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________________ इतिहास का एक युग समाप्त हो गया डॉ० गोकुलचन्द्र जैन एम. ए., पो-एच. डी. आचार्य जुगलकिशोर जी मुख्तार के निधन से प्राचीन विद्वानो के प्रति उनका महज अनुराग कई दशकों के उम्र जन वाङ्मय और संस्कृति के ऐतिहासिक अध्ययन का का अन्तर भूल जाता था। उनसे लगभग एक तिहाई एक युग समाप्त हो गया। बीसवी शती के लगभग प्रथम उम्र में होने पर भी मैने उनकी प्रात्मीयता बहुत पायी। चरण से जैन समाज के पुनर्जागरण तथा जैन वाङ्मय मुझे लगता "गुणीजनों को देख हृदय में मेरे प्रेम उमड़ और संस्कृति के ऐतिहासिक अध्ययन का जो सूत्रपात प्रावे" मस्तार सा० के कवि मन की अन्तर्वाणी है। हया तथा पिछले लगभग सात दशकों में जन जागरण मुख्तार सा. के स्वर्गवास के कुछ महीने पूर्व जैन और अध्ययन-अनुसन्धान के जो प्रयत्न हुए, उनके सूत्र- सदेश में प० दरबारीलाल जी कोठिया ने मुख्तार सा० घारों की अन्तिम कड़ी थे मुख्तार सा० । बैरिस्टर का एक पत्र प्रकाशित किया था। मैने उस पर एक चम्पतराय, अर्जुनलाल सेठी, सूरजभान वकील, ब्र० टिप्पणी संदेश मे लिखी थी। उसमे मैंने मुख्तार सा. की शीतलप्रसाद, अजितप्रसाद जिंदल, पं० नाथराम प्रेमी, समन्तभद्र स्मारक योजना तथा समन्तभद्र पत्र के प्रकाशन कामताप्रसाद जैन आदि सब प्रकारान्तर से एक ही महा- के सम्बन्ध में अपना अभिमत व्यक्त करते हुए सुझाव यज्ञ के होता थे । समाज सुधारकों ने उस समय सामाजिक दिया था कि समन्तभद्र के विचारों का देश विदेश में क्रान्ति का जो विगुल बजाया था, उसे शास्त्रीय प्रमाणो प्रचार हो, इसके लिए समन्तभद्र के सभी ग्रन्थों का मूलाका ठोस और स्थिर प्राधार देकर मुख्तार सा. ने क्रान्ति नुगामी हिन्दी अनुवाद के साथ देवनागरी लिपि में तथा के उद्घोष को और बुलन्द किया था। वे उस पीड़ा की मूलानुगामी अंग्रेजी अनुवाद के साथ रोमन लिपि मे दो अंतिम कडी थे। उनके निधन से वह भी टूट गयी । और जिल्दो में ग्रन्थावनी के रूप में प्रकाशित हो तथा तीसरी इस तरह जैन समाज के इतिहास का एक युग समाप्त जिल्द मे समन्तभद्र के शब्दो का इण्डक्स समन्तभद्र भारती हो गया। कोग के रूप में प्रकाशित किया जाये। मेरे विचार उन्हे ____ मुख्तार सा० के निधन का समाचार मुझे दिल्ली में बहुत ही पसन्द आये इसलिए उन्होने 'स्वामी समन्तभद्र मिला था । उस समय मै लक्षणावली की पाण्डुलिपि देव के विचारों का प्रचार" शीर्षक से उस पर एक लम्बी रहा था। लक्षणावली के साथ मुख्तार सा० का अनन्य टिप्पणी जैन सदेश के १७ अक्तूबर १६६८ के अक मे सम्बन्ध है। वास्तव में यह उन्ही की परिकल्पना है। प्रकाशित की । उनकी वह टिप्पणी अब एक ऐतिहासिक सयोग ही कहना चाहिए कि इस कार्य में अनेक बड़े-बड़े दस्तावेज बन गयी है, इसलिए मै उसे यहाँ अविकल उद्धृत विद्वानो के हाथ लगे फिर भी मुख्तार सा. के जीवनकाल करना उपयोगी और महत्त्व का समझता हूँ । वह इस मे उसका कार्य पूरा नहीं हो सका। प्रकार हैमुख्तार सा० से मैं सन् १९६० मे पहली बार दिल्ली जैन सदेश के गत २६ अगस्त के विशेषाङ्कनं० ३१ मे मिला था। उसके बाद तो उनके साथ पत्र व्यवहार से में डॉ. गोकुलचन्द्र जी जैन एम० ए० पी० एच० डी० निरन्तर सम्पर्क बना रहा । एकाधिक बार पुन: मिलना का लेख प्रकाशित हुया, जिसका शीर्षक है 'प्राचार्य समन्तभी हरा । मैंने उन्हें हमेशा ज्ञानोपयोग में निरत पाया। भद्र और प० जुगलकिशोरजी मुख्तार'। यह लेख प० ___ मुख्तार सा० की एक विशेषता ने मुझे बहुत अधिक दरबारीलालजी कोठिया न्यायाचार्य के उस लेख को लक्ष्य प्रभावित किया। उनमे गुरुडम तनिक भी नहीं था। करके लिखा गया है जो गत ४ जुलाई के संदेश में प्रका
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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