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________________ उपाध्याय मेघविजय के मेघमहोदय में उल्लिखित : कतिपय अप्राप्त रचनाएँ प्रगरचन्द नाहटा जैन विद्वानों ने प्राचीन साहित्य के मरक्षण और जो अभी तक प्राप्त नही हई है उनके सम्बन्ध मे शोध प्रेमी नवीन साहित्य के सृजन म जैसी तत्परता दिखाई है वैमी विद्वानों का ध्यान प्रापित करना आवश्यक हो जाता अन्यत्र दुर्लभ है । जिस समय मुद्रण की सुविधा नही हुई है। प्रस्तुत लेख में ऐसी ही कुछ रचनाओं की चर्चा की थी उस समय हस्तलिखित प्रतियो को लिखना कितना जा रही है। कष्ट साध्य था इसकी कुछ झाको कतिपय प्रतियों के १८वी शताब्दी के प्रारम्भ मे उपाध्याय मेघविजय लेखको ने लेखन के अन्त में कुछ इलोक दिये है उनमें एक बहुत बड़े विद्वान हो गए है। जिन्होंने कई महाकाव्य मिल जाती है । जैन विद्वान जो भी अच्छा ग्रथ जहा भी प्रबन्ध काव्य लघुकाव्य और विलक्षणकाव्य बनाने के साथजिस किसी के पास देवने उसकी नकल अपने व्यक्तिगत साथ व्याकरण, ज्योतिष, ग्रादि अनेक विषयों के ग्रथ बनाए उपयोग या ज्ञानभन्डारी के लिए कर लिया करते थ। है। इनके बहुत से ग्रथ प्रकाशित भी हो चुके है। कई इसोकारण जैन ही नही जेनतर हजागे-छोटी-बड़ी रचनाये वर्ष पहले मैने इनकी रचनाओं के सबन्ध में एक लेख उनके द्वारा लिखी हुई आज भी प्राप्त है । यद्यपि जितनी नागरी प्रचारिणी पत्रिका में प्रकाशित किया था। मुनि बड़ी सख्या में हस्तलिखित प्रतिया लिगी गई थी उसका जिन विजयजी सम्पादित सिघी जैन ग्रथमाला में मेघविजय बहन बडा अग नष्ट हो चुका है फिर भी बहुत-सी गमी जी के २-३ ग्रथ प्रकाशित हये है। उनके सम्पादको ने भी जैनेनर रचनाय जैन भन्डागे में है जिनकी अन्य कोई भी मेघविजयजी की रचनामो का विवरण दिया है । खेद है प्रति किसी जनतर मगृहालय में नहीं मिलती। हस्त- जिम महान विद्वान को स्वर्गवामी हा केवल २७५ वर्ष भी लिम्वित प्रतिया प्राचीनतम एव शुद्ध हो जैन भन्डागे में पूरे नहीं हुए उनकी रचनामभी पूर्ण रूप से प्राप्त नही है । अधिक मिलतो है । इतनी तत्परतासे वृद्धि और मरक्षण हमारे संग्रह में उनके चरित्र एक चित्र काव्य विज्ञप्ति लेख करने पर भी आज हजागे जैन रचनाये भी अलभ्य हो है जिमकी पूर्ण प्रति अभी तक कही भी प्राप्त नहीं हुई। गई है। उनमे से कुछ का उद्धरण और कुछ का उल्लेख महोपादयाय बिनयमागर जी ने नेघविजयजी की रचनाओ अन्य ग्रथो में पाया जाता है । जिमसे विदित होता है कि के सम्बन्ध मे एक खोज पूर्ण निबन्ध लिखा है जो शीघ्र ही उस समय तक तो वे रचनाये प्राप्त थी पर आज उनका प्रकाशित होगा । इसमे उनकी कुछ ऐसी रचनायो का भी कही भी पता नही लगता । यद्यपि जैन भन्डार या ग्रथ- उल्लेख किया गया है जो अब तक अज्ञात थी मैंने भी ऐसी मग्रह भारत के कोने-कोने और सैकड़ो स्थानो में है और दो अज्ञात रचनायो की खोज पहले की थी और १-२ लेख सबकी सूची नही बनी है जिनकी सूची बनी हुई है उनकी जैन मत्य प्रकाश आदि में प्रकाशित किये थे। सिधी जैन भी जानकारी प्रकाशित नही हुई है इसीलिए यह सम्भव है ग्रन्धमाला से प्रकाशित की। कि वे अलभ्य मानी जाने वाली रचनाये उन सग्रहालयों में प्रस्तावना में मेघविजयजी की रचनायो की नामाअब भी सुरक्षित हो जिन सग्राहलयोकी सूची एव जानकारी वली दी है। उनमे कुछ की प्रतिया अभी तक हमे देखने अभी तक प्रकाश में नहीं आ पाई । विगत कुछ वर्षों में को नहीं मिली। उनका उल्लेख भी विनयसागर जी के ऐसी अलम्य रचनाये खोज में भी प्राप्त हुई हैं इसीलिए रचित मेघ महोदय-वर्ष प्रबोध नामक महत्वपूर्ण प्रथ में
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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