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आगम ग्रन्थों के आधार पर : पारस्परिक विभेद में अभेद को रेखाएं
साध्वी कानकुमारी
मामयिक परम्परा और विधि-विधान रूढ बनकर विश्लेषण करते हुए कुछ लिखा गया है-प्राचीनकाल मे कितना दुप्परिणाम लाते है, इसका मजाव प्रमाण है जन- साधुप्रो के अनेक गण थे। व्यवस्था की दृष्टि से एक गण मपो का विभक्तिकरण ।
का साधु दूसरे गण मे नही जा सकता था। उसके कुछ भगवान महावीर ने विशाल संघ की मुविधा और अपवाद भी थे। अपवादिक विधि के अनुसार तीन कारणो मुव्यवस्था के लिए विभक्तिकरण की व्यवस्था दी। उस से भिन्न सामाचारिक गणो मे जाना विहित था। दूसरे समय वह व्यवस्था अत्यन्त प्रावश्यक थी, क्योकि तब गण मे जाने को उपसपदा कहा जाता था। उपसपदा के हजारो साधु-साध्विया एक ही महावीर के धर्म-सघ मे तीन प्रकार है-जानार्थ उपमपदा, दर्शनार्थ उपसपदा प्रवजित थे । वृहत्समुदाय का सुचारुरूप से सचालन करने और चारित्रार्थ उपसपदा। ज्ञानकी वर्तना (पुनरावृत्ति या के लिए अनेक सुयोग्य व्यक्तियो की अपेक्षा होती है । सब गुणन ) सपान (टित ज्ञान को पूर्ण करना ) और एक हो गण मे रहकर एक साथ योग्यता प्राप्तकर सके, ग्रहण के लिए जो उपसपदा स्वीकार की जाती उसे ज्ञानार्थ कम सभव था, इसलिए भगवान महावीर ने अपने वृहत्तर उपमपदा कहा जाता था। इसी प्रकार दर्शन की वर्तना धर्म-सघ को पृथक्-पृथक् गणों में विभक्त कर दिया। (स्थिरीकरण ) मन्धान और दर्शन विषयक शास्त्रो के
ग्रहण के लिए जो उपसपदा स्वीकार की जाती, उसे (दर्शधीरे-धीरे विभाजन का विस्तार हुप्रा और समय की
नार्य उपसपदा ) कहा जाता था। वैयावृत्य और तपस्या गति के साथ-साथ वह बृहतर सघ अनेक इकाइयो में बट
की विशिष्ट साधना के लिए जो उपसपदा स्वीकार की गया, फिर भी एक शृंग्वला मे प्रावद्ध था इसलिए उम सघ
जाती उसे ( चारित्रार्थ उपमपदा) कहा जाता था । ज्ञान, के सदस्य पृथक् गणो मे विभक्त होते हुए भी एक-दूसरे से
दर्शन और चारित्र की विशेप उपलब्धि के लिए दूमर गण निकट थे।
में जाना विहित था। मूल पागम और उनका व्याख्या-साहित्य इस बात का प्रमाण है कि उस समय के धर्म प्रवर्तको के पारस्परिक
निशीथभाप्य में पालोचना विषयक विवेचन प्रस्तुत सम्बन्धों में कोई दुगव नहीं था। भावनायो मे सकोणना करते हुए लिखा गया है कि मालोचना तीन प्रकार की पौर विचागे में रूढता नही थी। इसलिए वे प्रसाभौगिक, होती है। बिहार पाल
होती है। विहार मालोचना, उपमपदा पालोचना और अमाधामिक और भिन्न सामाचारिक सघों में अपने शिष्या
अपराध मालोचना । उपसपदा के तीन प्रकार है-ज्ञान को उपसपदा के लिए भेज देते थे।
उपसपदा, दर्शन उसपदा और चारित्रउपसपदा। उपसपदा आवश्यक नियुक्ति में उपसादा समाचारी का १. मावश्यक नियुक्ति गाथा ६९८ :
उवसपया ने तिविहा नाणे तह दसणे चरित्तय । यह मान्यता श्वेताम्बर सम्प्रदाय की है। भगवान महावीर ने सघभेद की कोई व्यवस्था नही दी । सघ.
दसणनाणे निरिहा दुविहाय चरित्त भट्ठाए। भेद तो महावीर निर्वाण के १७० वर्ष वाद भद्रबाहु २. निशीथ भाप्य ६३१०. पालोयणा तिविहा विहाराश्रुतकेवली के समय हुमा है ।
-सम्पादक लोयणा, उबसपयालोयणा अवराहालोयणा ।