के लेखन, सम्पा- कविवर भूधरदास और उनकी विचारधारा दन समालोचन व अनुवादन के अतिरिक्त, उनके द्वारा श्वेताम्बर कर्म साहित्य और दि० पंच संग्रह ३-६-३७५ लिखित कुछ खास निबन्धों की एक तालिका दी जाती है। राजा हरसुखराय १५-१ पृ. ११ जो निबन्ध प्रकाशित हुए हैं। पउमचरिय का अन्तः परीक्षण ५-१-३८ कुछ प्रमुख लेखों की सूची अर्थप्रकाशिका और ५० सदासुख जी ३, ८-६-५१४ धारा और धाराके जैन विद्वान वर्ष १३, ११-१२ पृ. २८ सिद्धसेनके सामने सर्वार्थसिद्धि और राजवार्तिक ३-११-६२६ हूंमड या हुंबड वंश और उसके महत्वपूर्ण कार्य १३-५-१२३ तत्वार्थसूत्र के बीजों की खोज वर्ष ४ कि. १ पृ. ६२३ कविवर ठकुरसी और उनकी रचनाएं १४-१ पृ. १० जयपुर में एक महीना ६, १०-११, ३७२ कसाय पाहुड और गुणधराचार्य वर्ष १४-१ पृ.८ शिवमूर्ति, शिवार्य पौर शिवकुमार ७, १, १७ रूपक काव्य परम्परा वर्ष १४ कि.पू. २५६ सुलोचना चरित और देवसेन ७, ११-१२, पृ. १५६
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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