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कुलपाक के माणिकस्वामी
डॉ० विद्याधर जोहरापुरकर
आन्ध्र प्रदेश मे हैदराबाद-काजीपेट रेलमार्ग के पालेर पन्द्रहवी या सोलहवी शताब्दी के लेखक सिंहनन्दि ने स्टेशन से चार मील उत्तर में कुलपाक नामक छोटा मा माणिक स्वामी विनती नामक चौदह पद्यो का गुजराती ग्राम हे यहा एक भव्य जिन मदिर में भगवान ऋषभदेव गीत लिया है (पूरा गीत हमने 'तीर्थवन्दनसग्रह' मे दे की पुरातन प्रतिमा है जो माणिक स्वामी के नाम से प्रसिद्ध दिया है) जिस के अनसार इस वलपाकपुर के माणिकहै। इसके सम्बन्ध में प्राप्त ऐतिहासिक उल्लेखो का यहा स्वामी की प्रतिमाका निर्माण भरत राज ने अपनी मुद्रिका वर्णन किया जाता है।
के इन्द्र नील रत्न से कराया था। बाद में यह प्रतिमा इद्र
के भवन में और फिर लकाधीश रावण के यहा रही, तदउदयकीति को अपभ्र श रचना तीर्थवदना के सोलहवं पद्य म माणिकदेव को नमस्कार किया है। इन का अनमा- नतर बहुत समयलेक समुद्र क जल में मग्न रही। शासन नित समय तेरहवी शताब्दी है)
देवी की कृपा से दाकर राय ने इस मूर्ति को प्राप्त कर यह
मदिर बनवाया। यहा नये-नये वेश और फूलो के मुकुट वंटिज्जड माणिकदेउ देउ। जस णामई कम्मह होइ छउ ॥ में भगवान की पूजा की जाती है। अर्थात्-उन माणिकदेव को वदन हो जिन के नाम में जिन प्रभुमूरि के विविध तीर्थकल्प (चौदहवी सदी) कर्मों का नाश होता है।
में भी उपर्यक्त कहा है। उन्होने शकर राजा को कल्याण
शेष पृ० २४ का)
समय वादिराज और जगन्नाथ का है । डा० नेमिचद्रजी मानसिह के नही रायसिह के मत्री थे और उनका समय
शास्त्री ने शायद उक्त सकलकीति को १५ वी शती मे वि० की १८वी का पूर्वार्द्ध था। इन वादिराज के बड़े भाई
होने वाले प्रसिद्ध सकलकीति समझकर वादिराजकृत वाग्भजगन्नाथ कविभी बड़े विद्वान थे, जिन्होने चतुर्विशतिसधान,
बालकार का टीकाकाल वि०स-१४२६ लिख दिया हो सुखनिधान और श्वेताबरपराजय आदि अनेक ग्रंथ रचे एर
ऐसा प्रतीत होता है । आपने उपदेशरत्नमाला के कर्ता थे। इन तीनो ग्रंथो की प्रशस्तिये वीरसेवामदिर दिल्ली भट्टारक सकलभूषण का समय विक्रम की १५वी शती से प्रकाशित प्रशस्तिसग्रह के प्रथम भाग में छपी है । मुख- लिखा ह यह भ
लिखा है यह भी समीचीन नही है । स्वय ग्रंथकार ने उपनिधान अथ मे विदेहक्षेत्रीय श्रीपाल चक्रवति का कथानक देशरत्नमाला की समाप्ति का समय वि०स०१६२७ दिया है। यह कथा आदिपुराण मे जयकुमार के पूर्वभवो मे आई है। यथाहै । इस ग्रथ की रचना इन जगन्नाथ कवि ने सकलचद्र, मप्तविंशत्यधिके षोडशशत वत्सरेषु विक्रमतः । सकलकीति (ये सकलकीति प्रसिद्ध सकलकीति से जुदे है) श्रावणमासे शुक्ल पक्षे षष्ठया कृतो ग्रथः ॥ २६५ ।। और पद्मकीति आदिकों की प्रेरणा से मालपुरा गांव मे को अतः सकलभूषण १० वी शती के है । न कि १५वी थी। ये खंडेलवाल जैन सोगाणी गोत्रके थे, शाह पोमराज शती के। के पुत्र थे और भ. नरेन्द्र कीर्ति के शिष्य थे । उक्त पय अद्यावधितक बहुत सी ऐतिहासिक सामग्री प्रकाश मे कीर्ति-सकलकीर्ति का समय भट्टारकसप्रदाय पुस्तक के प्राचुकी है इतने पर भी विद्वान लोग भूलें करते हैं यह पृ०-२०८ पर १८वी शती का प्रथम चरण लिखा है । यही खेद की बात है।