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________________ अग्रवालों का जैन संकृति में योगदान परमानन्द शास्त्री [अनेकान्त वर्ष २१ किरण २ से प्रागे] और वे जैनधर्म के श्रद्धालु ही नही रहे, किन्तु जीवन को बदल कर उदार बनाने का उपक्रम किया । परिषद् में उसका आचरण भी करने लगे। उनका विचार की स्थापना से महासभा का दायरा और भी संकीर्ण बन साहित्य-सेवा और जैनधर्म के प्रचार करने का हमा। गया. और समाज में अनेकता का बीज बपन किया । वे देश की अपेक्षा विदेशो में जैनधर्म का प्रसार एव प्रचार दोनों सस्थाएँ यद्यपि जीवित है और अपना-अपना कार्य करना अधिक उपयुक्त समझते थे । भी कर रही हैं । परन्तु ठोस कार्य नहीं हो रहा । समाज-सेवा: वैरिस्टर साहब ने देश की अपेक्षा विदेश में जैनधर्म वैरिस्टर साहब की समाज-सेवा का उपक्रम सन् का प्रचार किया। उनकी यह हादिक कामना थी कि १९२२ में दि० जैन महासभा लखनऊ के अधिवेशन से विदेशों में जैनधर्म का प्रचार उच्च स्तर पर किया जाय । शुरु होता है जिसके वे स्वय अध्यक्ष थे। उन्होंने अपने जिससे वे जैनधर्म की महत्ता को हृदयंगम कर सके । और उत्तरदायित्व को जिस सतर्कता और सावधानी से निभाया उसके वैज्ञानिक मूल्य को पाक सके । जैनधर्म का सर्वोदयी था वह उनकी दक्षता का एक मापदण्ड हो सकता है। मल उनके मानस मे उद्वेलित हो रहा था उनके है उन्होंने उसके सुधार में बड़ी सतर्कता वर्ती है। उसके उसकी निष्ठा व्यापक हो गई थी। तीर्थक्षेत्रों की रक्षा के कोष को मापने सावधानी से निकलवाया। वे उसके लिए उन्होने कोई कोर कसर नही रक्खी। सम्मेदशिखर सत्रुटित तारों को जोड़कर सक्रिय बनाना चाहते थे परन्तु की पैरवी के लिए लदन भी गये । और जो प्रयत्न उनसे कुछ विचार असहिष्णु स्थिति पालकों को यह कैसे सह्य हो सकता था वह किया। साथ मे बाबू अजितप्रसाद जी हो सकता था? यह विचार असहिष्णुता और सकीर्ण- एडवोकेट लखनऊ ने भी सहयोग दिया। धर्म प्रचार के मनोवृत्ति का परिणाम है कि सन् १९२३ मे महासभा का लिए भी प्रयत्न किया, अनेक भापण उनके वहाँ हुए। अधिवेशन दिल्ली में हुया, उस समय उसके मुख पत्र जन उनके भाषणो के प्रभाव से कुछ लोगो ने जैनधर्म का गजट की दशा सुधारने का प्रश्न आया। उसके लिए अध्ययन भी किया । सन् १९३० मे उन्होने लदन मे जैन सुयोग्य सम्पादकों का प्रश्न प्राया तब किसी सज्जन ने लायब्रेरी (Librav) की स्थापना की। साहित्य-सेवा के वैरिस्टर साहब का नाम उपस्थित कर दिया; किन्तु महा- क्षेत्र में उन्होने जो कार्य किया वह प्रशसनीय है। सभा के सूत्रधारो ने उस योजना को ठुकरा दिया। साथ साहित्य सेवा-वैरिस्टर साहब के द्वारा अनेक ग्रन्थों का ही महासभा को वृद्ध विवाहादि कुरीतियों का सुधार भी निर्माण भी हुआ। उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ की माफ असह्य हो उठा। परिणामतः परस्पर में मत-विभिन्नता नोलेज (Key of Knowledge) है जो ज्ञान की कुजी घर कर गई। के नाम से प्रसिद्ध है, उसका जिन लोगो ने अध्ययन किया इसी मत विभिन्नता में दि० जैन परिषद का जन्म वे वेरिस्टर साहब की-साहित्य-सेवा का मूल्य प्रांक हा, वैरिस्टर सा० ने उसके सचालन में अच्छा योग सकते हैं। उन्होंने अनेक ग्रन्थों और ट्रेक्टों का निर्माण दिया । परिषद् ने मत-विभिन्नता के रहते हुए भी समाज किया है उनमे से कुछ के नामों का उल्लेख नीचे किया हित के अनेक कार्य किये। जनता की संकीर्ण मनोवृत्ति जाता है :
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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