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________________ ३६ अनेकान्त किया जा सकता है-१-हिन्दू मदिर और २. जैनमदिर। हुई है। जिस प्रकार की सीढियाँ खजुराहो की ऋषभदेव ऊन मे एक राज्याधिकारी द्वारा दक्षिण-पूर्वी सतह पर प्रतिमा के पास और गिरनार में बनी हुई है। ये मदिर खुदाई करने पर वहा कुछ पुरानी नीव और बहुत बड़ी ११वी और १२वी सदी के आसपास निर्मित किये गए है। मात्रा में जैन-मूर्तिया निकली थी। उनमे से एक मूति पर इस स्थान को पावागिरि ठहराया गया है जिसका विक्रम स० ११८२ या ११६२ अर्थात् ई. सन् ११२५ या प्राकृत निर्वाण काण्ड में दो बार उल्लेख पाया है:११३५ का लेख खुदा हुआ है जिसके द्वारा यह विदित होता रामसुमा वेण्णि जणा लाडणरिदाण पच कोडीयो। है कि यह मूर्ति आ. रत्नकीति द्वारा निर्मित की गई थी' । पावागिरि वर सिहरे णिब्बाण गया णमो तेसि ॥ ५॥ डा० हीरालाल जैन का कथन है कि मदिर पूर्णत. पाषाण पावागिरि वर सिहरे सुवण्ण भद्दाई-मुणिवरा चउरो। खण्डो से निर्मिन, चपटी छत व गर्भगृह, सभामंडप युक्त चलणा-णई-तडग्गे णिव्वाण गया णमो तेसि ॥ १४ ॥ प्रदक्षिणा रहित है। जिनसे प्राचीनता सिद्ध होती है । चकि क्षेत्र के ग्रासपास सिद्धवर कूट तथा बडवानी भित्तियो और स्तम्भो पर सर्वाग उत्कीर्णन है जो खजुराहो की कलासे मेल खाता है । चतुर होनेसे दो मदिर चौबारा के दक्षिण मे चूलगिरि शिखर का सिद्धक्षेत्र है तथा प्राम पास और भी प्राचीन अवशेष व स्थल है । इसी से यह डेरा कहलाते है । खम्भो पर की कुछ पुरुषस्त्री रूप प्राकृतिया शृगारात्मक अति मुन्दर और पूर्णत. सुरिक्षत है। स्थान डा० हीरालाल जैन को दूसरा पावागिरि प्रमाणित यद्यपि इस चौबारा डेरा मदिर का शिखर ध्वस्त हो गया लगता है। किन्तु प० नाथूगम प्रेमी दूसरा पावागिरि ऊन है। फिर भी ऊन के सुन्दरतम अवशेपो में से एक है। को न मानते हए ललितपुर एव झासी के निकट"पवा" मडप के सम्मुख ही एक बडा बरामदा है। किन्तु अासपास नामक ग्राम को पावा शब्द के अधिक निकट मानते है। कोई बरामदा नही है । मडप आठ स्तम्भो वाला वर्गाकार अर्थात प्रेमी जी पवा को पावागिरि मानते हैं। है। मध्य में गोल गुम्बद है तथा चार द्वार है जिनमे से ११वी सदी मे जैन मदिरो के कुछ अवशेष नरसिह गढ एक देवालय की ओर पूर्व और पश्चिम काले द्वार बाहर जिला गजगढ (व्यावग) से ६ मील दक्षिण में स्थित की ओर तथा शेष बचा हुआ चौथा द्वार मडप की और है बिहार नामक स्थान पर भी प्राप्त हुए है। यहां जैसे देवालय छत रहित है, लेकिन इसमे दिगम्बर मूर्तियों है। मदिरो के माथ ही हिन्दू, बौद्ध व इस्लाम धर्म के अवशेष उनमे से एक पर विक्रम सं०१३ (१२४) का एक लेख है। मिले हैं। इसके अतिरिक्त डा० एच० डी० त्रिवेदी ने निम्नाकित स्थानो पर भी जैन मदिरों के अवशेष बताये है इस मदिर से कुछ ही दूरी पर दूसरा जैन मदिर है जो इसी काल के है। जो आज कल ग्वालेश्वर का मदिर कहलाता है । इसका (१) बोजवाड़ा -यह स्थान देवास जिले मे है तथा यह नाम इसलिये पड़ा कि यहाँ पर ग्वाल प्रतिकूल मौसम देवास के दक्षिण पूर्व मे इन्दौर से ४५ मील की दूरी पर (गमी-वर्षा) में आश्रय लेते है। इनकी रचना शैली आदि भी चौबारा डेरा मदिर जैसी ही है । इस मदिर में भी Progress Report of Archaeological Survey of India W C. 1919 PP. 63-64 दिगम्बर जैन मूर्तियां है। मध्य वाली प्रतिमा १२॥ फुट के लगभग ऊंची है । कुछ मूतियो पर लेख भी उत्कीर्ण है। २ डा. हीरालाल जैन वही पृ० ३३१ से उद्धृत जिसके अनुसार वे विक्रम स० १२६३ अर्थात ई०सन् १२०६ । ३ वही पृ० ३३१ मे भेंट की गई थी। यहाँ उसी प्रकार की सीढिथा बनी ४ जैन साहित्य और इतिहास पु० ४३०-३१ | Bibliography of Madhya Bharat Part I .१ Progress Reporot of Archacological Survey Archaeology Pege 7 of India W C. 1919 PP. 61 ६ Bibliography of Madhya Bharat पृ०७,८, २ भारतीय संस्कृति मे जैनधर्म का योगदान पृ० ३३१ ६, १४, १८, २१, २४, ३३, ४४
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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