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________________ २०२ अनेकान्त मुझे विश्वास है कि वीर सेवा मन्दिर के कार्यकर्ता आज लाखों व्यक्तियों का कण्ठहार बनी हुई है और वह उनकी भावना के अनुसार उस अमर ज्योति के कार्यों को उन्हें नित नई प्रेरणा देती रहेगी। पूरा कर दिवंगत आत्मा को शक्ति प्रदान करेंगे । मुख्तार सा० ने जो कुछ भी लिखा वह, साहित्य अन्तमें मैं उस महान् योगी के प्रति अपने श्रद्धा सुमन अमर हैं, उनके निष्कर्ष अकाटच हैं । उनकी गौरव गरिमा अर्पित करता हूँ कि उनका गुण प्राप्त कर सकू। अक्षुण्य एव अमलान है । वे किसी एक जमीन, एक सम्प्रदाय मुझे विश्वास है कि वर्तमान वीर सेवा मन्दिर-ट्रस्ट के नहीं थे, वे राष्ट्र के साहित्य-जगत के एक ऐसे देदीप्यके संचालक गण इस विषय की ओर अवश्य ध्यान देगे। मान नक्षत्र थे, जिन पर युग को, इतिहास को, सदा गर्व इस प्रकार उनके प्रति समाज की हार्दिक श्रद्धांजलि हो रहेगा। सकेगी पोर मुख्तार सा० के अधूरे कार्य भी पूरे हो सकेंगे। श्री माणिकचन्द जी चवरे कारंजा सन्मानीय विद्वदवर्ग विचक्षण पडित थी जुगलकिशोर डा० विद्याधर जोहरापुरकर : जी 'युगवीर' का २२ दिसम्बर रविवार को स्वर्गवास पादरणीय प० जुगलकिशोर जी मुख्तार जैन इतिहास पटक लकिशार जो मुख्तार जन शतहास पढ़कर अत्यन्त दुख हुआ। के निर्माताओं मे अग्रणी है। उन्होंने तथा स्व० ५० नाथू श्रीमान् पडित जी ने आयु के अन्तिम क्षण तक राम जी प्रेमी ने जैन हितैषी और अनेकान्त द्वारा जैन जैन साहित्य, तत्त्वज्ञान तथा इतिहास आदि के विषयक साहित्य की जो सेवा की वह वास्तव मे अमूल्य है। जैन बहुमूल्य अभ्यासपूर्ण शास्त्रो की निर्मिती की। विशेषतः विद्वत्समाज मे उनका वही महत्त्व है जो सस्कृत पण्डितों प्राचार्य शिरोमणि श्री रामत भद्राचार्य जी के समस्त ग्रन्थो मे स्व. डा० भण्डारकर का था। उन्ही के भगीरथ का वर्षों धीर गम्भीरता से पालोडन करके जो ग्रन्थों का प्रयत्नों का यह फल है कि आज जैन साहित्य का हमारा वैशिष्ट्य पूर्ण सम्पादन किया वह अपने रूप में बेजोड़ है। ज्ञान दन्तकथानों के स्तर से ऊपर उठ कर इतिहास के इसी प्रकार अनेकान्त का सम्पादन भी मुरुचिपूर्ण अपने ढग दर्जे तक पहुँच सका है। इन दोनो महापण्डितों के प्रत्यक्ष का वैशिष्ट्यपूर्ण ही रहा । इतिहास तथा सस्कृति के विषय दर्शन का अवसर हमे एक एक बार ही मिला किन्तु उनके में भी अनेक शोध-प्रवन्ध अपूर्व रूप ही प्रतीत हुए । साहित्यिक कार्य से हमारा सपर्क प्रायः प्रतिदिन ही पाता श्रीमान् पडित जी की 'मेरी भावना' एक अमर कृति है। मुख्तार जी ने जैन शासन के प्रेरणादायी सन्देशो को ही है अपने रूप में स्वय पूर्ण है। साहित्यिक सर्जनमात्र 'मेरी भावना' मे जिस प्रभावशाली ढग से शब्दबद्ध किया के लिए ही पडित जी का जीवन सीमित नहीं रहा। है वह भी बेमिशाल है। यह रचना निःसन्देह रूप से स्वसम्पादित सारा धन पवित्र कार्य के लिए निष्ठापूर्वक बीसवी शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय जैन कृति कही अर्पित करके आपने एक दान और त्याग का आदर्श जायेगी। समाज के लिए प्रस्तुत किया है। श्रीमान पडित जी का पं० बलभद्र जी जैन-आगरा स्वर्गवास यह वैयक्तिक हानि नहीं है । यह एक सामाजिक मुख्तार साहब एक युग पुरुष थे। उन्होंने जो साहित्य अपूर्णीय क्षति है। देवा की, प्राचीन जैन प्राचार्यों की जो प्रामाणिक शोध- श्री प्रेमचन्द जी जैनावाच-बेहली खोज की, सामाजिक सुधारों क भत्र में जो बहुमुखी क्रान्ति मस्तार सा० एक अद्वितीय विभति व सरस्वती के की. उन सबने नये-नये कीतिमान स्थापित किये हैं। उन्होंने महान उपासक रहे, उनका सारा जीवन साहित्यिक खोज समाज की रूढ परम्परामों को अपने साहस और व्यक्तित्व में ही व्यतीत हमा। उनकी साहित्य-साधना अपूर्व और से आमूल झकझोर कर जैन समाज को प्रबुद्ध दिशा प्रदान अमर है । मैं उन्हें हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। की। निश्चय ही यह युग 'युगवीर' युग के नाम से इतिहास श्री नीरज जी जैन-सतना में सदा स्मरण किया जाता रहेगा। उनकी मेरी भावना श्रद्धेय मुख्तार सा० ने अपने जीवन में जिनका जो,
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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