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________________ परिशिष्ट श्रद्धाञ्जलि डॉ० दरबारीलाल कोठिया श्रद्धेय बाबू जी (प्राचार्य जुगलकिशोर जी मुख्तार) करते थे। इन दो-तीन बातों के कारण ही उनकी लोकने जीवन भर अद्भुत समाज और साहित्य की सेवा की प्रियता और लोकाकर्षण अवरुद्ध रहे । अन्यथा उनकी सेवा है। वे प्रारम्भ से समाज सुधारक, उन्नायक और स्वय साधना, तपस्या, कर्तव्यनिष्ठा, तीव्र लगन और जिनवाणी अजित विद्यावान थे। मातृभूमि से उन्हे असाधारण अनु- की भक्ति जितनी थी, उनसे उन्हें सर्वातिशायी सम्मान राग था । जब दिल्ली में समन्तभद्राश्रम सफल न हुआ तो और प्रतिष्ठा मिलनी चाहिए थी। अाज शोध-खोज की अपने जन्म स्थान सरसावा मे 'वीर-सेवा-मन्दिर, के नाम प्रेरणा देने वाला और निष्ठावान् साहित्यकार उन जमा मे नई साहित्य-सस्था को जन्म दिया और उसके लिए दिखलायी नही पडता। ६२ वर्ष तक श्रुतसेवा में संलग्न एक ट्रस्ट की भी योजना कर दी। इस साहित्य-सस्था के यह तपस्वी हम लोगो से दूर पोझल हो गया। द्वारा उन्होने जो संस्कृति की सेवा की है वह पापचर्य समाज उनकी अमर स्मति रखने के लिए कोई ठोस जनक है । उन्होंने इतना लिखा है कि व्यास के महाभारत ___ कदम उठा सके तो वह उनके ऋण से कुछ उऋण भी हो से भी अधिक परिमाण में है। मकेगी। हम उनके प्रति हार्दिक श्रद्धाजलि प्रकट करते बाबू जी मे जो कमी थी वह यह कि उनमे मिलन- हुए उनके लिए शान्ति लाभ की कामना करते है। वे हमें सारता कम थी, उदार भी कम थे और विश्वास भी कम अपने प्रशस्त मार्ग पर चलते रहने की प्रेरणा देते रहे। भावभीनी सुमनाञ्जलि बाबू कपूरचन्द बरैया एम. ए. गुरू गोपालदास जी को जहां अनेक सैद्धान्तिक विद्वानों प्रकाशित करने में अपूर्व योगदान दिया। अब तो इस के सृजन करने का सौभाग्य प्राप्त हैं वहाँ वाङ्मयाचार्य कार्य का क्षेत्र जैनसमाज में इतना बड़-चढ़ गया है कि पं० जुगलकिशोर मुख्तार को कतिपय शोधार्थी विद्वानों अनेक जैन व जनेतर विद्वान् शोध ग्रन्थ लिखकर विश्वको पैदा करने का गौरव प्राप्त है। पडित जी के समय मे विद्यालयो से उपाधियाँ प्राप्त करने लगे है। निस्सन्देह साहित्यिक शोध खोज का कार्य प्रायः नगण्य-सा था। इसका बहुत कुछ श्रेय मुख्तार सा० को है जिनकी कृतियो बहुत कम विद्वानो का भुकाव इस पोर था, किन्तु मुख्तार से प्रेरणा पाकर आज भी अनेक विद्वान इस कार्य में सा० ने न केवल अपनी साहित्यिक प्रतिभा से इस कमी सलग्न दीख पड़ते है। को पूरा किया बल्कि भारत की राजधानी दिल्ली में 'वीर मख्तार सा. क्या थे? इसकी अपेक्षा यह कहना सेवा मन्दिर- की स्थापना करके 'अनेकान्त' पत्र द्वारा जैन अधिक श्रेयस्कर होगा कि वे क्या नही थे । उन्होने अपनी पुरातत्त्व इतिहास और साहित्य की विपुल सामग्री को प्रतिभा से जैन साहित्य के जिस क्षेत्र को स्पर्श किया,
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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