________________
४८
अनेकान्त
प्रस्तुत पुस्तक प्रात. रमरणीय पूज्य माध्यात्मिक सत वाकलीवाल स्मारक समिति जयपुर। पृष्ठ संख्या ४४० । गणेश प्रसाद वर्णी द्वारा समय समय पर विभिन्न व्यत्तियो मूल्य १५ रूपया। को लिखे गये उन माध्यात्मिक पत्रो का सकलन मात्र है,
प्रस्तुत ग्रन्थ राजस्थान के प्रसिद्ध सेठ भवरीलाल जी जो आध्यात्मिक, उपदेशिक और सम्बोधक है। वर्णी जी
वाकलीवाल की स्मृति में प्रकाशित किया गया है। जिसमे समयसार के रसिया थे । उनका प्रत्येक पत्र अध्यात्म रस
उनका जीवन परिचय श्रद्धाजलिया, सस्मरण और विशिष्ट में सराबोर है, उन्हें पढते ही प्रात्मा पर जो प्रभाव अकित
लेख है । ग्रन्थ उनके जीवन से सम्बन्धित अनेक चित्र भी होता है वह शब्दो द्वाग व्यक्त नही किया जा सकता।
दिये गये है, जिससे उनके कार्यो का और कुटुम्ब का वर्णी स्नातक परिषद् ने इस पुस्तक को बहुत ही सुन्दर
अच्छा परिचय मिल जाता है श्रद्धाजलिया और सस्मरणो रूप में प्रस्तुत किया है । छपाई सफाई आकर्षक है। मूल्य
मे सेठ जी के प्रति श्रद्धापूर्ण उद्गार प्रकट किये गये है। भी अधिक नहीं है । अध्यात्म के जिज्ञामुत्रो को इसे मगा
इससे स्वर्गीय आत्मा का विस्तृत जीवन परिचय मिल कर अवश्य पढ़ना चाहिए।
जाता है। विशिष्ट लेखो का चयन सुन्दर बन पड़ा है। ४ श्री भंवरीलाल वाकलीवाल स्मारिका-मम्पादक अनेक लेख ऐतिहासिक शोध-खोज को लिये हुए है । ग्रन्थ प० इन्द्रलाल शास्त्री, प० वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री, डा० की छपाई सफाई सुन्दर है प० इन्द्रलाल जी शास्त्री को लालबहादुर शास्त्री। प्रकाशिका-भा० शातिवीर दि० इसमें विशेष श्रम करना पड़ा है, जिसके लिये वे धन्यवाद जैन सिद्धान्तसरक्षिणी सभा के अन्तर्गत भंवरीलाल के पात्र है।
-परमानन्द शास्त्री
(पृ० ४२ का शेषांश)
अर्घकाण्ड कई व्यक्तियो के मिलते है। इसलिए यहाँ ग्रन्थ
कार को किसके रचित अर्घकाण्ड की मूचना अभीष्ट है, राशिमडल और ज्ञान कोई ग्रन्थरूप में तो गौतम स्वामी
कहा नहीं जा सकता। पृष्ठ ४२० मे इत्यगत सहिताया के नाम से ज्ञात नहीं है। पता नही मेघविजय उपाध्याय
रोहिणी सकटयोग. लिखा है यह सहिता कौन-सी है? पृष्ठ ने यह कहाँ से लिया है।
१५४ में जीर्णग्रन्थ के पाठान्तर दिये है। पर ग्रन्थ और मेघमहोदय मे उपरोक्त रचनायो के अतिरिक्त कई कर्ता का नाम नही दिया। जन पागमो व ग्रन्थो का उद्धरण है। जैनेतर ग्रन्थों में मेघमहोदय में उल्लिखित पर अनुपलब्ध ग्रन्थो मे २ जगनमोहन, गिरधरानन्द, शर्माविनोद, वारासंहिता, नर- सबसे अधिक उल्लेखनीय है। हीरविजय सूरी की हीरपतिजयचर्या, अगस्ति, भृगुमुत, रूद्रीयमेघमाला, रत्नमाला, मेघमाला और दिगम्बर केवलकीति की मेघमाला। इसी सारसग्रह, कश्यप, बालबोध, गार्गीयसहिता प्रादि ग्रन्थो के तरह भद्रबाह सहिता की प्राकृत गाथाये उद्धृत है तो उद्धरण दिये है उनमें से कुछ ग्रन्थ सम्भव है अप्रसिद्ध प्राकृत भाषा को उक्त सहिता कही प्राप्त है ? दुर्गदेव के हों। कही कही पर ग्रन्थ के नाम निर्देश बिना उद्धरण दे षष्टि संवत्सर के नाम से जिन पद्यों को उद्धृत किया है दिये है। कही केवल मेघमाला या मेघमालाकार लिख वे पद्य दुर्गदेव के रचित अर्धकाण्ड में मिलते है, या इस दिया है । पता नही वहाँ किसके रचित कौन सी मेघमाला नाम का कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ है? इत्यादि बातों पर विशेषज्ञ की सूचना है। कई जगह अर्घकाण्ड के उद्धरण है। पर और शोध प्रेमी प्रकाश डाले।