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कतिपय पांजलियां
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निर्मल हो मोर जो समष्टि के हितों में व्यष्टि का हित थे। लेकिन उनका यह स्वप्न कि वीरसेवामन्दिर मौर मानता हो।
___उसका मुखपत्र 'अनेकान्त' लोकोपयोगी बने, अभी तक मुख्तार सा० के जीवन के अधिकांश वर्ष सरसावा अधूरा पड़ा है। उसे पूरा करने की मावश्यकता है। यह और देववन्द में व्यतीत हुए, लेकिन उनकी प्रतिभा और भी जरूरी है कि मुख्तार सा० का जो साहित्य पुस्तक साधना संकुचित क्षेत्र तक सीमित नही रही। अपनी रूप में प्रकाशित नही हुआ वह विधिवत रूप से पाटको एकान्त साधना के द्वारा उन्होंने जैन समाज को वह दिया, को सुलभ हो। इसके साथ ही मुख्तार सा० की एक जो बहुत कम विद्वान और साधक दे पाए है। उन्होंने विस्तृत जीवनी भी होनी चाहिए। अनेकान्त को भी अधिक अपने अन्वेषण द्वारा बहुत सी उन मान्यतानों का खडन लोकोपयोगी बनाना होगा। किया जो समाज को विभ्रम में डाले हुए थी। इतना ही ये तथा ऐसे और भी अनेक कार्य है जो मुख्तार सा० नही, उन्होंने शास्त्रीय विषयों पर अपनी लेखनी चलाकर के हितैषियों तथा प्रशंसकों को तत्काल हाथ मे ले लेना जैन जीवन को शुद्ध और प्रबुद्ध बनाने का प्रयत्न किया। चाहिए । यही उनके प्रति सर्वोत्तम श्रद्धाजलि है।
मुख्तार सा० अत्यन्त परिश्रमशील व्यक्ति थे । जब मैं मुख्तार सा० को अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित दिल्ली पाकर वे स्थायी रूप से रहने लगे तो उनसे प्रायः करता हूँ और कामना करता हूँ कि उनकी सेवाएँ और भेंट हो जाया करती थी। मैं देखता था कि सादा और प्रेरणा चिरकाल तक जैन समाज को मार्गदर्शन करती सात्विक जीवन व्यतीत करते हुए वे निरन्तर धर्म और रहे। साहित्य की उपासना में लीन रहते थे। यद्यपि उनका प० कैलाशचन्द जी सिद्धान्त शास्त्री : विषय मुख्यत: जैनदर्शन और जन साहित्य था, तथापि
जिन्होने प्राचार्य समन्तभद्र, यतिवृषभ, पूज्यपाद, अकउनकी रूचि और भी बहुत से विषयो मे थी। मुझे स्मरण लंक, पात्रकेसरी, विद्यानन्द जैसे महान् प्राचार्यो के समहै कि उन्होंने मेरे प्रवास-सम्बन्धित लेखमालायो को पढ गट माय विटतापर्ण प्रकाश डाला। पुरानी बातो कर अनेक बार मुझसे उनके सम्बन्ध में चर्चा की थी।
की खोज द्वारा अनेक अनुपलब्ध और विस्तृत ग्रन्थरत्नो और एक बार बड़े ही प्राग्रह के साथ मुझसे अनेकान्त के
को प्रकाश में लाया। ग्रन्थपरीक्षा के द्वारा प्राचार्यों के लिये एक कहानी लिखवाई थी।
नाम पर रचित जाली कृतियो का पर्दा फाश करके साहित्य दिल्ली पाने पर मै उनका हेतु वीरसेवामन्दिर की
के विकार को प्रस्फुटित किया, उन विस्तीर्ण साहित्यसेवी प्रवृत्तियो को कुछ सघन और व्यापक बनाना था। उसी
प्राक्तन विमर्शविचक्षण मुख्तार सा० के प्रति में अपनी दृष्टि से यहाँ पर वीरसेवामन्दिर के भवन का निर्माण
विनम्र श्रद्धाजलि अर्पित करता हूँ। हुमा लेकिन बड़े स्थानों की और बड़े कार्यों की कुछ मर्यादाएँ भी होती है, वे कुछ ऐसे तत्त्वो को जन्म देती प्रो० प्रेमसुमन जी जैन : है । जो कार्य में सहायक नहीं होते। वीरसेवामन्दिर का प्रादरणीय श्री मुख्तार जी के निधन से निश्चितरूप विशाल भवन मुख्तार सा. के स्वप्नों को चरितार्थ करने जन विद्या के अध्ययन और अनुसन्धान के क्षेत्र मे एक मे असमर्थ रहा। पर मुख्तार सा० की लगन और कर्मठता सशक्त मालोचक एवं साहित्य-सृष्टा की कमी हुई है। विरोधी तत्त्वो के सामने निरन्तर मन्द पड़ती गई। और अपने जीवन के अन्तिम दिनों में श्री मुख्तार जी जैन अन्तिम दिनों में तो मैने देखा कि वह बहुत ही निराश हो ) साहित्य की सेवा में रत रहे यह उनकी कार्य क्षमता एवं गये थे।
सच्ची लगन का प्रमाण है। श्री मुख्तार जी ने यद्यपि अपने जीवन के सीमित वर्षों में एक व्यक्ति जितना विविध प्रकार के विपुल साहित्य की रचना की है, किन्तु कर सकता है। उससे कही अधिक काम मुख्तार सा० ने पत्रकारिता के क्षेत्र में उन्हें अद्वितीय कहा जा सकता है। कर दिखाया । वस्तुतः वह व्यक्ति नहीं बल्कि एक संस्था उनकी समस्त रचनाओं से परिचित कराने के लिए प्रति