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प्रोम् महम्
अनेकान्त
परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमपनं नमाम्यनेकान्तम् ।।
वर्ष २२ । किरण ३-४ ।
वीर-सेवा-मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली-६ वीर निर्वाण सवत् २४६५, वि० सं० २०२६
(अगस्त और अक्टूबर १९६६
श्री पार्श्वनाथ जिन-स्तुति
कविवर बनारसीदास
निरखत नयन भविक जल वरखत, हरखत प्रमित भविक जन सरसी। मदन-कदन-जित परम-धरम हित, सुमिरत भगत भगत सब उरसो। सजल-जलद-तन मुकुट सपत फन, कमठ दलन जिन नमत बनरसी।
सवैया ३१सा
जिन्ह के वचन उर धारत जुगल नाग भये परनिंद पदमावतो पलकमें। जाको नाम महिमा सों कुधातु कनक करे पारस पखान नामी भयो है खलकमें। जिन को जनमपुरी नाम के प्रभाव हम अपनों स्वरूप लल्यो भानुसौ भलकमें। तेई प्रभु पारस महारस के दाता अब, अब दीजे मोहि साता हग लोलाको लालकमें ।