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अनेकान्त
१. तुलनात्मक धर्म विज्ञान-Science of Com- रिक्त उनकी अन्य रचनाएँ भी होंगी, जो मुझे ज्ञात नही parativ of Religion).
है । इस तरह वैरिस्टर साहब की साहित्य-सेवा अपूर्व है। २. ज्ञान की कुजी-(Kay of Knowledge). वह उनके जैनधर्म विपयक ज्ञानकी महत्ता की द्योतक है।
३. Conffuence of Opposites (असहमत सगम) इस पथ मे ससार के समस्त प्रचलित धर्मों का सामान्य
बयालीमवे विद्वान वैरिस्टर जूगमदरदास जी है आप परिचय कराकर उनका तुलनात्मक विवेचन किया है।
के पिता जी का नाम लाला पन्नालाल जी था। आप ४. जैन लॉजिक (The Science of Thought) सहारनपुर के निवासी थे। पाप जन्मकाल से ही पूर्व न्याय विषयक एक सुन्दर रचना।
सस्कारबश बुद्धिमान थे। आप मेट्रिक्यूलेशन (Matri५. इप्टोपदेश (Discourse Devine) प्रा० पूज्यपाद culation) और इन्टरमीडियेट ( Intermadiate ) देवनन्दी के प्राध्यात्मिक ग्रंथ का हिन्दी अनुवाद । परीक्षा में बराबर सरकारी छात्रवृत्ति पाते रहे। आपने ६. रत्नकरण्डश्रावकाचार (The Housepolders
एम ए. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया। एम. ए. की परीक्षा Dharma) का अंग्रेजी अनुवाद । यह प्राचार्य समन्तभद्र
पास होते ही प्राप इलाहाबाद यूनिवसिटी में अग्रेजी भाषा की गृहस्थधर्म विषयक अपूर्व रचना का प्रामाणिक
के अध्यापक और छात्रालयों के प्रबन्धक बना दिये गये।
तीन वर्ष अध्यापिकी करने के बाद सन् १९०६ में एकभाषान्तर है। ७. व्यावहारिक धर्म-(The Practical Dharma)
जेटर कालेज प्रोक्सफोर्ड (Exater College Oxford) यह आपकी स्वतत्र रचना है जिसमे द्रव्यानुयोग का निरू
मे द्रव्यानयोग का निरू- लन्दन मे दाखिल हो गये । और सन् १९१० मे वरिस्टर पण किया गया है।
होकर स्वदेश लौट आये । पश्चात् आप बम्बई के सेठ ८. सन्यासधर्म (The Sannayas Dharma) इसमें ।
माणिकचन्द पानाचन्द जी के साथ श्रवणबेल्गोला में बाहमनि धर्म का विचार किया गया है। और समाधिमरण बली के महामस्तकाभिषेक में शामिल हय । मापने रोमन के महत्त्व का दिग्दर्शन है।
लॉ (Roman Law) और जैनधर्म की रूपरेखा (Out९. आत्मिक मनोविज्ञान-(Jain Psychology) lines of Jainism) दोनो पुस्तके लदन में छपवाई। इसमें जीवादि सात तत्त्वो का विवेचन किया गया है। भारत में वैरिस्टरी करने में आपको पर्याप्त सफलता
१०. जैन संस्कृति (Jain Culture) को समझने के मिली । सन् १९१३ के प्रीवी काउन्सिल (Pravy Counलिए अपूर्व पुस्तक ।
cil) के एक मुकदमे में आपको लन्दनमे भेजा गया। सन् ११. श्रद्धा, ज्ञान, चारित्र (Faith Knowledge १६१४ से १६२७ तक आप इन्दौर राज्य के न्यायाधीश and Conduct) इसमे रत्नत्रय का सुन्दर विवेचन किया और व्यवस्थाविधि विधायिनी सभा के अध्यक्ष रहे । बीच गया है।
मे पाप सन् १९२० से १९२२ तक निःशुल्क सरकारी १२. जैन तपश्चरण (Jain Penance) इसमें आत्म काम असिस्टेन्ट कलक्टरी (Assistant collector) और उन्नति कारक तपश्चरण की वैज्ञानिकता पर बल दिया अमन सभा (Lengue of Paace and Order) के गया है।
सस्थापक मत्रित्व का कार्य भी करते रहे तथा रायबहादुर १३. ऋषभदेव-(Rishabhadeva) इसमें जैनियों उपाधि से भी विभूषित किये गये । के प्रथम तीर्थकर का जीवन परिचय दिया गया है।
साहित्य-सेवा :१४. जैन धर्म क्या है ?-(What is Jainism ?) आपने वैरिस्टरी, एव राज्यकीय सेवा और निःशुल्क इसमें वैरिस्टर साहब के भाषणो का सकलन है, जो उन्हो- सरकारी कार्य करते हुए भी अवकाश के समय जैन ने लदन आदि में भाषण दिये थे। इससे वैरिस्टर साहब साहित्य की सेवा का कार्य किया । ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद के उदात्त विचारो का पता चला जाता है। इनके अति- जी ने इन्दौर चतुर्मास में उनके साथ बैठकर तत्त्वार्थाधि