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________________ मुख्तार साहब का व्यक्तित्व और कृतित्व २१६ देख कर ही खर्च करते थे । मितव्ययी थे और जो खर्च घर-घर चर्चा रहे धर्म को, दुष्कृत दुष्कर हो जाये, करते थे उसका पाई-पाई का पूरा हिसाब लिखते थे। ज्ञान चरित उन्नति कर अपना मनुज जन्म फल सब पावे ॥ राष्ट्र एवं देश के नेताओं के प्रति उनकी महती प्रास्था मुख्तार साहब ने मेरी भावना के पद्यों में अनेक थी महात्मा गांधी के निधन पर 'गाधी स्मारक निधि' के पार्षग्रन्थों का सार भर दिया है। पद्यों में जहाँ शब्द लिए अापने स्वयं एक सौ एक रुपया दिया और पांच- योजना उत्तम है वहाँ भाव भी उच्च और रमणीय है। पांच दिन का वेतन अपने विद्वानों से भी दिलवाया था। काग्रेस के प्रति भी उनकी अच्छी निष्ठा थी। वे सूत कात मुख्तार साहब केवल गद्य लेखक ही नही थे किन्तु कर 'चर्खासंघ' को देते और बदले में खादी लेकर कपड़े कवि भी थे। प्रापकी कविता हिन्दी और सस्कृत दोनो बनवाते थे। भाषाओं मे मिलती है। कवि भावुक होते हैं और वे मुख्तार सा० का कृतित्व कविता की उडान में अपने को भूल जाते है । पर मुख्तार सा० की गणना उन कवियो मे नही पाती; क्योकि उनकी उनका रहन-सहन सादा था। अधिकतर वह गाढे कविता केवल कल्पना पर आधारित नहीं है। मुख्तार का उपयोग करते थे। राष्ट्र की सुरक्षा में भी उन्होंने साहब की कविताओं का प्राधार सस्कृत के वे पद्य हैं जो राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद जी के पास एक सौ एक रुपया । विभिन्न प्राचार्यों द्वारा रचे गए है । घटनाक्रम की कविता भेजा था। वे साहित्य रसिक थे, और उसमे ही रचे-पचे 'अज सम्बोधन' है जिसमें वध्य भूमि को जाते हुए बकरे रहते थे। का चित्रण किया गया है। उसमे उसका सजीव भाव उन्होंने सन् १९१६ में 'मेरी भावना' नाम की एक समाया हुआ है । ग्राप की हिन्दी की कविताओं में मानव कविता लिखी, जो राष्ट्रीयगीत के रूप में पढी जाती है, धर्म वाली 'कविता ' अछूतोद्धार की भावना का सजीव यह कविता बड़ी लोकप्रिय हई। इसके विविध भाषाओं चित्रण है-उसमें बतलाया गया है कि मल के स्पर्श से मे अनुवादित अनेक सस्करण निकले । लाखों प्रतियां कोई अछूत नहीं होता। मल-मूत्र साफ करने का कार्य छपी। उसके कारण लाखों व्यक्ति मुख्तार सा० के परिचय तो मानव अपने जीवन काल में कभी न कभी करता ही मे आये और वे सदा के लिये अमर बन गये । पाठको की है फिर वेचारे इन अछूतों को ही मल-मूत्र उठाने के जानकारी के लिए मेरी भावना के तीन पद्य नीचे दिये कारण अपवित्र क्यों माना जाता हैजाते है गर्भवास और जन्म समय में कौन नहीं अस्पृश्य हुमा? मैत्री भाव जगत में मेरा, सब जीवों से नित्य रहे, कौन मलों से भरा नहीं किसने मल मूत्र न साफ किया ? दोन-दुःखी जीवों पर मेरे उर से करुणा-स्रोत वहे । किसे अछुत जन्म से तब फिर कहना उचित बताते हो? दुर्जन क्रूर कुमार्गरतों पर क्षोभ नहीं मुझको प्रावे, तिरस्कार भंगी-चमार का करते क्यों न लजाते हो ?॥४॥ साम्पभाव रक्खू मै उन पर ऐसी परिणति हो जावे ॥ संस्कृति की कविता, 'मदीया द्रव्य पूजा', वीरस्तोत्र, और + + + + समन्तभद्रस्तोत्र प्रादि है । समन्तभद्रस्तोत्र की कविता कोई बुरा कहो या अच्छा लक्ष्मी प्रावे या जावे, का एक पद्य नीचे दिया जाता हैलाखों वर्षों तक जीऊं या मृत्यु अाज ही प्रा जावे। देवज्ञ-मान्त्रिक-भिषग्वर-तान्त्रिको यः प्रयवा कोई कैसा ही भय या लालच देने प्रावे, सारस्वतं सकलसिद्धि गतं च यस्य । तो भी न्यायमार्ग से मेरा कभी न पद डिगने पावे ॥ मान्यः कविर्गमक-वाग्मि-शिरोमणिः स + + + + वादीश्वरो जयति धीर समन्तभद्रः ॥ सुखी रहें सब जीव जगत के कोई कभी न घबराये। अनित्य भावना प्राचार्य पद्मनन्दी की कृति है जिसका बैर-पाप अभिमान छोड़ जग नित्य नये मंगल गावे । आपने सन् १९१४ में पद्यानुवाद किया था, उसके एक
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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