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कतिपय भांजलियां
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भावना संस्था द्वारा इतिहास और प्राचीन साहित्य के अनुपम कृतियो को नूतन विद्वत्तापूर्ण एवं नई खोजों के अनुपलब्ध ग्रंथों का अन्वेषण कर उन्हें प्रकाश में लाना साथ समाज के सामने रखना पाप का ही कार्य था। मै था, जिससे जैन संस्कृति की महत्ता ख्यापित हो। समझता हू निकट भविष्य में श्री मुख्तार साहब के स्थान
वे अनेकान्त के संस्थापक और सम्पादक थे। उसमें की पूर्ति होना संभव नहीं है। प्रकाशित लेखों द्वारा जैन साहित्य और इतिहास की डा० ज्योतिप्रसाद जी लखनऊ : अनेक गुत्थियां सुलझाई गई, अनेक अनुपलब्ध ग्रन्थों का अन्वेषण कर प्रकाश में लाया गया, और अनेक
प्राक्तन विद्या विचक्षण, वाइमयाचार्य, सिद्धान्ताचार्य
आदि उपाधि विभूषित स्वर्गीय आचार्य जुगलकिशोर जी प्राचार्यों, विद्वानो भट्टारको और कवियो का परिचय भी।
मुख्तार 'युगवीर' स्वामी समन्तभद्र के अनन्य भक्त, प्रकाशित किया गया।
समन्तभद्र भारती के अद्वितीय उद्योतक, महान् पाराधक, मुख्तार साहब स्वय एक साहित्य सस्था थे। निर्भीक
सुकवि, टीकाकार, समालोचक, सम्पादक साहित्यकार, लेखक और शोधक थे। वे साहित्य सृजन मे इतने सलग्न
समाजसुधारक, स्थितिप्रज्ञ साधक और नि.स्वार्थ सस्कृतिएव तन्मय हो जाते थे कि उन्हें उस समय बाह्य बातो का
सेवी थे। ११ वर्ष की दीर्घ आयु मे उनका निधन न कुछ भी ध्यान नही रहता था। वे सच्चे अर्थो मे युगवीर
आकस्मिक ही था और न असामयिक ही। तथापि उसके थे । मैं उन्हे अपनी हार्दिक श्रद्धाजलि अर्पित करता हूँ।
फलस्वरूप भारतीय विद्या के क्षेत्र को और विशेष कर श्री पं० बालचन्द जी सिद्धान्त शास्त्री
जैन जगत को जो क्षति पहुँची है वह अपूरणीय है । उनका ___ साहित्यतपस्वी श्रद्धेय मुख्तार सा० बहमुखी प्रतिभा के सफल जीवन एवं कृतित्व वर्तमान तथा भावी पीढियो के धनी थे। वे अन्तिम समय तक साहित्य साधना मे निरत लिये एक सबल प्रेरणास्रोत एव पालोक पुज्ज बना रहेगा, रहे है । यद्यपि मुख्तार सा० आज हमारे बीच मे नही है, इसमे कोई सन्देह नहीं है। इस महामनीषी चिरसाधक पर उन्होने जो ऐतिहासिक क्षेत्र मे अभूतपूर्व काम किया की पुनीत स्मृति मे अपनी विनम्र श्रद्धाजलि समर्पित करने है वह इतिहास में अमिट रहने वाला है । उससे सशोधको ___ का अवसर प्राप्त करना भी परम सौभाग्य है ----वैसा करते का मार्ग प्रशस्त व निरापद हो गया। प्रख्यात इतिहास- हुये मै अपने आपको धन्य मानता हूँ। कार होने पर भी उनकी तकणाशक्ति व वैदुप्य कुछ कम
प० विजयकुमारजी चौधरी एम.ए. नही था। इसी के बल पर उन्होने युक्त्यनुशासन व
शान्तिवार जैन गुरुकुल, जोबनेर : देवागमस्तोत्र जैसे ताकिक ग्रन्थो के साथ तत्त्वानुशासन और योगसार-प्राभूत जैसे अध्यात्मप्रधान सैद्धान्तिक ग्रन्थों
वीर वाङ्मय की साधना में निरन्तर लीन रहने वाले पर भी उच्चकोटि की व्याख्याओं की रचना की है। वे इस
" इस महान् साहित्य तपस्वी प्राचार्य जुगलकिशोर जी
मुख्तार के वियोग से जैन साहित्य ससार पर अनभ्र वज्रजो सुधारक माने जाते थे सो यथार्थ में ही सुधारक थे। पु उनका त्यागमय जीवन अतिशय धार्मिक रहा है। ऐसे ।
पात हुआ है । श्री मुख्तार साहब ऐसे दधीचि थे जिन्होने स्थितिप्रज्ञ के प्रति स्वभावतः नतमस्तक हो जाना
साहित्य देवता की प्रागधना में अपना सर्वस्व अर्पित कर
दिया। जैन साहित्य के तो वे महारथी थे। उन्होंने दि० पड़ता है।
जन प्राचार्य परम्परा के विलुप्त एव अनुपलब्ध इतिहास रा० ब० सेठ हरखचन्द जो पाण्ड्या रांची
को जिस गहराई के साथ खोजकर उसे सकलित किया मुख्तार सा० सचमुच में युगवीर, साहित्यमनीषी, उससे जैन सस्कृति का महान उपकार हुआ है । इस महान् समाजसेवक एवं आदर्श विद्वान थे। उनका जीवन इतर साहित्य तपस्वी की साधनामों का पूरा उल्लेख लेखनी से विद्वानों के लिये प्रेरणा प्रद था। वयोवृद्ध अवस्था में भी हो नहीं सकता। अब हमारे पास इसके सिवाय क्या चारा निरंतर साहित्य-सेवा में जुटे रहते थे। पूर्वाचार्यों की है कि हम उनके पुण्य-स्मरण से प्रेरणा प्राप्त करें। स्वर्ग