________________
२०४
अनेकान्त
निधन से हुई क्षति की पूर्ति असंभव है। मेरे प्रति उनका शोधे प्रकाशित की । वे सतत समन्तभद्र-भारती के प्रचार पुत्र के समान स्नेह रहा। उनके प्रभाव में सारा समाज में दिन-रात संलग्न रहे । उनकी सैकड़ों कृतियाँ आदरणीय ही अनाथ हो गया । यों ही दि० जैन समाज विद्वानों के है। शास्त्रीयज्ञान भी उनका मजा हुआ था। प्रभाव से ग्रस्त थी, उनके निधन ने उस प्रभाव को और बढ़ा दिया । मैं दिगवंत मात्मा के शान्ति लाभ की श्री
पं. जगनमोहनलालजी जैन प्राचार्य-कटनी वीरप्रभु से प्रार्थना करता हूँ। मेरी भावना का जब-जब
मुख्तार साहब हम सबके पिता थे। उनकी धर्म, पाठ करता हूँ उनका स्मरण तो सहज मा ही जाता है,
समाज व साहित्य सेवा अपनी उपमा नहीं रखती। बे अविस्मरणीय है।
उनका दिवंगत होना सारे दिगम्बर जैन समाज की
अपूरणीय क्षति है। ब. सोहनलालजी जैन ईसरी
. सर सेठ भागचन्द्रजी सोनी-अजमेर : श्रद्धेय मुख्तार सा० जैसे दिग्गज विद्वान व ज्ञानरूपी। सूर्य आज दिवगत हो गया, इतिहास के पुरातत्व की श्री प० जुगलकिशोरजी मुख्तार 'युगवीर' के निधन शोधक प्रात्मा इस युग मे अपना चमत्कारिक ट्रस्ट स्थापित के दुःखद समाचार जानकर दुःख हुमा, वैसे तो वे वयोवृद्ध कर युग-युगान्तर के लिए अपना अस्तित्व छोड़ गये, जो ही थे, जिनवाणी की सेवा के प्रसार से उन्होने अच्छी प्राय हमे उनकी अनुपम देन है और उनके इस पथ पर चलकर प्राप्त की और अन्त समय तक वे इसी सेवा मे रत रहे. हम उनको हृदयाङ्गम कर सके और प्रसार मे ला सके यह सौभाग्य इस काल मे विरले ही पुण्यशाली को प्राप्त यही मेरी अन्तिम कामना है। उनके आयोजनों को हम
होता है । जैन ससार से एक महान विद्वान जिनवाणी का आगे बढ़ावे, इसी में हमारी शोभा है।
सेवक उठ गया। यह जैन समाज की महान क्षति है ।
उनकी जैन साहित्यिक कृतियाँ ही उनके नाम को सदैव डा. हीरालालजी जैन जबलपुर :
अजम-अमर रखेगी। स्व. मुख्तार साहब अपने आपमे एक महान् जैन संस्थान ही थे। तथा उन्होंने अपना समस्त जीवन जैन- ५०
पं० वंशीधरजी व्याकरणाचार्य-बीना (सागर) साहित्य की सेवा में ही व्यतीत किया। उनके स्वर्गवास से समाज से एक ऐमा साहित्य-सेवी उठ गया है जिसने सामाजिक वा साहित्यिक क्षेत्र में जो कमी हुई है, उसकी
समाज के विद्वानों को सकृति और साहित्य के विषय मे पूर्ति होना कठिन है।
सोचने की नवीन दिशा प्रदान की और जिसने न केवल
नि.स्वार्थ भाव से अपितु अपने ही सम्पूर्ण द्रव्य को साहित्य पं० माणिकचन्द्रजी न्यायाचार्य-फिरोजाबाद
के विकास में लगाकर जीवनभर केवल साहित्य की ही सेवा श्री मुख्तार जैसे महान् पुरुष का वियोग हो जाना की । जीवन का अन्तिम क्षण भी उनका साहित्य सेवा में जैन समाज का महान दुर्भाग्य है। इन सौ वर्षों मे ऐसा
लगा रहा । यद्यपि वे आर्थिक मामले में अत्यन्त कंजूसी
लगा रहा । यद्यपि वे प्राधिक मामले में : पुरुषार्थी, दि० जैन धर्म-प्रभावनारत, अभीषण ज्ञानोपयोगी से कार्य करते थे, उनका अन्य लोगों के साथ आर्थिक सज्जन एक जुगलकिशोरजी ही मिले थे। अब उनके मामले में व्यवहार भी बहुत कड़ा था पर यह साहित्य स्थान की प्रति होना अशक्य है। अनेक प्राचार्यों की के विकास के लिए वरदान रूप ही था । गवेषणा का उन्होंने पुरातत्त्व-सामग्री से विलोड़न कर ठोस धर्म 'रहस्य अमृत' का उद्धार किया। उन्होने, साहू श्रेयांसप्रसादजी-बम्बई : जितेन्द्रिय, ब्रह्मचारी, निःस्वार्थ-संवी बनकर जिनागम- आदर्श महापुरुष मुख्तार सा. के स्वर्गीय हो जाने से रहस्योद्घाटन की घनघोर तपस्या की। उन्होंने अल्पवय जैन समाज में से एक नर-रत्न का प्रभाव हो गया है। में पुष्कल धनोपार्जन कर अनेक विद्वानों की ऐतिहासिक मार में धार्मिक-लगन, समाज के प्रति गाढ़ स्नेह, कर्तव्य