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________________ १८२ अनेकान्त मोहनलाल दलीचद देशाई ने कोर्तिस्तंभ को प्राग्वाट कोतिस्तंभ समीपतिनममुं श्रीचित्रकूटान्वये । (पोरबाड) वशी कुमारपाल द्वारा बनाए जाने की कल्पना प्रासाद सृजत ? प्रसादमसमं श्रीमोकलार्वीपते । की है। जो समुचित नही प्रतीत होती। अनेक पुरातत्त्वज्ञो प्रादेशात् गणराज साधुरचित स्वच्चै बधाषीन्मुवा ॥८६ ने उस स्तंभ को बघेरवाल वंशी जीजा द्वारा बनाए जाने इस पद्य में बतलाया है कि कीर्तिस्तंभ के समीप का स्पष्ट उल्लेख किया है। प्रसिद्ध इतिहासज्ञ विद्वान मोकलराय के प्रादेश से महावीर चैत्यालय या मन्दिर गौरीशकर हीराचन्द जी ओझा ने राजपूताने के इतिहास बनाया गया है उसके दक्षिण में प्राग्बाट (पोरवाड) वंशी में लिखा है कि-"मार्ग मे पहले बाई ओर सात मजिल कुमारपाल का जिन मन्दिर था। इसमे कीर्तिस्तभ के वाला जैन कीर्तिस्तंभ पाता है, जिसको दिगबर सप्रदाय के समीपवर्ती लिखा हया होने से दिगंवर कीर्तिस्तभ को भो वघेरवाल महाजन सानाय के पुत्र जीजा ने वि० सं० की श्वेताबर बतला दिया गया है। जब कि अनेक प्रमाणो से चौदहवी शताब्दी के उत्तरार्ध मे बनवाया था। यह कीति- कीर्तिस्तभ दिगंबर है और उसके निर्माता वघेरवाल वशी स्तंभ आदिनाथ का स्मारक है। इसके चारो पार्व पर शाह जीजा है। आदिनाथ की एक विशाल दिगवर (नग्न) मूर्ति खड़ी है यहां यह बतलाना अावश्यक है कि उक्त कीर्तिस्तभ और बाकी के भाग पर अनेक छोटी-छोटी जैन-मूर्तिया का रचना समय ठीक ज्ञात नही हो सका, किन्तु अन्य खुदी हुई है।" (राजपूताने का इतिहास प्रथम एडी- प्रमाणो की रोशनी में उसका निर्माणकाल १५वी शताब्दी सन पहली जि० पृ० ३५२) के उत्तरार्ध से बहत पूर्ववर्ती है। मेरे ख्याल में कीर्तिस्तभ __ मुनि कान्तिसागर और अगरचन्द नाहटा भी कीर्ति- का समय विकम की १३वी या १४वी शताब्दी जान स्तभ को दिगबर ही मानते है। इसके अतिरिक्त वतावर पड़ता है । प्राशा है विद्वान इस पर विचार करेंगे। विद्वान गयदि ने स० १५७३ में रचित अपनी चैत्य परि- मुनि कान्तिसागर जी ने नादगाव की मूर्ति का जो पाटी मे कीर्तिस्तभ को स्पष्टत. दिगबर बतलाया है। लेख 'खण्डहगे के वैभव' और अनेकान्त में प्रकाशित किया किन्तु उसे हंबडवशी पूना द्वारा बतलाना किसी भूल का है। उसका परिचय कराते हुए लिखा है कि "भट्टारक परिणाम है। सभव है लेखक को शाह जीजाका नाम और विश्व सोमसेन उस समय के समाज में प्रसिद्ध व्यक्ति जाति का स्मरण न रहा हो । अथवा ज्ञात ही न हो, इस मालूम पडते है क्योकि उनकी प्रतिष्ठा के दो लेख नागदा कारण हूंवड वश की कल्पना की हो। और उसमे नौ की दि० जैन मूर्तियो पर उत्कीणित है।" साथ ही उनके सौ जिनबिम्बों के होने की बात लिखी है। जीवन पर प्रकाश डालने वाली पुरुषार्थ सिद्धयुपाय और पासइई बड पूनानी सुता देवात कहइ इक ताता तारन रे। करकडु चरित की जो पुष्पिकाए उनके पास है उनसे उनकी लखडी मह धनवेगि करा वीउरे कोरतिथंभ विख्यात रे। दो कृतियो का पता चलता है । समयसार वृत्ति और अमर चउ परि चोखी चिहु पर कोरणी रे मैचउ अति विस्तार रे। कोष की हिन्दी टीका । इस सम्बन्ध मे यहाँ इतना लिखना चढता जे भुइ सात सोह मणीरे बिब सहस दोइ सार नर? ही पर्याप्त है कि लेख मे कुछ नाम गल्ती पढ़े गये है। ढाल-हवइ दिगम्बर देहरइरे तिहां जे नवसइ बिब। लेख में स्पष्ट रूप में अभिनव विद्य सोमसेन का उल्लेख है भामडल पूठइ भवऊरे छत्रत्रय पडिबिंब न कि विश्व सोमसेन का, अब मुनिजी को सोमसेन विद्य प्रवियां पूजइ पास ए तु पूरइ मन को प्रास की उपलब्ध सब सामग्री प्रकाशित कर देनी चाहिए। चर्चा चंदन केवङउरे गोरी गावइ रास ॥ लेख मे और भी कई स्थल है जो पढ़ने में नही आए, या कीर्तिस्तभ को श्वेताबर मानने की जो कल्पना उठी गलत पढ़े गए। उन स्थलो को नीरज जी के लेख के परिउसका कारण स० १५०८ मे गढ़ी गई महावीर प्रशस्ति शिष्ट में खडी व्रकट मे दे दिया गया है। जैसे वृधमान का निम्न पद्य है, जिससे लोगो को भ्रम हुया है- [वृषभसेन] ...... [प्राम्नाये या वशे] प्रादि, उसमे एक उच्चमंडप पंक्ति देवकुलिका वीस्तीर्णमाणश्रियं । दो स्थल और है जैसे योगे [.......] र केण के स्थान में
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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