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________________ कतिपय भांजलियां २०३ कर लिया वह हम लोग ३-४ जन्म लेकर भी शायद न कर रखते थे । स्वर्ग में शान्ति होती भी नहीं है-यह तो सकें। वे कर्मण्यता की प्रतिमूर्ति थे। उनकी पावन स्मृति केवल संसारी भोगाभिलाषी जीवों की कल्पनामात्र है। में मैं अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। बाबूजी ने तो अवश्य किसी विद्वान के परिवार में (यहीं श्री हीरालाल जोकौशल-वेहली पर या विदेह क्षेत्र में) मानवपर्याय ही धारण की होगी। स्व० मुख्तार सा० जैन साहित्य और इतिहास के जिन वाणी माता के मन्दिर को उन्होंने यहाँ साफ महान विद्वान थे। प्रथित इतिहासज्ञ थे। वे अपनी किया मोर सजाया। वीतराग विज्ञान के विद्यार्थी पौर महत्वपूर्ण कृतियों के कारण अमर है, उनकी सेवाएँ हमारे लिए प्राध्यापक-उनका जीवन हमारे लिए पूजभुलाई नहीं जा सकती। नीय और आदर्श था। सुबोधचन्द जी जैन साहित्य विकास मण्डल बम्बई नेमचन्द षन्नुसा जैन : श्रीमान् युगवीर जुगुलकिशोर जी के निधन का मुख्तारसा. के चले जाने से हमारे समाज की समाचार पढ़कर अतिशय खेद हा। उनके चले जाने से बडी हानि हुई है। वे एक खवीर नेता थे। तथा 'मेरी जैन समाज ने एक महा विद्वान खो दिया है। भावना' के रचयिता के नाते आबाल वृद्धो के मुख मे थे । भगवान जिनेन्द्र के प्रति उनकी भक्ति उनके ससार समन्तभद्र भारती के सब प्रकाशन उनकी देन है । को अल्प करके शाश्वत सुख के स्वामी बनायेगी यह आचार्य श्री समंतभद्र स्वामी के जीवन पर आपने पूरा निश्चित है। प्रकाश डाला है, इतना ही नहीं उनके पूरे लिखान मे वे सुकमाल चन्द्र जी जैन : समरस हो गये थे । गधहस्तीमहाभाष्य कही अवश्य मिल पूज्य बाबूजी मृत्यु को महोत्सव कहा करते थे और जायगा ऐसा उनका मनोदय था। इस प्राशा से उन्होंने समाधिमरण की भावना व्यक्त किया करते थे। उनका दक्षिण में सुदूर तक भाषा की अडचन होते हुए भी प्रवास निधन सामयिक भी था। मेरे जीवन मे तथा समाज के किया था। इस अवसर पर उन्होंने बहुत परिश्रम से जिनवाणी माता की सेवा की और अनेक अलभ्य और जीवन में उनके निधन से एक प्रभाव समुपस्थित हो जाने पर भी हमारे लिए दुख करने का जैन धर्म द्वारा निषेध अप्रकाशित ग्रथों को प्रकाश में लाया । स्व. मुख्तयारजी उनके कृति के रूप में अभी भी अमर रहेगे । मैं उन्हें है क्योकि दुख, शोक, ताप, प्राक्रन्दन आदि क्रियामों से असातावेदनीय कर्म का प्रास्रव और बध होता है। अपनी श्रद्धाजलि अर्पित करता हूँ। यह समाज की अज्ञानता और अदूरदर्शिता है कि कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर : उसने उनके इतने लम्बे जीवन मे उनके साथ समचित पूज्य मुख्तार साहब का स्वर्गवास उनके लिए शान्तिसहयोग नहीं किया और उनसे यथोचित लाभ नही धाम की यात्रा है और हम सबके लिए एक गहरी हानि । उठाया। अबभी यदि समाज उनके शेष रह गये कार्यों को उनका जीवन शोक का नही, गौरव का हकदार है । हमें पूरा करने में जुट जाय तो उसका भी कल्याण हो जाय। उनपर गर्व हैं । वे बहुत कुछ कर गये । उनका प्रादर्श बाबूजी की भव्य आत्मा को पूर्ण शान्ति थी; क्योंकि हमे बहुत कुछ करने की प्रेरणा देता है । वे तो अदम्य उत्साह के साथ अपने लक्ष्य मे अनवरत पं०वंशीषरजी एम० ए० कलकत्ता : परिश्रम करते रहते थे। मुझे भी उस शान्ति का लाभ समाज की प्रसिद्ध साहित्यिक विभूति श्रद्धेय मुख्तार पहुँचता रहता था किन्तु यह सुविधा गत तीन वर्ष से जी के देहावसान का समाचार विदित कर बहुत दुख मुझसे दूर हो गई थी। बह शान्ति उनके साथ अवश्य हा । समाज का यह भारी दुर्भाग्य है कि वह एक कर्मठ गई होगी। किन्तु पूज्य बाबुजी स्वर्ग में नही गये होंगे ठोस सेवाभावी, साहित्यिक, लेखक व अन्वेषक विद्वान की गोंकि वे निठल्ले बैठकर भोग भोगने की भावना नहीं महान सेवाओं से सदा के लिए वंचित हो गया। उनके
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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