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मुख्तार साहब का व्यक्तित्व और कृतित्व
चित बतलाया, तथा यह भी लिखा कि हृदय की शुद्धि अनेक ग्रन्थों का अध्ययन किया । दिल्लीकी प्राकिलाजिकल के बिना बाह्य प्रवृत्तियाँ मिथ्या है, निस्सार है, उनका डिपार्टमेन्ट की लायबेरी से एपिग्राफिया इडिका और जीवन में कुछ भी उपयोग नही।
कर्णाटिका, अनेक जनरल और कनिघम की रिपोर्ट मादि पत्र सम्पादक
पुरातत्व-विषयक ग्रन्थों का पालोडन कर अनेक उपयोगी मुख्तार सा० सन् १९०७ मे 'जैन गजट' के सम्पादक नोट्स लिये और सरसावा में बैठकर बडे भारी परिश्रम बनाये गए । उस समय के आप के सम्पादकीय लेख देखने से समन्तभद्र का इतिहास लिखा । इसमे लेखक ने प्राचार्य से पता चलता है कि उस समय आप में लेखन कला और समन्तभद्र के मुनि जीवन पर अच्छा प्रकाश डाला। सम्पादन कला का विकास हो रहा था। उसके बाद वे जैन भस्मक व्याधि के समय आपत्काल में उन्होंने अपनी साधु हितैषी के सम्मादक बनाये गये। उस समय पाप की चर्या का किस कठोरता और दृढता से पालन किया । और विचारधारा प्रौढ़ और लेखो की भाषा भी परिमार्जित तथा रोगोपशान्ति के बाद जैन शासन की सर्वोदयी धारा को विचारों में गहनता और ऐतिहासिकता आ गई थी। उस कैसे प्रवाहित किया? और भगवान महावीर के शासन समय आप ने 'पुरानी बातों की खोज' शीर्षक के नाम से की हजार गुणी वृद्धि की, प्रादि का सविस्तृत वर्णन है। अनेक लेख लिखे । और सन् १९२६ मे आप ने दिल्ली के साथ में उनकी महत्वपूर्ण कृतियों का भी परिचय कराते करोलबाग मे 'समन्तभद्राश्रम' की स्थापना की और हुए उनके समयादि पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। अनेकान्त पत्र को जन्म देकर उसका सम्पादन प्रकाशन प्राचार्य समन्तभद्र का समय विक्रम की तीसरी-चौथी किया । पाप की सम्पादन कला निराली है, वह अपनी शताब्दी है । इस इतिहास के प्रकाशित होने के बाद भी बहुत कुछ विशेषता रखती है । अनेकान्त के प्रथम वर्ष में वे उनके सम्बन्ध मे अन्वेषण करते हुए लिखते रहे है । प्रकाशित आपके लेख ऐतिहासिक दृष्टि से वस्तुतत्त्व के समन्तभद्र पर उनकी बड़ी आस्था जो थी । समन्तमद्र का विवेचक और भूल-भ्रान्तियो के उन्मूलक थे। उस समय यह इतिहास ग्रंथ अप्राप्य है । अतः इसका पुनः प्रकाशन आपकी ऐतिहासिक विचारधारा प्रौड बन गई थी। अने- होना चाहिये, और परिशिष्ट मे समन्तभद्र के संबन्ध मे कान्त मैं आपके अनेक शोधपूर्ण लेख प्रकाशित हुए, कितने ही जो सामग्री प्रकाश में आई है उसे भी यथा स्थान देना लेख समीक्षात्मक उत्तरात्मक दार्शनिक और विचारात्मक चाहिये । लिखे गये । आपके यह सब लेख पुस्तकाकार प्रकाशित समान हो चुके है । पाठको को उनका अध्ययन कर अपने ज्ञान की
मुख्तार सा० का व्यक्तित्व महान है, उनमे सहिष्णुता वृद्धि करनी चाहिए।
और कार्य क्षमता अधिक है । वे श्रम करने में जितने दक्ष इतिहास लेखक
और उत्साही थे, विरोधियो के विरोध सहने या पचाने ___ मुख्तार साहब ने प्राचार्य समन्तभद्र का इतिहास में भी उतने ही सक्षम थे। सन् १९१० मे खतौली के लिखा, जो पं० नाथूराम जी प्रेमी बम्बई को समर्पित किया दस्सो और बीसों के पूजाधिकार-विषयक ऐतिहासिक गया था और जिसका प्रकाशन सन् १९२५ मे हुआ मुकदमे में आपने और गुरुवर्य गोपालास जी वरैया ने था। सन् १९२५ से पहले किसी भी जैन विद्वान ने किसी दस्सों की ओर से गवाही दी थी, तब आप स्थिति पालको प्राचार्य के सम्बन्धमे ऐसा खोजपूर्ण इतिहास ग्रन्थ लिखा हो, के रोष के भाजन बनें, तथा धर्म विरोधी घोषित किये यह मुझे ज्ञात नही जैसा कि मुख्नार सा० ने स्वामी गये और जाति वहिष्कार की धमकी के पात्र हुए। उस समन्तभद्र का इतिहास ग्रन्थ लिखा । मम्नार सा० को रत्न समय मापने जिन पूजाधिकार मीमांसा नाम की एक करण्डश्रावकाचार की प्रस्तावना और समन्तभद्र के इतिहास पुस्तक लिखी थी, जिसमें जिन पूजा, पूजक और उसका को लिखने में पूरे दो वर्ष का समय लगा। प्रस्तावना और अधिकार और फल पर यथेष्ट प्रकाश डाला इतिहास दोनों शोधपूर्ण है। उसके लिये मुस्तार साने गया है। जहाँ वे प्रबल सुधारक थे, वहाँ कर्मठ अध्यव