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________________ जो कार्य उन्होंने अकेले किया वह बहुतों द्वारा सम्भव नहीं डा० दरबारी लाल जी कोठिया न्यायाचार्य, एम. ए., पी-एच. डी. वीसवी सदी को प्रणाम । इस सदी ने अनेक राष्ट्र वकील और मुख्नार साहब अवश्य पहुँचते थे तथा अपने नेताप्रो के साथ जैन समाज के बहुप्रवृत्तियों के जनक प्रभावशाली व्याख्यानों द्वारा समाज को सम्बोधित महान् व्यक्तियों को जन्म दिया है। उन्हीं महान व्यक्तियों करते थे। में श्रद्धेय पण्डित जुगलकिशोर जी मुख्तार 'युगवीर' है। सन् १९०६ मे जैन गजट में 'विवेक की आँख' मुख्तार साहब ने अकेले वह कार्य किया जो बहुतों द्वारा शीर्षक लेख मुख्तार साहब ने लिखा या। इस लेख में सम्भव नहीं । सस्कृति को जितना बढ़ावा उन्होंने दिया एक दृष्टान्त द्वारा उस समय की अविवेकिता का चित्रण उतना किसी अन्यने दिया हो, यह हमे ज्ञात नहीं। किया गया है। वेश्यानत्य के लिए समाज खूब खर्च संस्कृति का कोई छोर उनसे अछूता नहीं रहा। समाज करने को हमेशा तैयार रहती थी और धर्मोपदेष्टा को जागरण, कुरीतिनिवारण, साहित्योद्धार, अनुपलब्ध ग्रन्था- देने के लिए नहीं या कम-से-कम देना चाहती थी। इस वेषण, ग्रन्थपरीक्षण, ग्रन्थ प्रकाशन इतिहास सर्जन, स्थिति का प्रदर्शक निम्न पद्य मुख्तार साहब ने स्वय पुरातत्त्व और कला की ओर समाज का आकर्षण आदि रचकर प्रस्तुत किया है, जो खास तौर से जानने सभी दिशाओं में उन्होने स्वय प्रवृत्ति की और अन्यों को योग्य है। उसकी ओर प्रोत्साहित किया । फूटी प्रॉख विवेक की, कहा कर जगदीश । कंचनिया को तीन सौ, मनीराम को तीस ।। वस्तुत: आज से ६०, ७० वर्ष पूर्व का समय एक 'कचनी' एक प्रसिद्ध वैश्या थी, जिसका नृत्य विवाहों निविड पन्धक र का समय था । अपनी पुरानी परम्पराओं में कराया जाता था। मनीराम जी एक पण्डित थे, जो से सभी चिपटे थे । चाहे वे अच्छी हों या बुरी। वे उन्हें धर्मोपदेश के लिये समाज में प्राते जाते थे। मुख्तार छोड़ना नहीं चाहते थे। उनसे ऐसा राग था कि बुरी साहब ने इम पद्य को ५० मनीराम जी के मुख से परम्पराओं को छोड़ने के लिए कहे जाने पर वे कहने वालों पर टूट पड़ते थे । विवाह मे वेश्यानृत्य, कन्या कहलवा कर तत्कालीन अविवेक का सकेत किया है। इसी लेख मे वे स्वय लिखते है-वेश्या जैसी पापिनी और विक्रय, छापे का विरोध,, सस्कृत-प्राकृत में लिखे जाली व्यभिचारिणी स्त्रियां तो मंगलामुखी और कुल देवियां ग्रन्थों को जिनवाणी मानना जैसी बातों के विरुद्ध बोलना समझी जाती हैं। जगह-जगह वेश्या नृत्य का प्रचार है... या शिर उठाना किसी का साहस नहीं था। खुले दहाड़े लड़कियां वेची जाती हैं। दिन-दहाड़े मन्दिरों श्रद्धेय मूख्तार साहब जन्मजात विवेकी प्रो साहसी और तीर्थों का माल हड़प किया जाता है"शराब की थे। उन्होंने उक्त बातों का दृड़तापूर्वक विरोध किया और बोतलें गटगटाई जाती हैं, धर्म से लोग कोसों दूर भागते इस विरोध के फलस्वरूप उनका बहिष्कार भी हुआ। हैं...फिर कहिये, यदि भारतवासी दुःखी न हो तो पर मुख्तार साहब आधी की तरह विरोध को चीरते हुए क्या होवें। आगे बड़ते गये। कितने लोगों ने उनके विरोध को इस लेख और उद्धरण से पाठक जान सकते हैं कि उचित समझा और उनका साथ दिया। उस समय उत्तर- मुख्तार साहब को समाज-सुधार और जागरण के लिए प्रदेश में जितने मेले, समितियों की बैठकें और कितना दर्द था। धार्मिक प्रायोजन होते थे उनमें बाबू सूरजभान जी जैन ग्रन्थों के प्रकाशन का बीड़ा बाब सूरजभान जी
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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