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________________ ३२ अनेकान्त का भानेज भी कहा है और 'वैदेहीपुत्त' भी कहा है। इन बहिन थी। वे वैशाली के राजा चेटक की कन्याए थी। दोनों नामो में कोई सगति नही है। बुद्धघोष ने यहाँ भगवान महावीर की माता त्रिशला राजा चेटक की बहिन वैदेही' का अर्थ 'विदेह' देशकी राज-कन्या न कर 'पंडिता' थी। अत 'विबेह-दिन्न' या 'विदेहपत्त' प्रादि विशेषण किया है। यथार्थता यह है कि जैन परम्परा मे कथित बहुत ही सहज और बुद्धिगम्य है। जैन प्रागमो में भी तो चेल्लणा वैशाली गणतन्त्र के प्रमुख चेटक की कन्या होने कणिक को 'विदेहप्रत्त' कहा गया है। राईस डेविड्स के से 'वैदेही थी। प्रसेनजित् की बहिन कोशल-देवी प्रजात- मतानुसार भी बिम्बिसार के दो रानियां थी--एक प्रसेनशत्र की कोई एक विमाता हो सकती है । तिब्बती परम्परा' जित् की बहिन कोशल-देवी नथा दूसरी विदेह-कन्या, और तथा प्रमितावान सूत्र के अनुसार अजातशत्रु की माता अजातशत्रु विदेह कन्या का पुत्र था। का नाम "वैदेही वासवी" था और उसका वैदेही होने का राजा विम्बसार जब धूम्र गृह मे था, परिचारिका रानी कारण भी यही माना गया है कि वह विदेह-देश की गज कोशला थी, यह अट्टकथा बताती है । एन्सायक्लोपीडिया कन्या थी। 'विदेह' शब्द का प्रयोग तथारूप से अन्यत्र भी प्राफ बुद्धिज्म मे परिचारिका गणी का नाम खेमा बताया बहलता से मिलता है । भगवान् महावीर को 'विदेह विदेह गया है और उसे कोशल देश की राजकन्या भी कहा है। दिन्ने विदेहजच्चे' कहा गया है। महावीर स्वय विदेह देश पर यह स्पष्टत भूल ही प्रतीत होती है। खेमा वस्तुत में उत्पन्न हए थे, इसलिए 'वैदेह'; उनकी माता भी विदेह मद्र देश की थी5a | लगता है, कोशल-देवी के बदले खेमा देश में उत्पन्न थी; इसलिए 'विदेहदत्तात्मज'; और विदेही का नाम दे दिया गया है। अमितायुान सूत्र तबा तिब्बती मे श्रेष्ठ थे, इसलिए 'विदेहजात्य' कहे गये हैं। परम्परा के अनुसार परिचारिका रानी का नाम 'वैदेही महाकवि भास ने अपने नाटक स्वप्नवासवदत्ता में वामवी' था और वह वैशाली के सिहसेनापति की पुत्री थी। डा० राधाकुमुद मुखर्जी कहते है ---"वैदेही वामवी राजा उदायन को 'विदेह-पुत्र' कहा है; क्योकि उसकी की पहिचान चेल्लणा में की जा सकती है।" बौद्ध परमाता विदेह-देश की राज-कन्या थी। जैन परम्परा के अनुसार चेल्लणा और उदयन की माता मृगावती मगी म्परा की इस विविधतानो में भी इसमे परे की बात नही निकलती कि अजातशत्रु विदेह-राज कन्या का पुत्र था और इसीलिए वह 'वैदेहीपुत्त' कहलाता था। न जाने १ संयुत्त निकाय ३-२-४ प्राचार्य बद्धघोष के क्यो यह भ्रम रहा कि 'बदेही' नाम २ घेदेही पुत्तो ति वेदेहीति पण्डिताधिवचन एत , पण्डि 'पडिता' का है और अजात-शत्रु कोशल-देश की राज-कन्या तित्थिया पुत्तो ति अत्थो।। कोशला का पुत्र था। (क्रमशः) -सयुत्त निकाय अट्टकथा, १, १२० १ आवश्यक णि, भाग २, पत्र १६४ ३ Rockhill, Life of Buddha, p. 63 २ आवश्यक चूणि, भाग १, पत्र २४५ ४ S.BE. Vol. XLIX, p. 166 ३ भगवती सूत्र, शतक ७ उद्देशक ६, पृ० ५७६ ५ Rackhill, Life of Buddha, p. 53 ४ Buddhist India, p. 3 ६ कल्प सूत्र, ११० ५ Encyclopaedia of Buddhism, p. 316 ७S.B.E. Vol. XXII, P. 256, वसंतकुमार चट्टो- ६ थेरी, गाथा अट्टकथा, १३६-१४३ पाध्याय, कल्पसूत्र (बगला अनुवाद), पृ२७ ७ Rackhill, Life of Buddha, p. 63 ८ हिन्दू-सभ्यता, पृ० १६८ ८ हिन्दू सभ्यता, पृ० १८३
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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