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________________ अनेकान्त ६६ का उल्लेख करने वाले उन सिद्धसेन को प्रथम बतलाया गया है, जिन्होंने अपने न्यायावतार में प्रतिज्ञा ( पक्ष ), हेतु और दृष्टान्त इन तीन धनुमानावयवों का स्पष्टतया निर्देश किया है। आगे चलकर लेखक ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जैन तार्किकों मे अधिकांश का यह स्पष्ट मत है कि विजिगीषु कथा (वाद) में तो प्रतिज्ञा और हेतु ये दो ही अनुमान के अवयव पर्याप्त है, पर वीतराग कथा - तात्त्विक चर्चा - मे प्रतिपाद्य ( श्रोता ) के अभिप्रायानुसार तीन, चार और पांच भी वे माने जा सकते हैं - उनकी कोई नियत सख्या निर्धारित नही की जा सकती । में यहाँ हेतुभेदों की भी चर्चा की गई है व उनका स्पष्टीकरण तालिकाओं द्वारा किया गया है । पांचवें अध्याय में अनुमानाभास का विचार करते हुए साध्याभास, साधनाभास और दृष्टान्ताभास आदि दोषों का भी अच्छा विचार किया गया है । अन्त में उपसहार करते हुए जैन दृष्टिकोण के अनुसार सभी प्रमाणों का अन्तर्भाव प्रत्यक्ष और परोक्ष इन दो ही प्रमाण भेदों मे किया गया है। इस प्रकार अनुमानविषयक सभी चर्चनीय विषयों से संकलित प्रस्तुत ग्रंथ अतिशय उपयोगी प्रमाणित होगा । अनुमानविषयक इतनी विशद और विस्तीर्ण चर्चा सम्भवतः अन्यत्र दृष्टिगोचर नही होगी। इसके लिए लेखक और प्रकाशक धन्यवादाह है। पुस्तक की छपाई नौर साज-सज्जा प्रादि भी आकर्षक है । ऐसे उपयोगी ग्रंथ का सार्वजनिक पुस्तकालयों और जिनमन्दिरों मे अवश्य ही संग्रह किया जाना चाहिये । - बालचन्द सिद्धगत शास्त्री इसी अध्याय के द्वितीय परिच्छेद मे हेतु का विचार करते हुए उसके विविध तार्किकों द्वारा माने गये द्विलक्षण, षड्लक्षण और सप्तलक्षण; इन हेतुलक्षणों का उल्लेख करते हुए उनकी समीक्षा के साथ यह बतलाया गया है कि जैन ताकिकों ने अविनाभाव या अन्यथानुपपत्ति रूप एक लक्षण ही हेतु का निर्दोष स्वरूप स्वीकार किया है, अन्त वीर सेवामन्दिर में वीरशासन जयन्ती सानन्द सम्पन्न २६ जुलाई दिन मंगलवार को प्रातः काल ८ बजे वीरशासन जयन्ती महोत्सव बाबू यशपाल जी की अध्यक्षता में सानन्द सम्पन्न हुया । परमानन्द शास्त्री के मंगलाचरण के बाद दि० जैन महिलाश्रम की छात्राओंों का मधुर भजन हुआ पश्चात् पं० बालचन्द जी सिद्धान्त शास्त्री, ला० प्रेमचन्द जी जैनावाच, पं० मथरादास जी शास्त्री, प्रिन्सिपल समन्तभद्र महाविद्यालय और अध्यक्ष बा० यशपाल जी सम्पादक जीवन साहित्य के महत्वपूर्ण भाषण हुए । भाषणों में भगवान महावीर के शासन की महत्ता ख्यापित करते हुए उनके सर्वोदयतीर्थ का प्रवर्तन सबके अभ्युदय के लिए हुआ । यह कम लोग ही जानते हैं, महावीर केवल जैनियों के नहीं थे । उनका उपदेश विश्व कल्याण की भावना से ओत-प्रोत था, उससे दानवता हटी और मानवता का स्वच्छ वातावरण लोक में प्रसारित हुआ । हिंसा पर रोक लगी, और पाप प्रवृत्तियों से बुद्धि हटी, संसार के सभी जीवों को सुख-शान्ति का मार्ग मिला। उनके शासन में ऊँच-नीच का भेद भाव नहीं था इसी से मानव के सिवाय पशुओं तक को प्राश्रय मिला। सभी ने उनकी वाणी का पान कर श्रात्मलाभ लिया । महावीर शासन के अहिंसा और अपरिग्रह विश्व कल्याण करने वाले सिद्धान्त हैं उनका जीवन में विकास आवश्यक है । अन्त में मंत्री जी ने उपस्थिति की कमी को महसूस करते हुए कहा कि आगामी वीरशासन जयन्ती का उत्सव प्रातःकाल की बजाय सायंकाल मनाया जायगा, जिससे उत्सव में भाग लेने वाले सभी महानुभाव समय पर पधार सकें। दूसरे उत्सव को रोचक बनाने के लिए और भी सांस्कृतिक कार्यक्रमों पर विचार किया जायगा । मंत्री जी ने समागत सभी सज्जनों को धन्यवाद दिया और भगवान महावीर की जयध्वनिपूर्वक उत्सव समाप्त हुआ । प्रेमचन्द जैन मंत्री बोरसेवा मन्दिर
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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