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कतिपय श्रद्धांजलियाँ
[पाठकों को यह तो विदित हो हो गया है कि जनसमाज के प्रसिद्ध साहित्य तपस्वी, कर्मठ समाज सेवी, प्रसिद्ध इतिहासज्ञ, 'जन हितैषी' और अनेकान्तादि पत्रों के सम्पादक, प्रथित अनुवादक और भाष्यकार, एवं समीक्षक 'मेरी भावना' जैसे राष्ट्रीय नित्यपाठ के अमर स्रष्टा, वीरसेवामन्दिर के संस्थापक प्राचार्य जुगलकिशोर जी मुल्तार का २२ दिसम्बर १९६८ को स्वर्गवास हो गया है। उनकी स्मृति में जैन समाज के प्रसिद्ध साहित्यकारों, विद्वानों, उद्योगपतियों, पत्र सम्पादकों, समाचार पत्रों और संस्थानों प्रादि ने उनके सम्बन्ध में जो श्रद्धांजलियां भेजी हैं, पौर जो एटा में डा० श्रीचन्द जी 'सगल' के पास पहुंची हैं, उनमें से कुछ को यहाँ दिया जा रहा है।] साहू शान्तिप्रसाद जी जैन :
व्यक्तित्व के अनुरूप समुचित सम्मान न कर सका, यह श्रद्धेय पण्डित जुगलकिशोर जी मुख्तार के निधन से सोचकर हमारा मस्तक लज्जा से झुक जाता है। मगर समस्त समाज और साहित्यवर्ग शोकान्वित है। जैन उस निस्पृह निष्काम महापुरुष ने इसकी कभी कामना साहित्य में शोध की परम्परा स्थापित कर उन्होंने स्वयं नही की। ऐसा असाधारण व्यक्तित्व क्वचित् कदाचित् अपना चिरस्थायी स्मारक बना दिया। उन्होंने तो अपना ही किसी समाज को प्राप्त होता है। हार्दिक कामना है तन-मन-धन सभी इस दिशा मे अर्पित कर दिया। ऐसा कि स्वर्गस्थ इस महान् धार्मिक आत्मा को अखण्ड और दूसरा विद्वान समाज मे नही है । इष्टदेव से प्रार्थना है अक्षयशान्ति प्राप्त हो। कि इनकी आत्मा को शान्ति हो ।
बाबू यशपाल जी सम्पादक 'जीवन साहित्य' पं० शोभाचन्द्र जी भारिल्ल :
श्रद्धेय मुख्तार सा० के देहावसान का जब दुखित वास्तव में मुख्तार सा० का निधन जैन समाज की समाचार मिला, तो मुझे गहरी वेदना अनुभव हई। इससे विशेषतः दि० जैन समाज की ऐसी क्षति है, जिसकी
कुछ समय पूर्व जब मुख्तार सा० दिल्ली आये थे और पूर्ति निकट भविष्य में होती नहीं दिखती। वे महान
उन्होंने मेरे घर पर आने की कृपा की थी तब उनके साहित्य सृष्टा, साहित्य तपस्वी, कर्मठयोगी एव तत्त्ववेत्ता
शारीरिक स्वास्थ्य को देख कर इतना तो लगा था कि थे। उनकी दीर्घकालिक साधना हमारे लिए स्पृहणीय वाधक्य न उन्हें आक्रान्त कर रक्खा है लेकिन उनसे और अनुकरणीय है। उनकी लेखनी वनमय थी। उन्होने इतना जल्दा विछोह हो जायगा, इसकी मैने कल्पना नहीं जो कुछ लिखा, गम्भीर अध्ययन, चिन्तन और मन्थन के की थी। पश्चात् लिखा और अत्यन्त सुविचारित तथा नपे-तुले मुख्तार सा० जैन समाज के एक विशिष्ट व्यक्ति थे। शब्दो में । कि वह अकाट्य बना रहा ।
धर्म, दर्शन और साहित्य के क्षेत्र मे उन्होंने जो योग्यदान उनका समग्र लेखन सत्य की अभिव्यक्ति के लिए दिया वह चिरस्मरणीय रहेगा। और स्वान्तः सुखाय था। यही कारण है कि उन्होंने किसी मुझे याद नहीं पाता कि मुख्तार सा० से पहली बार के रुष्ट-तुष्ट होने की परवाह नहीं की। ऐसे निर्भीक कब मिलना हुआ। लेकिन उनकी 'मेरी भावना' के द्वारा लेखको मे उनका स्थान सर्वोपरि है। सभी दृष्टियों से उनसे परोक्ष परिचय बचपन में ही हो गया था। उसका उनका व्यक्तित्व महान् और गौरवशाली। उनकी विद्वत्ता, पाठ मैंने न जाने कितनी बार किया है। आज भी प्रति
ठा, संयमशीलता-सभी कुछ प्रादर्श था। दिन करता हूँ। मेरी प्रतीति थी कि इस प्रकार की उदात्त अनेकों बार अावाज उठने पर भी समाज उनके भावनाएँ वही व्यक्ति कर सकता है जिसका अन्तःकरण