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________________ अनेकान्त का लघ प्राकृतियों में सुन्दर अंकन है स्तम्भ कृतियो के हमा। ग्रामवासियों की श्रद्धा-भावना के कारण ही यह मध्य शार्दूल दिखाये गये हैं। पादपीठ में भक्तिविभोर मठ जिस किसी रूप में सुरक्षित रहा प्रतीत होता है। श्रावक-श्राविका भी दर्शनीय है। यद्यपि इसका अधिकांश धराशायी हो चुका है किन्तु (ब) पाश्र्वनाथ-कायोत्सर्गासन में, ऊँचाई दो फीट इसका मण्डप, प्रवेशद्वार तथा महामण्डप के कुछ खम्भे चार इच, चौडाई ६ इव । यद्यपि पापाण मे दरार पड़ और दीवारों के कुछ प्रश अब भी अपने मूलरूप में मौजूद जाने से इस मूर्ति का अग्रभाग गिर गया है तथापि फणा- हैं। यह सपाट छत (Flat rooted) का जैन मन्दिर वली से स्पष्ट है कि यह मूर्ति पार्श्वनाथ की थी। इस था, इसकी स्थिति तथा सामग्री के आधार पर स्पष्ट कहा मूर्ति के दोनो पावों में भक्तिमग्न श्रावकयुगल चवर जा सकता है। मठ के पिछले हिस्से के गिर जाने से दुरा रहे है। यद्यपि अनेक मूर्तियाँ खडित हो गई हैं। बहुत सी पास(स) पार्श्वनाथ-इस प्रतिमा का केवल ग्रीवा से स पास के खेतों तथा झाडियों में जहाँ-तहाँ बिखरी पड़ी है। प ऊपर का भाग शेप है। ऊंचाई ६ इच, चौड़ाई एक फुट मठ के शिखर का प्रामलक या अन्य कोई चिन्ह दो इच । फणावली के अतिरिक्त तीर्थकर का मूख और यहाँ किसी भी रूप में नहीं है तथा मूर्तियों की कला के बायी पोर उडान भरता हमा मालाधारी विद्याधर तथा याधार पर इसे ईमा की सातवी-आठवी शती की कृति मध्य मे छत्रा कृतिया ही शेष है। शेष अग खण्डित हो माना जाना चाहिए । अग्रिम पक्तियों में इसी मठ तथा चुका है। यहाँ की उन मूर्तियों का सर्वेक्षण तथा अनुशीलन किया जा रहा है, जो जमीन मे नही दबी है। पास पास के २. सिद्धों का मठ खेतो में फैली हुई जैन-मूर्तियो तथा मठ की सामग्री में ग्राम के पश्चिम मे मौजुद यह मठ अब भी "सिद्धो का मडहा" कहा जाता है। इसके नाम, स्थापत्य एव दबी हुई या जमीन में दबी हुई जैन मूर्तियो का अनुशीलन नही किया जा सका है। शिल्प-सामग्री से स्पष्ट है कि यह प्राचीन जैन मन्दिर है। यद्यपि अब इस ग्राम में एक भी जैन धर्मानुयायी नही है, सबक्षण : तथापि इस मठ के आस-पास की जमीन अभी भी खेती सिखों का मठ (उत्तराभिमुख) मापके काम मे नही लायी जाती और ग्रामवासी विभिन्न अवसरों पर इसे बडी श्रद्धा के साथ पूजते हैं। इसके अधिष्ठानआसपास के भूभाग के विभिन्न नाम भी हमें इस स्थान पूर्व-पश्चिम-चौंतीस फीट । के वैभव तथा प्राचीनता आदि की अोर सोचने को बाध्य उत्तर-दक्षिण-पड़तीस फीट छह इच । करते है। जैसे-इसके पूर्व के एक बड़े खेत को अब भी प्रथम अधिष्ठान पर से द्वितीय अधिष्ठान की ऊँचाई एक फुट । 'तलैया' कहते है । तथा दक्षिण के बहुत बड़े भूभाग को मण्डपअब भी 'बाजार' कहा जाता है । इमसे सप्ट है कि पहले इम स्थान के अासपास अत्यन्त समृद्ध बस्ती थी। आसपास द्वितीय अधिष्ठान पर से मण्डप की ऊंचाई-सात के खडहगे से उसकी स्थिति अब भी अनुमित हो सकती फीट नौ इंच। __ मण्डप की चौड़ाई-सात फीट तीन इच । मण्डप मे इस मठ का सर्वेक्षण अभी तक नही हया और न ही मागे के मध्यवर्ती केवल दो स्तम्भ शेष है, जबकि पार्श्व इसकी शिल्प सामग्री की सुरक्षा का ही कोई प्रबन्ध के एक+एक-दो स्तभ टूट गये है किन्तु उनके स्थान अब भी मूल रूप में मौजूद है। परवर्ती चारो स्तभ सुरक्षित ३. मडहा, सस्कृत के 'मठ' शब्द का अपम्रश रूप है। हैं और दीवार के साथ सटे हुए है। इस मडप पर माज बुन्देलखण्ड मे आज भी 'मड़ा' शब्द बहुत प्रचलित है। भी सपाट छत अच्छी हालत में मौजूद है।
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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