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________________ २०६ मनेकान्त खोल सकता था तब ऐसे समय मुख्तार सा० ही एक ऐसे सच्ची लगन आदि गुणों के स्वामी थे। उनका माचरण व्यक्ति थे, जिन्होंने निडरता के साथ जैन शास्त्रों पर कुछ एक सच्चे जैन का प्राचरण था। और अब तो वे सातवी ऐसे ट्रैक्ट लिखें जिनको प्राज भी कोई नही लिखता जितनी ब्रह्मचर्य प्रतिमा का पालन कर रहे थे। उनका प्राचार बारीकी के साथ मुख्तार सा० ने जैनधर्म के सिद्धान्तों और ज्ञान उच्च कोटि के थे । उनकी सेवायें जैन इतिहास को समझा था, शायद ही प्राज तक किसी विद्वान ने में अमर स्थान पायेंगी। समझा हो, वह जो कुछ लिखते थे निडरता और खोज- मेरा उनसे साठ वर्ष से अधिक समय से परिचय था पूर्ण लिखते थे। और वीरसेवामन्दिर की दिल्ली में स्थापना के पश्चात् उनसे गहरा सम्बन्ध हो गया था। प्राशा है जैन समाज मुख्तार साहब ने केवल ६०-७० वर्ष बराबर जैन और वीरसेवामन्दिर उनका यथोचित स्मारक स्थापित साहित्य की बहुमूल्य सेवा ही नही की बल्कि अपनी तमाम करेगे और उनकी अधुरी और अप्रकाशित सामग्री की सम्पत्ति जैन साहित्य के उद्धार और प्रचार के लिए भी सुरक्षा तथा प्रकाशन का प्रबन्ध करेंगे, मैं उनके प्रति अपनी अर्पण कर दी है। मुख्तार सा० की सेवाये जैन समाज हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। के इतिहास में अमर रहेगी और स्वर्ण अक्षरों में कित की जायेगी। उनकी क्षति पूर्ति होना असम्भव है । बाबू माईदयाल जैन बी. ए. ऑनर्स लाला राजकृष्ण जी जैन साहित्याचार्य पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार से मेरा परिचय दिल्ली में सन् १६२१-२२ मे उस समय हुआ था साहित्याचार्य पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार के स्वर्ग- जब वे प्राचार्य समन्तभद्र की जीवनी लिखने में व्यस्त वास का समाचार समस्त जैन समाज और साहित्य प्रमी थे। पंतालीस वर्ष की लम्बी अवधि में हजारो बार उनसे संसार मे शोक से सुना गया है। उन्होने अपनी लोह मिलने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। मेरा उनका बड़ा लेखनी के द्वारा जनधर्म, जैन साहित्य, जैन पुरातत्व और । निकट का सम्बन्ध था। मै उनकी साहित्यसेवा, ग्रन्थ पत्रकारिता आदि की सेवा सत्तर वर्ष से भी अधिक समय परीक्षा, पुरातत्व सम्बन्धी खोजों और पत्रकारिता से इतना तक की। वे ६२ वर्ष की अवस्था में भी साहित्य सेवा में प्रभावित था कि उनके दर्शन और वीर सेवामन्दिर सरलगे हुए थे। उन्होने बहुत से अप्राप्त जैन शास्त्रो की सावा तथा दिल्ली की यात्रा को तीर्थयात्रा तुल्य समझता खोज करके उनका उद्धार किया। जैन आचार्यों के समय था और हर बार उनसे कुछ न कुछ प्रेरणा पाता था। तथा उनकी रचनायों के बारे में उनके निष्कर्ष और निर्णय मेरे हृदय पर उनके शास्त्र ज्ञान, उच्चाचरण, साहित्यसेवा, इतने सप्रमाण है कि भावी विद्वानों के लिए वे बड़े उप- लगन, जैन धर्म में आस्था और प्रथक कार्य शक्ति की योग की सामग्री होंगे। कई ग्रन्थों की युक्तियुक्त तथा गहरी छाप पड़ी थी। मैं उनका भक्त था और उनसे सप्रमाण परीक्षा लिखकर उन्होंने साहित्यिक भ्रष्टाचार और अत्यन्त आदर तथा श्रद्धा से मिलता था और हर एक भेट धार्मिक अन्धविश्वासको दूर किया । अपने अध्यवसाय और को अपना सौभाग्य समझता था। उनकी सेवाये अमर लगन पूर्वक अध्ययन से वे सस्कृत, प्राकृत और अपभ्रश रहेंगी। समाज और वीरसेवामन्दिर को उनके प्रति अपने भापात्रों के महाविद्वान और जैन साहित्य के प्रकाण्ड कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए और उनकी अधूरी या प्राचार्य बन गये। वे जैन गजट, जैन हितैषो के सम्पादक अप्रकाशित रचनाओं को प्रकाश मे लाना चाहिए। मुख्तार तथा अनकान्त के संस्थापक और सम्पादक थे । वीर सेवा- साहब की जीवनी तयार कराये जाने की भी बड़ी आवश्यमन्दिर की स्थापना करके उन्होने जैन साहित्य की दीर्घ- कता है। उनके स्वर्गवास से जो क्षति समाज को हुई है, कालीन सेवा का मार्ग खोल दिया। वे सादा रहन-सहन, उसे पूरा करना अत्यन्त कठिन है। मैं उनके प्रति अपनी मितव्यता, परिश्रम, विरोधों का डटकर सामना करने और हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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