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________________ मनेकान्त संगमरमर के जैन मन्दिर का भी निर्माण हुआ था। के जीणोद्धार का ममय १२३३, १३८० और १५८० वि० सवत है। ___इस युग मे जिस प्रकार जैन मन्दिरो का. बाहल्य ठीक उसी प्रकार जैन प्रतिमानो का भी होना स्वाभाविक जैन प्रतिमायो का एक विशाल संग्रह "श्री जैन ही क्योकि बिना प्रतिमा के मन्दिर कसा? मन्दिरों पुरातत्त्व भवन जयसिंहपूग उज्जैन" में भी है। यहाँ पर के अतिरिक्त भी प्रतिमानो के अनेक अवशेष प्राप्त हुए है। विभिन्न तीर्थकगे की प्रतिमानो के माथ ही अन्य प्रतिमाए. प्राचीन मन्दिरों के उल्लेखित स्थानो पर तो प्रतिमानो के भी है। अधिकाग प्रतिमा दिगम्बर है। कुछ श्वेताम्बर सुन्दर उदाहरण हैं ही किन्तु कुछ प्रतिमायो के और नमूने प्रतिमाए भी दिखाई देती है। इग सग्रह की सभी प्रतिमाएं मिले है जिनमे घसोई जिला मदसीर, गधावल जिला कही न कहीं से खण्डित है। कई प्रतिमानो के मिर नहीं देवास विशेष रूप से उल्लेखनीय है। घमोई के विषय मे है तो कई के घर नही है। कूट प्रतिमामा के हाथ पर ऐसा कहा जाता है कि वहा पर मूर्तिया इस बाहुल्य के टे है। ये प्रतिमाए यहां अनेक स्थानो से लाकर रखी गई साथ प्राप्त होती है कि खेतो, खलिहानो एव घरो की है। जिनमें से प्रमुख गुना जिला है। कुछ प्रतिमाएँ मुरुदीवालो पर भी इनके उदाहरण देखने को मिल जाते है। जेर, बदनावर तथा रतलाम जिल में भी यहाँ पाई है। गधाबल मे भी घरो, कुप्रो, उद्यानो एव खतो में। अधिकाश प्रतिमानो पर लख उत्कीर्ण है। किन्तु अधिक विग्वरी हुई प्रस्तर प्रतिमाएं है जिनकी सख्या लगभग दो घिम जाने के कारण स्पष्ट रूप में पढ़ने में नही पाते है। सौ है। ये प्रतिमाएं भी परमार युगीन दसवी शताब्दी एक खण्डित प्रतिमा जिसका केवल निम्न भाग ही शेष है, की है । बाबू छोटेलाल जैन' ने अपने एक लेख "उज्जैन पर सवत १२२२ का लग्ख है। इस प्रतिमा पर "स्वस्तिक' के निकट दि० जैन प्राचीन मूर्तियो" मे गधावल के जैन चिन्ह है. जिसके आधार पर हम कह सकते है कि यह पुरातत्व की विशेष चर्चा की है। गधावल के सम्बन्ध में प्रतिमा १०वे तोर्थकर भगवान शोतलनाथ जी की है। एक बात उल्लेखनीय यह है कि यहाँ सभी दिगम्बर जैन भगवान जितनाथ जी की एक प्रतिमा जो कि खडित है प्रतिमाएं है। गुना से प्राप्त हुई है। इस प्रतिमा पर स० १२३१ का लेख उत्कीर्ण है किन्तु घिम जाने के कारण पढने मे बराबर विशाल प्रतिमाओ की परम्परा मे बडवानी नगर नही पाता है। भगवान पार्श्वनाथ की जितनी प्रतिमाए के समीप चलगिरि पर्वत श्रेणी के तलभाग में उत्कीर्ण ८४ है उनमे सर्पफण अभी भी लगभग पूर्ण है । यहाँ के सग्रहाफीट ऊंची खड्गासन प्रतिमा विशेष उल्लेखनीय है। इसे लय की लगभग सभी प्रतिमाए लाल अथवा भूरे रेतीले बावनगजा के नाम से भी पुकारते है। इसके एक ओर पत्थर की है। कोई कोई प्रतिमा ही काले पत्थर की यक्ष तथा दूसरी ओर यक्षिणी उत्कीर्ण है। दि० जैन दिखाई देती है। डिरेक्टरी के अनुसार चूलगिरि मे २२ मन्दिर है। मदिरो सम्पूर्ण मालवा के जैन पुरातत्त्व के विषय में अन्वेषण १ उज्जयिनी दर्शन पृ० ८४ आवश्यक है जिससे अनेक रहस्य प्रकट होने की सम्भा२ अनेकान्त वर्ष १६।१-२ पृ० १२६ वना है। ३ अनेकान्त वर्ष १२।१० पृ० ३२१-२८ ४ डा० हीरालाल जैन वही पृ० ३५० ५ जन साहित्य और इतिहास पृ० ४४२
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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