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अनेकान्त
पंक्तियां हैं। एवं ९३ श्लोक पोर कुछ गद्य भाग है। इसका मूल पाठ इस प्रकार पढ़ा जाता है :प्रारम्भ के २८ श्लोकों मे चौहानों की वंशावली दी हई
॥ई०।। ऊ । अर्हद्भ्यो नमः । स्वायं भूवं चिदानंद है जो अधिकांशतः अन्य शिलालेखों से मिलती है। लेख स्वभावें शाहवतोटा। शा
स्वभावें शाश्वतोदयम् । घामध्वस्ततमस्तोमम्मेयं महिम में यह भी वणित है कि पार्श्वनाथ मन्दिर को मोराक्षरी
स्तुमः ॥१॥ ध्रौव्योपेत मपि व्ययोदय यूतं स्वात्मस्थमध्यागांव पृथ्वीभट द्वितीय ने दिया और सोमेश्वर ने रेवाणा त्मकं लोकव्यापि परं यदेकमपि चानेक सूक्ष्म महत, प्रानंदागांव दिया। इसके बाद लोलाक श्रेष्ठ का वर्णन है।
मृतपूरपूर्णमपियच्छन्य स्वसदेवनम् ज्ञानाद्गम्यमगम्यमप्य(ii) दुसरा बड़ा लेख उन्नत शिखर पुराण का है। भिमतप्राप्त्यै स्तुवे ब्रह्मतत्।।शात्वकर्म सोमो वृत(भूत)जगती इसमें कुल २६४ श्लोक खुदे हुए थे। किन्तु अब एक तलेऽस्मिन्धनान मूत्तिः किमविश्वरूपः । स्रष्टा विशिष्टार्थ शिला पर ३१ श्लोक हैं और दूसरी पर २७६ से २६४ विभेददक्षः स पाश्र्वनाथस्तनुताश्रिय वः ॥३॥ स पावतक मिलते है यह लेख वहाँ के स्थानीय अधिकारियों द्वारा ज्ञात हुआ था कि प्रकाशित हो चुका है। इसलिए येन पदार्थसार्था निजे (न) सज्ञान विलोचनेन ॥४॥ इसकी पूरी नकल नहीं की जा सकी। इसके शुरू के सवृत्ताः खलु यत्र लोक महिता मुक्ता भवंतिश्रियोःरत्ना४ श्लोकों में स्तुति है। ५ श्लोक टूटा हुआ है। इसमे नामपि भद्रये सुकृतिनो यं सर्वदोपासतेः सद्धर्मामृतपरपृष्टकिसी नगर का वर्णन है [श्री मद्राज न......नाम नगरं सुमनाः स्याद्वादचंद्रोदयाः काक्षीसोऽत्र सनातनो विजयते वसुधातले। प्रसिद्धम भवत् पुण्य वीतरीति जनावृत्त मूलसघोदधिः ॥५॥ श्रीगौत्तमस्वामिगणेशवशे श्री ॥६॥ यहाँ के कई देवालयों का वर्णन भी मिलता है। कुदकुदोहिमुनिर्बभूव पदेष्व नेकेषगतेषतस्माच्छी धर्मचंदो 'पूज्यंते परया भक्त्या सर्वसिद्धिप्रदो जिनः" कह कर गणिषु प्रसिद्धः॥ भवोद्भवपरिश्रमप्रशम केलिकोतहली स्थानीय क्षेत्र में प्रचलित जैन धर्म के प्रति श्रद्धा एवं सुधाकरसमः सदाजयति य द्वचःप्रकृमः । समेमुनिमतल्लिका भक्ति का उल्लेख भी किया है। आगे के श्लोकों मे जो विकचमल्लिका जित्वर प्रसृत्वर य सोभरो भवतु रत्नचित्र खीचा गया है उसमें बड़ा अलंकारिक वर्णन है। कीतिर्मुदे (ने) ७॥ दूसरी शिला में भगवान पार्श्वनाथ के सम्बन्ध में वर्णन यह पूरा लेख १५ पद्यों का है जिसमें भ० धर्मचन्द्र, है। अंत में इस प्रकार लिखा है “इति सिद्धेश्वर विरचित भ० रनकोति, प्रभाचन्द्र, पद्म नन्दि, शुभचन्द्र और शुभचन्द्र उन्नत शिखर पुराणे पंचमः सर्ग ॥ लिखापितं श्रीध...... के शिष्य हेमकीर्ति का उल्लेख है । यह लेख स० १४६५ पुत्र लालाकेन लिखितं । संवत् विक्रमादित्यकाले द्वादशशत फाल्गुनसुदि २ बुधवार का उत्कीर्ण किया हमा है। ऊपर घड़ विशाविक गते फाल्गुणवदि दशम्यां......" पाश्र्वनाथ जितना जल्दी में पढ़ा जा सका, दिया गया है । इसका मन्दिर का उक्त लेख वि० स० १२२६ फाल्गुण वदि ३ पुनः पढा जाना आवश्यक है। का है और यह लेख उससे ७ दिन बाद का ही है। यह इस लेख में मुनि पद्मनन्दि के शिष्य भ० शुभचन्द्र का लेख मुझे जहाँ तक जानकारी है अभी तक छपा नहीं है। उल्लेख है, सभवतः इन्हीं शुभचन्द्र द्वारा दीक्षित शिष्या
नरोप प्रार्या लोकसिरि विनयश्री और शिक्षिका वाई चारित्रश्री गया है। इसमें १. सर्वश्री वसंतकीर्तिदेव २. विशाल तथा चारित्रधी की शिक्षिणी वाई पागमश्री का भी नाम कीतिदेव ३. शुभकीर्तिदेव ४. धर्मचन्द्रदेव ५. रत्नकीति- दिया है। लेख महत्त्वपूर्ण है। देव ६. प्रभाचन्द्रदेव ७. पचनन्दिदेव ८. शुभचन्द्रदेव और इस प्रकार इस क्षेत्र में मोर भी कई लेख मिलते हैं। कुछ साध्वियों के नाम हैं। इसमें कुल ५ श्लोक और इनकी शोधयात्रा बहुत ही भावश्यक है । गत वर्ष जहाजकुछ गद्य भाग है।
पुर में भी दिगम्बर जैन लेख देखे थे जिन्हें वीर वाणी में (iv) सूरह लेख-यह लेख अब तक छपा नहीं है। मैंने प्रकाशित कराये हैं।