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________________ सम्पादकीय 'अनेकान्त' जैन संस्कृति और साहित्य तथा ऐतिहासिक विषय की द्वैमासिक पत्रिका है । जन वाङ्मय में उसे जो अप्रकाशित और अनुपलब्ध रचनाएं मिली हैं। अनेकान्तमें केवल उनका परिचय ही प्रस्तुत नहीं किया गया, प्रत्युत उनके अन्त: रहस्यका उद्घाटन करते हुए ऐतिहासिक गुत्थियों को सुलझानेका उपक्रम किया है। समाज को चाहिए कि वह ऐसे उपयोगी पत्रको अपना सहयोग प्रदान करे । अनेकान्त के इस अंक से पाठक उसकी महत्ता को अवगत करेंगे। उससे उन्हें यह सहज ही ज्ञात हो सकेगा कि अनेकान्त में अब तक जो महत्व के लेख प्रकाशित हए हैं। उनका परिचय पाठको को तथा ऐतिहासिक विद्वानों को सहज ही मिल सकेगा। इसमें उनके लेखों और लेखकों की भी तालिका मिलेगी। साथ ही, वीर-सेवा-मन्दिर द्वारा अब तक की शोध खोज का कार्य भी प्रस्तत किया गया है। उसका भी दिग्दर्शन हो सकेगा। और यह ज्ञात हो सकेगा कि वीरसेवामन्दिर ने जैन साहित्य प्ररि इतिहास के बारे में कितनी सामग्री संकलित कर उसका परिचयादि अनेकान्त द्वारा दिया है। वीरसेवामन्दिर इतिहास और साहित्य जैसे महत्वपूर्ण कार्य में तो अपनी शक्ति लगाता ही है, किन्तु जैन संस्कृति के पुरातात्विक अवशेषों, प्रशस्तियों, ताम्रपत्रों, शिलालेखों और हस्तलिखित प्रन्थों का भी संकलन करने में तत्पर है। अनुपलब्ध और अप्रकाशित ग्रंथों के संरक्षण की यहां पूर्ण सुविधा है । जो महानुभाव अपने यहां के हस्तलिखित ग्रन्थों को प्रदान करना चाहें वे वीर-सेवामन्दिर में भिजवा दें, या हमें उनकी सूचना दें। हम उनका संरक्षण सावधानी के साथ करेंगे। अनेकान्त के इस अंक के प्रकाशन में बहुत अधिक बिलम्ब हो गया है। पाठकगण काफी समय से उसकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। हमें इस बात का खेद है कि हम उनकी प्राशा समय पर पूरी न कर सके । किन्तु भविष्य में हम उसे समय पर प्रकाशित करने का प्रयत्न अवश्य करेंगे । अनेकान्त के लेखक विद्वानों के हम बहुत आभारी हैं जिन्होंने अपनी रचनाए भेजकर हमें अनुगृहीत किया है। हम खास कर पं० गोपीलाल जी अमर के विशेष आभारी हैं, कि जिन्होंने हमें इस अंक में पर्याप्त सहयोग प्रदान किया है। प्राशा है भविष्य में उनसे और भी अधिक सहयोग मिलेगा। -परमानन्द जैन अनेकान्त पर अभिमत 'अनेकान्त' ने जैन साहित्य के शोध क्षेत्र में जो सेवाएं की हैं वे भारतीय साहित्य के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में उल्लेखनीय होंगी। जैन समाज की जागृति एव विकास के साथ-साथ रूढ़िवादिता से समाज को मुक्ति दिलाने में 'भनेकान्त' के प्राण पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार की सबल लेखनी ने जो उत्क्रांति पैदा की थी वह सर्व विदित है। मुख्तार सा० ने इसका जो बीजारोपण किया था उसे अपने ही समय में पल्लवित और पुष्पित होता हमा देखा था। 'भनेकान्त' ने जैन समाज को प्रगति और उत्थान का पथ प्रदर्शन किया था। 'अनेकान्त' के विकास मौर निर्माण में जिन व्यक्तियों ने अपना सर्वस्व बलिदान किया उनमें पं. परमानन्द जी, पं. दरबारीलालजी कोठिया, बाबू छोटेलाल जी तथा बाबू जयभगवान जी के नाम सर्वथा उल्लेखनीय एवं चिरस्मरणीय हैं। वीर प्रम से कामना है कि 'अनेकान्त' दिन प्रतिदिन प्रगति करता रहे। -कुन्दनलालजन प्रिन्सिपल
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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