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________________ राजपूत कालिक मालवा का जैन-पुरातत्व स्थित है। यहाँ प्राचीन कालिक १०वी-११वी शताब्दी के इसके अतिरिक्त "लक्ष्मणो" जिला झाबुआ मे भी एक जैन मदिरो के अवशेष मिले है। विक्रम सवत १२३४ का जैन मन्दिर और मूर्तिया मिली है। यह स्थान भी जैन एक लेख भी यहाँ से मिला है। तीर्थ है। इसकी प्राचीनता इस बात से सिद्ध होती है कि (२) बीथला '-बूढी चदेगे जिला गुना से ५ मील सवत् १४२७ मे निमाड की तीर्थ यात्रा पर निकले जैनदक्षिण पश्चिम में स्थित है। यहा १२वी सदी के जैन- तीर्थ-यात्री श्री जयानन्द मुनि ने अपने प्रवासगीति मे इस मन्दिरो की प्राप्ति हुई है। तीर्थ का उल्लेख किया है। जिमके अनुसार यहां पर (३) बोरी . -यह ग्राम जिला झाबुमा मे स्थित है। जैनियो के २००० घर थे तथा १०१ शिखर बन्द मन्दिर यहाँ भी जैन मन्दिर मिले है तथा एक मोटीदार कुओं भी थे । सवत् १४२७ के उल्लेख में यह बात प्रमाणित होती मिला है। है कि यहा के मन्दिर सवत् १४२७ के पूर्व बने होगे । (४) छपरा - जिला राजगढ़ (ब्यावरा) में है। जैन व "मुकृत मागर" में रोमा उल्लेख मिलता है कि पेथड कुमार हिन्दू मन्दिर मिले है। तीन मुनियो पर लेख भी उत्कीर्ण मत्रीश्वर के पुत्र झाझण कुमार ने माडवगढ़ से शत्रुजय का मघ निकाला था जो लक्ष्मणी पाया था। कहने का (५) गुरिला का पहाड़ -यह स्थान चंदेरी जिना नात्पर्य यह है कि मोलहवी शताब्दी तक पूर्णरूपेण सभी गुना से ग्राठ मील की दूरी पर स्थित है। यहाँ दो दिगम्बर जैनियो को यह तीर्थ विदित था'। मोलहवी सदी में या जैन मन्दिर मिले है। वहाँ के क मन्दिर मे एक यात्री इसके पश्चात् यह स्थान किस प्रकार ध्वस्त झा, कोई का स०१३०७ का लेख यह मिद्ध करता है कि यह मदिर जानकारी नही मिलती है। यदि पूरे मालवा के जैनमदिरो इसके पूर्व का बना हया है। का इतिहास खोजा जाए तो उसमें अधिकाश मध्पकालीन मिलेंगे । किन्तु इन जैन मन्दिरो के जीर्णोद्वार के परिणाम (६) कड़ोद :-धार में उत्तर पश्चिम की पोर १४ मील की दूरी पर स्थित है। यहा एक जैन मन्दिर व स्वरूप ये अपना मौलिक स्वरूप खोते गये और इस प्रकार हिन्दू मन्दिर तथा मीढीदार कुया मिला है। इनकी प्राचीनता नष्ट होती गई। (७) पुरागुलाना :-मन्दसौर जिले मे बोलिया ग्राम माइब और धार में भी जनमन्दिगे का बाहुल्य था। से ४ मील की दूरी पर स्थित है तथा गरोठ के डामर किन्तु अब मब नष्ट हो चुके है। कुछ जैन मन्दिरो का रोड से जुड़ा हुया है। यहा ११वी शताब्दी १२वी शताब्दी उपयोग मस्जिदो के रूप में कर लिया गया है । माडव में का एक जैन मन्दिर व कुछ प्रतिमाए है। यहां से एक ७०० जैन मन्दिर होने का उल्लेव मुकृतसागर में मिलता सस्कृत का शिलालेख भी मिला है किन्तु उस पर काई है जिनमे मे ३०० जैन श्वेताम्बर मन्दिरों पर पेथडदेव तिथि नहीं है। यह अभी इन्दौर पुरातत्त्व संग्रहालय में और उसके पुत्र झाझडदेव ने सोने के कलश चढाए थे। विद्यमान है। माइवगढ के जैन मन्दिगे को ध्वस्त करने अथवा परि(८) वई खेड़ा -मन्दसौर के समीप थडाद रेलव वनित करने का एक अलग प्रकरण हो जाता है। किन्त स्टेशन से २ मील की दूरी पर है। यहाँ पर एक जैन यहाँ यह विचारणीय है कि यदि माडवगढ़ में इतनी पनि दीवालो और छत पर अच्छी चित्रकारी अधिक मख्या मे मन्दिर थे तो वे कहाँ गये ? माडवगढ मे दरवाजे की चौखट पर १२वो शताब्दी का नामवाला एक आज भी अनक भग्नावशप ह, उनका वास्तावकता को लेख भी है। यहा का भगवान पार्श्वनाथ का मन्दिर लग ओर ध्यान देना आवश्यक है। परमार काल में घार मे भग १००० वर्ष पूर्व बना प्रतीत होता है। यह जैनियो १ जैन तीर्थ सर्वस ग्रह भाग २ पृ० ३१३-१४ का तीर्थस्थान भी है। २ फर्गुसन वही पृ० २६३-६४ १ जैन तीर्थ सर्वसग्रह भाग २ पृ० ३३४ ३ श्री माडवगढ तीर्थ-नदलाल लोढ़ा पृ० १८
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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