________________
इतिहास का एक युग समाप्त हो गया
२७१ शित हुआ है और जिसमे कोठिया जी ने मेरे एक पत्र को एक बड़ा काम है और उसमें कई निष्ठावान् विद्वानों एवं महत्वपूर्ण समझकर प्रकाशित किया है। लेख मे डॉ साहब श्रीमानो की जरूरत है। परन्तु यह काम वर्तमान मे ने अगस्त १९६५ मे प्रकाशित मेरी 'समन्तभद्र-स्मारक- असम्भाव्य हो अथवा अधिक देरतलब हो, ऐसा कुछ नहीं योजना का उल्लेख करते हुए लिखा है :-
है। जिस समाज में साहू शान्तिप्रसादजी जैसे दानी प्रति___ "प्राचार्य समन्तभद्र के समन्तात् भद्र विचारों के वर्ष एक ग्रन्थ पर एक लाख रुपये का पुरस्कार देने वाली प्रचार हेतु उनके (मेरे) मन में जो उत्कट भावना है वह
कावना है व भारतीय ज्ञानपीठ जैसी सस्था और श्री बाहुबलि श्रवण
भारतीय ज्ञानपी किसी भी साहित्य और सस्कृति-प्रेमी के लिए समादर बेलगोल के मस्तकाभिषक कलश का बाल
वेलगोल के मस्तकाभिषेक कलश की बोली प्रायः पचास और प्रेरणास्पद है। तिरानवें वर्ष की उम्र में भी
हजार में लेने वाले नवनरत्न, उदारमना, शासनभक्त जैसे साहित्य-सेवा के प्रति उनकी लगन और दृढता नयी पुरानी महाभाग्य मौजूद हों उसमे शासन-प्रभावना के ऐसे महान् सभी पीढियों के लिए स्पृहणीय है।"
कार्य में योग देने वाले श्रीमानों की क्या कमी रह सकती इस वाक्य में मेरी उम्र जो तिरानवें वर्ष की लिखी
है ? बशर्ते कि विद्वान् लोग उन्हे उसके लिए सच्ची है उसके सम्बन्ध में मैं पहले दो शब्द लिख देना चाहता
सक्रिय प्रेरणा प्रदान करे। यह विद्वानों में निष्ठा तथा
उत्साह आदि की कमी का ही परिणाम है जो आज समय हूँ; क्योंकि यह एक गलती है, न लिखू तो गलती का प्रचार होता है और वह रूढ बनती है । मेरा जन्म मग
___ को अनुकूलता और साधनों की प्रचुरता एव सुलभता सिर सुदी एकादशी संवत् १९३४ का है, इससे मेरी उम्र
होते हुए भी जिन शासन का वह प्रचार नहीं हो रहा है ६१ वर्ष चल रही है-मगसिर सुदी दशमी तारीख २६
जो होना चाहिए था और जिसकी आज बडी आवश्यकता नवम्बर १९६८ को ६१ वर्ष पूरे होंगे । इससे प्रायु में दो
है। विदेशों मे जिन शासन-ज्ञान की मांग है परन्तु उसको वर्ष की वृद्धि ठहरती है अथवा भुज्यमान आयु मे दो वर्ष
देने वाले आगे नही पा रहे है। स्वामी समन्तभद्र ने की कमी हो जाती है । यह कमी डॉ० साहब की अपनी
साधनों की कमी और दुर्लभता के होते हुए भी अपने नही किन्तु पूर्व लेख से सम्बन्ध रखती है, उसमे कोठिया
समय मे श्री वीर जिन-शासन की हजार गुणी वृद्धि की जी से ६१ की जगह ६३ का अक या तो गलत लिख गया ह
है. जिसका एक प्राचीन कनडी शिलालेख मे उल्लेख है; है अथवा गलत छप गया है। उनसे पूर्व पं० कैलाशचन्द्र ।
तब हमारे योग्य विद्वान् एवं त्यागी महानुभाव स्वामीजी जी शास्त्री ने भी प्रायु के उल्लेख मे प्रायः एक वर्ष की
का अनुसरण क्यों नहीं करते और क्यो वर्तमान साधनों गलती की थी-६१ जन्मदिवस को ६१ वर्ष पूरे हुए
से अधिकाधिक लाभ उठाकर उनसे भी अधिक प्रचार समझकर जैन सदेश मे १२ वर्ष की आयु लिख दी थी।
कार्य मे प्रवृत्त होते ? उन्हे स्वामी जी का यह वचन, जो सभव है उसी सिलसिले में कोई ६ छह महीने बाद ये ९२
शासन की भरपेट निन्दा करने वालों को भी सन्मार्ग पर के ६३ वर्ष बन गये हो। अस्तु, पाठको को यह गलती
अथवा शासन की शरण में लाने की अपूर्व शक्ति-सामर्थ्य सुधार लेनी चाहिए।
का सूचक है, सदा ध्यान में रखना चाहिए और अपने ___मेरी 'समन्तभद्र-स्मारक-योजना' को जिसके साथ
हृदय मे भय, निर्बलता, कायरता, अनुत्साह को दूर भगा'समन्तभद्र' मासिक पत्र का प्रकाशन भी है, "बहुत ही
कर प्रबल पुरुषार्थ का आश्रय लेना चाहिए, फिर कोई अच्छा" बतलाते हुए डॉ० साहब ने लिखा
कारण नही जो अनुकूल ममय के होते हुए भी समन्त"पर यह एक बड़ा कार्य है। इतने बड़े कार्य के लिए
भद्रोदित जिनशासन के प्रचार मे सफलता प्राप्त न होवेकई निष्ठावान् विद्वानों एव श्रीमानों को इस कार्य में कामं द्विषन्नप्युपपत्ति चक्षुः अपने को लगाना होगा। स्थिति को देखते हुए यह काम
समीक्षतां ते समदृष्टिरिष्टम् । जल्दी सम्भाव्य मालूम नहीं होता।"
त्वयि ध्रवं खण्डित-मान-श्रृङ्गो इसमें संदेह नहीं कि स्मारक की योजना का काम
भवत्यभद्रोऽपि समन्तभवः ।