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________________ चित्तौड़ का दिगम्बर जैन कोतिस्तम्भ १८१ है :- मेवपाटदेशे चित्रकूटनगरे श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र इन उद्धरणो से जो सम्प्रदाय व्यामोह के आवेश में चैत्यालय स्थाने" वाक्यों से प्रकट है। कीर्तिस्तभ दिगम्बर लिखे गये है और जिनमे यह कल्पना की गई है कि श्वे. है और वह बघेरवाल वंशी खडबड गोत्री शाह जीजा द्वारा ताबर-दिगबर बाद में श्वेताबर विजय का यह प्रतीक निर्मापित है। जो महाजन सानाय का पुत्र था। स्तभ है । दूसरे महावीर स्वामी के मन्दिर का जीर्णोद्धार इस दिगम्बर कीर्तिस्तम्भ के सम्बन्ध मे कुछ इवे- राणा मोकल की प्राज्ञा से गुणराज ने स० १४८५ (६५) तांबरीय विद्वानों ने उसे श्वेतांबर बनाने के लिए अनेक में कराया था। तीसरे यह कीतिस्तभ उस समय बना निराधार कल्पनाएँ की है । और कीतिस्तभ को स्पष्टतया जब दिगबर श्वतावर प्रातमा भद नही पड़ा था। दोनों श्वेतांवर कीतिस्तंभ लिखने तक का दुःसाहस किया है। श्वताबर साघुग्रा का य कपाल कल्पनाय कितना निराधार इस प्रकार के प्रयत्न श्वेताम्बरों द्वारा किये जाते रहे है। और अप्रमाणिक है। इसे बतलाने की आवश्यकता नही। स्व० मोहनलाल दलीचन्द देसाई अपने जैन तीर्थो वाले सम्प्रदाय का व्यामोह बुद्धि को भ्रष्ट बना देता है। कीतिनिबन्ध मे लिखते है कि-"जे कीर्तिस्तंभ ऊपर जणाव्यो स्तभ को श्वेतांबरी बनाने के प्रयास मे उक्त कल्पनामों छे ते कीतिस्तंभ प्राग्वाटवंश (पोरवाड) संघवी कमार पाल को स्वयं गढा गया है। श्वेताबर-दिगबरो का ऐसा कोई ने या प्रासादनी दक्षिणे बघाव्यो हतो।" बड़ा वाद नही हुआ जिसमें श्वेतांबगे ने विजय पाई हो। मुनि दर्शन विजय अपने जैन राजाग्रो वाले लेख में तथा दिगबरो को हारना पडा हो और उसकी खुशी में अल्लट राजा का परिचय देते हुए लिखते है कि-"पा किसी स्तभ के बनाने की कल्पना उठी हो। लेखक ने राज ना समयमा चित्तोडना किल्ला मा अंक महान जैन इसका कोई प्रमाण नही दिया, जबकि उसका प्रामाणिक स्तभ बनेल छ जे श्वेतांबर-दिगम्बरोना वादमा श्वेताम्बरो उल्लेख देना आवश्यक था। ना विजयनु प्रतीक होय अवो शोभे छे, तेनीसाथेज भ० कीर्तिस्तभ महावीर स्वामी के कपाउण्ड मे नही बना, महावीर स्वामीनु श्वेताबर जैन मन्दिर छे, जेनो जीर्णोद्धार बल्कि महावीर स्वामी मन्दिर किसी पुराने मन्दिर के पति मोलामा खण्डहरों पर बना है। उस समय कीर्तिस्तभ बना हुआ करावी तेमा प्रा० श्रीसोमसुदरसूरिना हाथे प्रतिष्ठा करावी हुआ था। जीर्णोद्धार के समय ही उक्त मन्दिर में महाहती। पा स्तभ प्रत्यारे कीतिस्तभतरीके प्रख्यात छ।" वीर की मूर्ति पधराई गई है। जिसकी प्रतिष्ठा का दर्शन - (जैन सत्य प्रकाश वर्ष ७ दीपोत्सवी अक पृ० १५०) विजय जी ने उल्लेख किया है। बहुत संभव है कि वह मुनि ज्ञान विजय ने जैन तीर्थों वाले लेख मे लिखा है पुरातन मन्दिर किसी अन्य तीर्थंकर का रहा हो। यह कि-"चित्तोड़ना किल्ला मां वे ऊँचा कीर्तिस्तभो छ, जे मन्दिर कीर्तिस्तभ के दक्षिण-पूर्व में है। इससे कीतिस्तंभ पंकीनो प्रेक भट्टारक महावीर स्वामीना मन्दिर ना का कोई सम्बन्ध नहीं है। कीर्तिस्तंभ तो स. १५४१ के कपाउण्डमां जैनकीर्तिस्तंभ छ, जे समये श्वेताम्बर अने लेखानुसार चन्द्रप्रभ मन्दिर के स्थान मे बना था जैसा दिगम्बरना प्रतिमा भेदो पड्या न हता ते समयनो ग्रेटले कि पहले लिखा जा चुका है। वि० सं० ८६५ पहेलानो प्रे जैन शेतांबर कीर्तिस्तभ छ । अब रही प्रतिमा भेद की बात, सो यदि स्तंभ के अल्लटराज जैनधर्म प्रेमी राजा हतो, ते वादी जेता प्रा० निर्माता की जाति नाम आदि का उल्लेख न मिलता तो प्रद्युम्न सूरि प्रा० नन्दगुरु प्रा० जिनयश (प्रा० समुद्रसूरि) उक्त कल्पना को कुछ सहारा भी मिलता, परन्तु कीर्तिवगेरे श्वे० प्राचार्यों ने मानतो हतो, अटले संभव छे केतेना स्तभ का परिकर दिगम्बरत्व की झांकी का स्पष्ट निदर्शन समयमां भ० महावीर स्वामीनु मन्दिर अने कीर्तिस्तभ करता है । और विद्वान तथा पुरातत्त्वज्ञ ही उसे दिगंबर बन्या हशे, प्रा कीतिस्तभनु शिल्प स्थापत्य अने प्रतिमा नही बतलाते किन्तु श्वेताबर चैत्य परिपाटी में भी उसे विधान ते समय ने अनुरूप छे ।" (जनसत्यप्रकाश वर्ष ७ दिगंबर लिखा हुआ है, जिसका उल्लेख आगे किया दीपोत्सवी प्रक पृ० १७७)। जायगा।
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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