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________________ प्रोम् अहम् अनेकान्त परमागमस्य बीजं निषिद्धजात्यन्धसिन्धुरविषानम् । सकलनयविलसितानां विरोषमयनं नमाम्यनेकान्तम् ।। वर्ष २१ ॥ वीर-सेवा-मन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली-६ वीर निर्वाण सवत् २४६४, वि० सं० २०२५ जून किरण २ - सन् १९६८ चिदात्म वन्दना चिदानन्दैक सद्धावं परमात्मानमव्ययम् । प्रणमामि सदा शान्तं शान्तये सर्वकर्मणाम् ॥१ खादि पञ्चक निमुक्तं कर्माष्टकविवजितम् । चिदात्मकं परं ज्योतिर्वन्दे देवन्द्रपूजितम् ॥२ यदव्यक्तमबोधानां व्यक्तं सद्बोध चक्षुषाम् । सारं यत्सर्ववस्तनां नमस्तस्मै चिदात्मने ॥३ -मुनि श्री पद्मनन्दि अर्थ-जिस परमात्मा के चेतन स्वरूप अनुपम अानन्द का मद्भाव है तथा जो अविनम्बर एव शान्त है उसके लिए मैं (पयनन्दि मुनि) अपने समस्तकों को शान्त करने के लिए मदा नमस्कार करता हूँ ॥१॥ जो आकाश आदि पाच (आकाश, वायु, अग्नि, जन और पृथिवी) द्रव्यो से अर्था। शरीर से तथा ज्ञानावरणादि पाठ कर्मों से भी रहित हो चुकी है और देवो के इन्द्रो से पूजित है ऐमी उम चैतन्यरूप उत्कृष्ट ज्योति को मै नमस्कार करता हूँ ॥२॥ जो चेतन प्रात्मा अज्ञानी प्राणियो के लिए अम्पष्ट तथा सम्यग्जानियो के लिए स्पष्ट है और मस्त वस्तुमों में श्रेष्ठ है उस चेतन प्रात्मा के लिए नमस्कार हो ॥३॥ -.c:
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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