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कतिपय बांजलियां
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श्री जुगकिशोर जी मुख्तार के स्वर्गवास का समाचार कार्य अनुपम मद्वितीय है। जैन साहित्य और इतिहास पर अवगत कर हार्दिक दुःख हुआ। मुख्तार सा० द्वारा की विशद प्रकाश' भी उनकी अत्यन्त महत्वपूर्ण पुस्तक है। गई साहित्य-सेवा चिरस्मरणीय रहेगी। उनका यश: जैन साहित्य के क्षेत्र में ऐतिहासिक शोध की दृष्टि से शरीर इस जगत में कल्पान्त काल तक स्थित रहेगा। मै उन्होंने एक अत्यन्त महत्वपूर्ण दिशा दान किया।... दिवंगत आत्मा की शान्ति और सद्गति प्राप्ति की शुभ हम लोग निज जीवन में स्व० मुख्तार साहब से प्रेरणा कामना करता है।
ग्रहण करते रहकर निरन्तर साहित्य एवं समाज-सेवा मे
निरत रहे यही भावना है। बाबू प्रेमचन्द जी जैन मंत्री-वीर-सेवा।मन्दिर
पं० जयन्ती प्रसाद जी शास्त्री मुझे यह जानकर अत्यधिक दुःख हुआ कि जैन समाज
प्राच्य-विद्या-महार्णव, अनविकी लेखनी के घनी, प्रथक के साहित्य सेवी वयोवृद्ध विद्वान प० जुगलकिशोर जी मुख्तार
परिश्रमी पूज्य आचार्य ५० जुगलकिशोर मुख्तार, जैनधर्म का २२ दिसम्बर रविवार को देहावसान हो गया। वे कर्मठ
के गौरव के रूप मे सदा स्मरण किये जाते रहेगे । समय साहित्य-सेवी, जैन साहित्य और इतिहास के मर्मज्ञ विद्वान
समय पर उनका प्रभाव सदा खटकता रहेगा । उनकी सूक्ष्म थे, उनके द्वारा लिखित पुस्तके और लेखादि सप्रमाण होते थे,
दृष्टि कभी भुलाई नही जा सकेगी। उन्होंने जो साहित्य-समीक्षाए लिखी है वे बेजोड है । वेप्रबल
मुझे उनके सानिध्य में रहने का अवसर मिला था सुधारक तथा वीरसेवान्दिर जैसी सस्था के सस्थापक थे।
मैने उन्हे निकट से देखा था समझा था और उनका और रात दिन साहित्य सेवा में व्यतीत करते थे। उनकी जीवन चर्या निराली थी। जैन धर्म के सुदृढ श्रद्धानी और
आशीर्वाद पाकर आगे बढ़ने का प्रोत्साहन पाता रहा था। समन्तभद्राचार्य के अनन्य भक्त थे, और उनकी भारती के
वह प्रातः स्मरणीय प्राचार्य समन्तभद्र के अनन्य उपासक सम्पादक, अनुवादक थे। आपने स्वामी समन्तभद्र का इति
थे उन्होने उनके ग्रन्थो का गम्भीर अध्ययन और मनन हास इतना अच्छा और प्रामाणिक लिखा है : साथ ही अनेक
किया था उनके शब्दो की प्रात्मा को समझा था। प्राचार्यों के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण प्रकाश डाला है। उनकी मुख्तार सा० ने जो कुछ लिखा वह सब प्रामाणिक एव लोह लेखनी से जो कुछ साहित्य सजित हा वह उच्च युक्तिपूर्ण ढंग से लिखा । धर्म के अनेक विवादों को अपनी कोटि का और नपे-तुले शब्दो मे लिखा गया है। वे जीवन सूक्ष्म दृष्टि से सुलझाया, उनके शोध-खोज पूर्ण लेखों का के अन्तिम क्षणो तक साहित्य सेवा मे सलग्न रहे । यद्यषि लोहा जैन समाज मर्मज्ञों ने ही नहीं माना; बल्कि जैनेतर अस्वस्थता के कारण उनका शरीर इतना काम नहीं दे रहा विद्वान् मा मानते ।
विद्वान् भी मानते थे। उनके लेखो का प्राधार लेकर ही था पर उनका दिल और दिमाग बराबर कार्य कर रहे थे।
अनेक विद्वानों ने पी. एच. डी. पाने में परोक्ष रूप से श्रद्धा
अ उन जैसा निश्वार्थ समाजसेवी समाज मे दूसरा विद्वान
प्राप्त की, उनके अनेक भक्त बन गये । नही है। उनके रिक्त स्थान की पूर्ति होना असभव है।
उनका विचार था कि दिल्ली मे वीर सेवा मन्दिर की मैं उन्हें अपनी और सस्था की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित
स्थापना हो जाने से वे अपनी भावना को साकार बनाये। करता हूँ।
जैन समाज के गण्यमान विद्वानों के साथ अनेक गुत्थियों को
सुलझाये परन्तु यह सब न हो सका, फिर भी मै अब यह डा० विमलप्रकाश जी जैन, जबलपुर
आवश्यक समझता हूँ कि उनके द्वारा संस्थापित वीर सेवा स्व० श्रद्धेय मुख्तार साहब से मेरा जीवन में कभी मन्दिर ट्रस्ट को वीर सेवा मन्दिर-सस्था के साथ सम्बद्ध साक्षात् परिचय नहीं हुमा । उनकी साहित्य-सेवा से सारा कर उस संस्था को एक शोध संस्थान का रूप दे दिया जैन विद्वत समाज परिचित है। स्वामी समन्तभद्र रचित जाय । जिससे पूज्य मुख्तार सा० की प्रान्तरिक भावना साहित्य को श्रेष्ठ रीति से प्रकाशित करने का उनका पूर्ण हो और इस संस्था के उद्देश्य की भी पूर्ति हो।