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कतिपय भाजलियां
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निष्ठा, उत्तरदायित्व का ध्यान, गुणज्ञाता, निरभि- श्री पं० अमोलकचन्द्र जी मानता, सरल परिणाम वृत्ति, वाणी-माधुर्य बहुत से ऐसे पंजीधर जी शास्त्री-इन्दौर गुण थे जिससे कि विरोधी विचारधारा वाला भी बरवस श्री वीर सेवामन्दिर ट्रस्ट के संस्थापक श्री मुख्तार मापके प्रति झुक जाता था। आपकी सामाजिक सगठन सा. के स्वर्गवास से जैन समाज को बड़ी क्षति की उत्कट भावना, कार्यक्षमता, उत्तरदायित्व की सम्हाल, पहची है। उनकी धार्मिक, सामाजिक, पोर जिनवाणी की गुरुभक्ति, सच्चरित्र-निष्ठा, शास्त्रपठन, तथा भाषण कुश- अपूर्ण सेवाए कभी भुलाई नही जा सकेगी। लता की छाप समाज पर सदैव रहेगी।
प्रो० खुशालचन्द्र गोरावाला-वाराणसी पं० पन्नालाल जी जैन साहित्याचार्य
___ 'माज एक युग समाप्त हो गया, क्योंकि जैन वाङ् मंत्री श्री भा०वि० जैन विद्वत्परिषद् सागर,
मय का सेवक 'युगवीर' उठ गया।" मब 'वीर-युग' को विद्वद्वरेण्य श्री पं० जुगलकिशोर जी मुख्तार जैन
लाने के लिए कौन सतत लेखनी लिए सन्नद्ध रहेगा। वाङ्मय के स्वयबुद्ध विद्वान थे। उन्होने अतरङ्ग की प्रेरणा से जैन शास्त्रो का गहन अध्ययन कर अपने ज्ञान
बाबू नन्दलाल जी सरावगी-कलकत्ता
का को विकसित किया था । धर्म, न्याय, साहित्य और इति
पडित जी ने तो सारा जीवन जैन साहित्य की खोज हास आदि सभी विषयो मे उनकी अप्रतिम गति थी। तथा छपवाने में हा लगाया। मरा समझ म अब उनका उनके द्वारा रचित विशाल साहित्य उनके अभीक्ष्णज्ञानो- सी लगन का दूसरा पडित समाज में नजर नही पाता। पयोग को सूचित सरता है। समन्तभद्राचार्य के प्रति प्राप उन्होंने तन-मन-धन तीनों को ही शास्त्रोद्धार मे लगाया, की विशेष प्रास्था थी। आप साहित्य महारथी थे । प्रापने एस
मिले ऐसे उत्तम कार्यकर्ता का स्थान पूर्ण नहीं हो सकेगा। अपनी सम्पत्ति का बह भाग समर्पित कर वीरसेवा- डा० भागचन्द्र जी जैन-नागपुर मन्दिर की स्थापना की तथा उसके माध्यम से 'अनेकान्त' स्व० मुख्तार सा० की अमूल्य सेवाग्रो से जैन समाज पत्र का प्रकाशन कर विद्वानो के लिए विचारणीय सामग्री कभी उऋण नही हो सकता । समाज मे चतुर्मखी जाग्रति प्रस्तुत की थी। आपने ६१ वर्ष की वृद्धावस्था मे भी विस्तर पैदा करने में उनका बहुत बडा हाथ है। पर पड़े-पडे 'योगसारप्राभूत' नामक ग्रथ को तैयार कर ,
र बाबू जुगमन्दिर दास जी जन-कलकत्ता समाज को दिया है जो ज्ञानपीठ से प्रकाशित है। आपके
पडित जी की लेखनी मे जादू का मसर था। उनकी उठ जाने से जैन समाज की एक अपूरणीय क्षति हुई। सेवाए समाज को चिरस्मरणीय रहेगी। उनके निधन से बाबू नेमिचन्द्र जी वकील-सहारनपुर
जो क्षति हुई है उसकी पूर्ति होना कठिन है। श्रद्धेय मुख्तार सा० की मृत्यु से समाज को बडी क्षति
१०परमेष्ठीदास जी-ललितपुर पहुची है जिसकी पूति असम्भव है। उनका जीवन बडा सात्विक एव पवित्र रहा है। वह बड़े कर्मठ कार्यकर्ता
___ माननीय मुख्तार साहब ने पहले जैन वाङ्मय की थे तथा अनथक थे। उन्होने सर्वदा श्री जिनवाणी की
जो सेवा की है उतनी सेवा बीसवी शताब्दी में शायद
किसी अन्य ने नहीं की है । जैन समाज और जैन साहित्य सेवा की है और अन्तिम समय तक बराबर करते रहे।
प्रिय लोग मुख्तार मा० के सदा ऋणी रहेगे। इस आयु मे भी यह जितना सात्विक कार्य करते थे, उतना पाज का नवयुवक भी नहीं कर सकता। अन्त तक लाला पारसदास जा जन माटर वाले उनका दिल व दिमाग सही कार्य करता रहा, और उनकी
मुख्तार सा० के निधन से जैन समाज की जो क्षति लेखनी से बराबर मार्मिक एवं प्रामाणिक साहित्य का ही हुई । वह पूर्ण होना असम्भव है। सृजन होता रहा है। ऐसी महान प्रात्माओं का ही मनुष्य श्री उग्रसेन जी मन्त्री जैन समाज-लखनऊ जीवन सफल तथा सार्थक है। वह धन्य हैं।
समाज सुधार के बारे में जब कोई जबान ही नहीं