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________________ साहित्य-समीक्षा १वावा छोटेलाल जी जैन स्मृति प्रन्थ-प्रकाशक बाबू के पात्र है। इस ग्रन्थ के सम्पादनादि का सब क र्य जैन छोटेलाल जैन अभिनन्दन ग्रन्थ समिति कलकत्ता । प्राकार समाज के प्रसिद्ध विद्वान पं० चैनसुखदास जी जयपुर २०४३० अठपेजी पृष्ठ संख्या ७००, सजिल्द प्रति का और उनके सहयोगियों ने किया है। इसके लिये वे विशेष मूल्य २०) रुपया। धन्यवाद के पात्र हैं ! ग्रन्थ मगाकर प्रत्येक लायब्ररी ___इस ग्रन्थ की सामग्री का सकलन और अभिनन्दन पुस्तकालय में रखना आवश्यक है। ममिति का निर्माण बाबू छोटेलालजी के जीवन काल मे ही २ युगवीर निबन्धावली द्वितीयखण्ड-लेखक जुगलहो गया था किन्तु उक्त बाबू साहब का स्वर्गवास हो किशोर मुख्लार, प्रकादाक प० दरबारीलाल कोठिया मंत्री जाने से अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन स्मृति ग्रन्थ के रूप में वीर सेवामन्दिर ट्रस्ट २१ दरियागज, दिल्ली । पृष्ठ संख्या करना पड़ा है। फिर भी यह कम सन्तोष की बात नही १००, मूल्य पाठ रुपया । है कि उसका प्रकाशन इतने सुन्दर रूप मे हुअा है। प्रस्तुत ग्रथ, जैन समाज के प्रसिद्ध ऐतिहासिक विद्वान् जब जैन समाज में जीवित समाज सेवियों को कोई नही पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार के द्वारा ममय समय पर पूछता, तब मरने पर तो कहना ही क्या है ? लिखे गये लेखों का सकलन मात्र है, जिससे ग्रथ का नाम ग्रन्थ दो भागों में विभक्त है हिन्दी विभाग और अंग्रेजी 'युगवीर निबन्धावली' नाम मार्थक है । ग्रन्थ दो खण्डो में विभाग । हिन्दी विभाग ४०० पृष्ठों में, और अंग्रेजी विभाजित है, पहले खण्ड मे ५१ मौनिक निबन्ध दिये हुए विभाग ३०० पृष्ठों मे है। दोनों ही विभागो में लेखों का है। और दूसरे खण्ड में ६५ निबन्ध प्रात्मसात हए है। चयन बहुल मुन्दर हुआ है। भर्ती का कोई भी लेख नही जो उत्तरात्मक, समालोचनात्मक, स्मृति परिचयात्मक, है, हिन्दी विभाग तीन खण्डों में विभाजित है। प्रथम विनोद शिक्षात्मक और प्रकीर्णक रूप में विभक्त हैं। ये ग्वण्ड में सस्मरण और श्रद्धांजलियाँ है दूसरे खण्ड मे सब निबन्ध संवत् १९०७ मे १९६६ तक के है जो जैन इतिहास' पुरातत्त्व-विषयक २६ लेख है, तीसरे खण्ड में हितैषी, जैनगजट, जनजगत और अनेकान्त आदि पत्रो में साहित्य धर्म-दर्शन विषयक १८ लेख है। और अग्रेजी प्रकाशित हो चुके हैं। मुख्तार मा० वयोवृद्ध विद्वान है विभाग में ४३ लेख है । जो जैन विषयों से सम्बद्ध है। उनको लेखनी से प्रायः सभा जन परिचित है। वे जा हिन्दी अग्रेजी मे सभी लेख जैन जैनेतर विशिष्ट विद्वानो लिखते है वह सब सयुक्तिक मार सप्रमाण हाता है । द्वारा लिखे गए है। चूंकि बाबू छोटेलाल जैन पुरातत्त्व के उन्होंने जन माहित्य और जैन समाज की बड़ी मेवा की है, उन्हान जन मा प्रेमी विद्वान थे, अच्छे लेखक और विचारक थे उनकी भारत वे ६२ वर्ष की इम वृद्धावस्था में भी लिख रहे हैं। जैन के पुरातत्वज्ञ विद्वानो से बड़ी मित्रता थी। अग्रेजी में १० समाज उनकी इम अपूर्व देन का गौरव करे। उनकी ११ लेख इस विषय पर है जो बहुत ही महत्वपूर्ण है, और सेवाग्रो का मूल्य पाके । और उनका सार्वजनिक अभिनन्दन वे पुरातत्त्व के विशेषज्ञ विद्वानों द्वारा लिखे गए है । जिनमे । करे । ग्रन्थ के मभी निबन्ध महत्त्वपूर्ण है। इसका प्राक्कथन पद्म विभूषित डा० टी० एन० रामचन्द्रन भी है । ग्रन्थ उप- डा० ज्यातिप्रसाद जा लखनऊ ने लिखा है। प्रत्येक पु योगी पठनीय व संग्रहणीय है। इस ग्रन्थका कुल व्यय भार कालय पीर लायबेरियो में इसका मग्रह होना चाहिए। बाबू जुगमन्दिरदास जी कलकत्ता ने वहन किया है। जो ३ वर्णो अध्यात्म पत्रावली-सयोजक श्री वर्णी बाबू छोटेलाल जी के प्रिय मित्र थे । उन्होने अपने साधर्मी स्नातक परिषद् सतना, प्रकायक गणेशवर्णी ग्रन्थमाला कर्तव्यका पूर्ण रूप से पालन किया है, इसके लिये वे धन्यवाद वाराणसी । मूल्य एक रुपया ।
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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