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________________ "हूँड़े" ग्राम का अज्ञात जैन पुरातत्त्व प्रो० भागचन्द्र जैन "भागेन्दु", एम. ए., शास्त्रो भारतीय इतिहास, संस्कृति, कला और पुरातत्त्व को संस्कृति का अत्यन्त समृद्ध केन्द्र रहा प्रतीत होता है। समृद्ध बनाने में मध्य प्रदेश का योगदान अत्यधिक महत्त्व- ग्राम के पूर्व में 'संन्यासियों का मठ' तथा तालाब, पश्चिम पूर्ण है। मध्यप्रदेश में वैदिक, जैन और बौद्ध सस्कृतियाँ में "सिद्धों का मठ" एव दक्षिण मे 'सुरई' (शिवरयुक्त) प्राचीन काल से ही पल्लवित, पुष्पित और विकसित हुई, नामक बावडी और उसी के निकट एक कलापूर्ण शिवउनमें से अनेक स्थानों का सर्वेक्षण, अन्वेषण और अनु- मन्दिर विद्यमान है। शोलन समय-समय पर विभिन्न मान्य विद्वानों और पूरा- प्रस्तुत निबन्ध मे विशेषरूप से इस ग्राम के प्राचीन तत्त्व प्रेमियों द्वारा किया कराया जा चुका है। किन्तु जैन पुरातत्त्व का अनुशीलन किया जा रहा है .स्थानों की दूरवर्तिता' अगम्यता, दुरूहता, मार्गों और १. तालाब-इसके उत्तरीय बाध पर वटवृक्ष के आवागमन के साधनो के अभाव, वन्य पशुओं और दस्युरो नीचे एक चबूतरे पर कुछ अजैन और जैन मूर्तियों के आदि के उपद्रवो तथा आतंकों के कारण बहुत से स्थानो अवशेष रखे है । अजैन परम्परा मे शिवलिग, नादी हनका सर्वेक्षण, अनुशीलन और अध्ययन अभी भी शेष है। मान के धड से ऊपर का भाग, तथा कुछ अन्य देवियो के सुरक्षा के प्रभाव, काल के क्रूर-प्रहार और स्थानीय जनता खडित अथ रखे है। जैन परम्परा में आदिनाथ और की अनभिज्ञता तथा उदासीनताके कारण ऐसे ही महत्त्व के पाश्वना पर पार्श्वनाथ है :-- बहुतसे स्थान नष्ट हो गये है एव होते जा रहे है । ऐसे स्थानो (म) प्रादिनाथ-पद्यामन में, ध्यानमुद्रा से ऊपर के सर्वेक्षण, अध्ययन और अनुशीलन से भारतीय इतिहास, का अंश खण्डित । ऊंचाई दस इच, चौड़ाई एक फुट संस्कृति, कला और पुरातत्त्व के क्षेत्र मे अनेक नवीन दस इच । कमलासन पर आसीन । इस मूर्तिखण्ड के पादउन्मेष होंगे। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में टुंडा" ग्राम पीठ में (दाये) गोमुख यक्ष' तथा बा चक्रेश्वरी यक्षी' भी ऐसा ही स्थान है, जो अब तक पुरातत्त्वज्ञो की दृष्टि १. "सव्येतरोलकरदीप्रपरश्वधाक्षसे प्रोझल है, किन्तु अपने समृद्ध और गौरवपूर्ण अतीत के सूत्र तथा-घरकराकफलेप्टदान । लिए उल्लेखनीय है। प्राग्गोमुख बृषमुख वृपग वृषाक भक्त यजे कनकभ वृषचऋशीर्षम् । ढूंसा-यह ग्राम वर्तमान मध्य प्रदेश के पन्ना जिले -प० प्राशाघर प्रतिष्ठासारोद्धार, बम्बई, वि० स० में स्थित है। इस ग्राम के निकट से ही जबलपुर जिले १६७४, प्र० ३ पद्य १२६ । की सीमाएँ प्रारम्भ होती है। यहा पहुँचने के लिए मध्य २. "भर्माभाद्य करद्वयालकुलिशा चक्राकहस्ताष्टका, रेलवे के कटनी-बीना लाइन के रीठी स्टेशन उतरना सव्यासव्यशयोल्लसत्फलवरा यन्मूर्ति रास्ते बुजे । चाहिए। वहाँ से यह स्थान लगभग पाठ मील दूर है। ताक्ष्ये वा सह चक्रयुग्मरुचकत्यागश्चतुभिः कर., कटनी से सलया जाने वाली पक्की सड़क पर पटोहा और पचेष्वास शतोन्नतप्रभुनता चक्रेश्वरी ता यजे ॥" रीठी से भी यहां पहुंचने के लिए रास्ते है। वहाँ से यह -प० पाशाघर, वही अ० ३, ५० १५६ । क्रमशः पांच और माठ मील उत्तर में है। यहाँ जीप, इस यक्षी के लक्षणों के लिए और भी देखियेसाइकल और बैलगाड़ी से पहुंचा जा सकता है। यहाँ की (i) यतिवृषभः तिलोय पण्णत्ति, ४-६३७ जनसंख्या लगभग १५०० है यह पाम जैन और वैदिक (ii) नेमिचन्द्रदेवः प्रतिष्ठा तिलक, ७-१ प्रादि ।
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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