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________________ अनेकान्त है। प्रनगार और सागार प्रकरण में उभय धर्मों का कयन लाल जी पाटनी और केशरीमल जी पाटनी (महामंत्री भी अच्छा दिया हैं। और अन्तिम प्रकरण विधि-विधान उक्त सघ) धन्यवाद के पात्र हैं।। में प्रजादिक के अनुष्ठान के साथ प्रतिष्ठा विधि मत्र-तत्र- ३. प्रादि-मानव (भगवान ऋषभदेव)-लेखक लाला विषयक साहित्य का परिचय कराते हुए उनकी कृतियों महेन्द्रसेन जैन, प्रकाशक अग्रवाल दि० समाज दिल्ली। का सक्षिप्त विवरण दिया है। इस तरह यह ग्रंथ बहुत लेखक ने भगवान ऋषभदेव का परिचय कराते हए उपयोगी हो गया है, प्रकाशन साफ और सुथरा है । इसे उनके सिद्धान्तों का सरल भाषा मे परिचय कराने का मगाकर पढ़ना चाहिए। इस सब कार्य के लिए मेहताजी प्रयत्न किया है। पुस्तक की भाषा जहां सरल है वहाँ धन्यवाद के पात्र हैं । सचालक समितिका प्रयास भी समा- सुबोध भी है। ग्राशा है लेखक महोदय आगे और भी दरणीय है। कोई पूस्तक लिखने का कप्ट करेगे। समाज को प्राज २. ग्वालियर जन निर्देशिका-प्रधान सम्पादक प्रो. सरल सुबोध भापा वाली पुस्तको की जरूरत है, जिसमे नरेन्द्रलाल जैन एम. कॉम, साहित्यरत्न, सहसम्पादक श्री जैन संस्कृति का परिचय निहित हो। लेखक का प्रयास कपूरचन्ब जी वरैया। प्रकाशक वर्द्धमान दि० जैन नव - सराहनीय है । पुस्तक लेखक से मगा कर पढना चाहिए। युवक संघ डीडवाना अोली लश्कर । -परमानन्द शास्त्री प्रस्तुत निर्देशिका २०४३० पाटपेजी साइज के ___४. जैन तर्कशास्त्र में अनुमान-विचार-(ऐतिहासिक १६८ पृष्ठों मे मुद्रित है जिसमे ग्वालियर के ७००० हजार जैनियों का परिचय प्रकित किया गया है नवयुवक एव समीक्षात्मक अध्ययन) ले० डॉ० दरबारीलाल जैन कोठिया, प्रकाशक-वीर-सेवा-मन्दिर ट्रस्ट, पृष्टसख्या सघ के कार्यकर्तामौ ने इस रूक्ष विषय को सरस बनान के २६६, डिमाई, मूल्य १५ रुपये। लिए अनेक प्रयत्न किये है। यह निर्देशिका दि० श्वेताम्बर स्थानकवासी और तेरापंथी समाजो की है। जिसमे निया प्रस्तुत अथ श्री डॉ० दरबारीलाल जी के द्वारा 'पी० द्वारा संस्थापित शिक्षा संस्थाएँ, औषधालय धर्मशालाए, एच० डी०' उपाधि के प्राप्त्यर्थ शोध-प्रबन्ध के रूप में पुस्तकालकय, वाचनालय, जैन छात्रावास और सभी लिखा गया था, जिसे काशी विश्वविद्यालय ने स्वीकार सास्कृतिक संस्थाओ का परिचय दिया है। साथ ही कर उन्हे उनकी विद्वत्ता के अनुरूप उक्त उपाधि प्रदान ग्वालियर के अतीत के इतिहास पर भी कुछ पृष्ठ की है। डॉ० कोठिया जी न्यायशास्त्र के माने हुए विद्वान् लिखे है। जिन पर मेरे लेख की स्पष्ट छाप है। जन है। उन्होने जैन न्याय के अतिरिक्त बौद्ध, मीमासक, गणना से यह भी प्रतीत होता है कि ग्वालियर मे वत- साख्य, नैयायिक, वैशेषिक एव चार्वाक प्रादि इतर प्राचीन मान में खडेलवाल, अग्रवाल परवार, गोनापूर्व गोलालारे, दर्शनों के भी विविध तर्क ग्रन्थों का गम्भीर अध्ययन किया गोलासिंघारे, लेबकचुक, वरैया हमड आदि विविध है। उसी के बल पर वे ऐसे महत्त्वपूर्ण सुन्दर ग्रन्थ के जातियो का निवास है। १४वी १५वी शताब्दी मे वहा लिखने मे पूर्णतया सफल हुए है। अग्रवालो की सम्पन्नता थी। ग्वालियर किले में उत्कीर्ण प्रकृत ग्रन्थ पांच अध्यायों और उनके अन्तर्गत अनेक सभी मूर्तिया डूगर सिंह और कीर्तिसिह के राज्यकाल मे परिच्छेदों में विभक्त है। उनमे से प्रथम अध्याय में यह अग्रवालो की प्रेरणा एव दानशीलता का परिणाम है। स्पष्ट किया गया है कि प्राचीन काल में बौद्ध, नैयायिक, दुःख है कि आज वहा की समाज उनका जीर्णोद्धार कराने वैशेषिक, मीमासक, सांख्य और जैन परम्परा में इस अनुमें भी असमर्थ है। प्राशा है समाज के नवयुवक अपनी मान का क्या रूप रहा है और तत्पश्चात् उसमें फिर पुरातन सास्कृतिक वस्तुओं की रक्षा करेगी । निर्देशिका मे उत्तरोत्तर किस प्रकार से विकास हुआ है। इसके अति. जाति परिचय और मूर्तिलखो का न होना खटकता है। इस रिक्त इस अध्याय में अनुमान के स्वरूप, उसके भेद, सब कार्य के लिए वर्धमान नवयुवक सघ और प्रेरक मिश्री. अवयव और तद्गत दोषों की भी संक्षेप में चर्चा की गई
SR No.538022
Book TitleAnekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1969
Total Pages334
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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