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कतिपय माजलियां
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बाबू दीपचन्द्रजी-राना
संस्मरण और श्रद्धांजलि ___ जैन समाज को मुख्तार सा. के निधन से बड़ी भारी क्षति पहुँची है । वास्तव में वह सदा साहित्य सेवा में संलग्न हीरालाल सिद्धान्त शास्त्री-व्यावर रहते थे । और इतनी वृद्धावस्था मे भी काम करते रहे।
प्राचार्य श्री जुगलकिशोर जी मुख्तार सा० के पास
प्राचार प्राशा है कि उनको अन्तिम इच्छ नुसार काय हाता रहा मझे लगभग १० वर्ष रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। और जिस वीर सेवा-मन्दिर सस्था की वह सस्थापना कर
मैने उनकी सभी प्रकार की प्रवृत्तियो को अत्यन्त नजदीक गये है वह चलती रहेगी।
से गहराई के साथ देखा है। मैने सदा ही यह अनुभव पं० बाबूलालजी जमावार - बड़ौत :
किया है कि वे अपनी धुन के पक्के थे। जिस कार्य को
हाथ में लेते थे उसमे तन्मय हो जाते थे । चार-चार घटे उस महान आत्मा ने जीवनभर ज्ञान दीप जलाकर
एक साथ एक प्रासन से बैठकर काम करना तो उनके जैन समाज को अधेरे से बचाया। आचार्य समन्तभद्र
लिए एक साधारण सी बात थी। काम में सलग्न हो स्वामी की तरह वादियों के मुह मोडे और दिगम्बर धर्म
जाने पर उन्हे समय का बिल्कुल ध्यान नहीं रहता था। की रक्षा की। मिथ्या अहंकारियों को उन्होंने सदैव लल
यहाँ तक कि कई बार वे भोजन और सामायिक जैसे कारा और उन्हे धर्म विरोध से रोका। आज उनके निधन से जो क्षति समाज को उठानी पड़ी है वह पूर्ण
जरूरी कार्यो का करना भी भूल जाते थे। जिस कार्य को होना असम्भव है।
हाथ मे लेते-रात-दिन उसी के चिन्तन-मनन और लिखने
मे सलग्न रहते । मैने उन्हें युक्त्यनुशासनादि कई गभीर पं० मिलापचन्द रतनलाल जी कटारिया केकड़ी
ग्रन्थों की प्रस्तावनाए लिखते समय देखा है कि वे लगातार मुख्तार सा० जैसे साहित्यक महारथी, अब दुर्लभ
कई दिन तक मौन धारण करके अपने लेखन-कार्य में जुटे है। उनके उपकार और उनकी महान उच्च साहित्य-मेवा
रहते थे। उनकी इस एकान्त साधना का ही यह परिणाम सदा सब को याद आती रहेगी। चाहते हुए भी विद्वज्ज
है कि जो कुछ भी उन्होंने लिखा है, उसका एक अक्षर भी गत उन दुर्लभ विभूति का यथोचित अभिनन्दन नहीं कर
इधर से उधर करने का साहम आज तक किसी ने नही सका। यह सदा पश्चाताप की चीज रहेगी। विद्वज्जगत
किया। उनकी वरद छत्र-छाया मे सब तरह से सम्पन्न और प्रसन्न था। अब तो उनकी स्थिति में विशाल स्मृति प्रथ
मुख्तार सा० अपने नियमों को बड़ी दृढता से पालन निकालकर कुछ उऋण हुअा जा सकता है ।
करते थे । जब से उन्होंने मप्तम प्रतिमा धारण की थी।
तब से वे त्रिकाल मामायिक नियम से यथा समय ही पं. नाथूलाल जी शास्त्री-इन्दौर
करते थे । एक बार जब वे एक गभीर बीमारी से अच्छे वीर सेवामन्दिर के सस्थापक श्रीमान् पं० जुगलकिशोर हुए-तो स्वास्थ्य-लाभ के लिए मैने उन्हें प्रातःकाल जी मुख्तार 'युगवीर' का स्वर्गवास जानकर अपार दुःख घूमने की सलाह दी। वही समय उनकी सामायिक का हमा । मुख्तार सा० ने ५० वर्ष से अनवरत जन संस्कृति था-अतः यह स्थिर हुआ कि वे ५ बजे वीर सेवामन्दिर की सेवा में अपने जीवन को समर्पित कर जैन साहित्य मे घूमने निकलेगे और गाधी समाधि के १-२ चक्कर इतिहास और समन्तभद्रभारती का जो महान कार्य किया लगाने के बाद वही सामायिक करेगे । वर्षा ऋतु थी, एक है उससे उनकी कीर्ति ऊपर रहेगी। अन्य परीक्षा और दिन वे छतरी ले जाना भूल गये और घूम करके जैसे मेरी भावना तथा अनेकान्त पत्र उनके अपूर्व कार्य है। ही सामायिक को बैठे कि पानी बरसना प्रारम्भ हो गया। विद्वानों के लिये वे अनुपम प्रादर्श थे। मैं उनके प्रति मै उस दिन उनके साथ नहीं जा सका था--अतः पानी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
बरसने पर मेरा ध्यान उनकी अोर गया और देखा कि वे