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________________ अध्यातम बत्तीसी श्री प्रगरचन्द नाहटा भगवान महावीर से लेकर अब तक हजारों आचार्यों, आदि कवियों की रचनायो के संग्रह ग्रन्थ प्रकाशित किये मुनियो, श्रावको आदि ने छोटी-बडी लक्षाधिक रचनाएँ है। की। पर उनमें से बहुत-सी तो मौखिक रूप में रहने के १७वी शताब्दी के दिगबर कवि राजमल्ल उल्लेखनीय कारण विस्मृति के गर्भ में विलीन हो गयी। क्योकि वीर ग्रन्थकार है। अभी मुझे एक गुटके मे राजमल्ल की निर्वाण के ६८० वर्ष तक तो लेखन की परपरा प्राय: अध्यातम बत्तीसी मिली है। सम्भव है वह प्रसिद्ध राजनही रही। लिखे जाने के बाद भी बहुत-सी प्रतियाँ ताड़ मल्ल की ही रचना हो। १८वी शताब्दी के स्वताबर पत्र, कागज, स्याही प्रादि टिकाऊ न होने के कारण नष्ट कवि लक्ष्मीवल्लभ जिनका उपनाम राजकवि भी था, हो गयी । इसीलिए १०वी-११वी शताब्दी के पहले की उनके रचित उपदेश बत्तीसी प्राप्त है, जिसके बहुत से पद्य एक भी जन हस्तलिखित प्रति दिगबर, श्वेताबर किसी भी राजमल्ल की अध्यातम बत्तीसी से मिलते-जुलते है । अतः भडार में प्राप्त नही है। उसके बाद भी हजारों लाखों गजमल्ल की अध्यातम बत्तीसी की अन्य प्राचीन प्रति की प्रतियो को उदइ प्रादि जन्तुप्रो ने खा डाला। बहुत-सी खोज आवश्यक है। प्राप्त प्रति १९वी शताब्दी की है और वर्षा एव सर्दी के कारण चिपक कर नष्ट हो गयी। कुछ पाठ भी अशुद्ध है। पर राजमल्ल के नाम से प्राप्त होने को अनुपयोगी समझ कूट्ट के काम ले ली गयी। इसी से इसे यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है। अन्तिम पद्य में तरह हजारों प्रतियों जलशरण भी कर दी गयी। इघर ध्यान बत्तीमी भी नाम पाता है। कवि बनारसीदास की कुछ वर्षों में कौडियो के मोल बिकी और पसारियो, कदो- ध्यान बनीसी और अध्यात्म बत्तीसी प्रकाशित है पर वे ईयो आदि ने उनके पन्ने फाद-फाड़कर अपने काम मे ले इससे भिन्न है । अब अध्यात्मिक बत्तीसी राजमल्ल कत ली। छोटी-छोटी प्रतियों और फूटकर पत्र तो आज जैन नाच दी जा रही हैभडारो में हजारों की संख्या में अज्ञात अवस्था में पड़े है। किसकी माई किसका भाई, किसकी लोग लुगाई जी। गूटकादि संग्रह प्रतियो की सूची भी प्रायः बनाई नही पातम राम सयाना, जूठे भरम भूलाना ॥१ जाती। इसीलिए हजारो छोटी-छोटी रचनाएँ अज्ञात बोलत डोलत तन पांजर बीच, चेतन सेन बतावें जी। अवस्था में पड़ी है। जू बाजीगर काच पूतलियां, नाना रूप नचावें ॥२ बडे-जडे विद्वानो और अच्छे कवियोके भी कुछ प्रसिद्ध पगड़ी खूब जराव दुपट्टा, जामा जरकसी वागाजी। और बड़े-बडे ग्रन्थो की ही जानकारी प्रकाश में आई है। ' एते सबही छोड चलेगो, धागावन नहीं नागाजी ॥३ उन्होंने और भी बहुत-सी रचनाएँ अवश्य की होगी पर चूमा चंदन तेल फूलेला, करता था खसबोई जी। उनका संग्रह नही हो पाया। १७वी शताब्दी से बनारसी हंस उडकर जम घर जायगा, तन बदगाई होई जी॥४ विलास की तरह एक-एक कवि की छोटी-छोटी रचनाओ सहस भी जोडो लख भी जोडी, अरब खरब पर धायाजी। का सग्रह ग्रन्थ तैयार करने का प्रयत्न चालू हुआ। इसमें तृष्णा लोभ पलिता लागा, फिर फिर ढुंढे माया जो ॥५ बहुत सी छोटी रचनाएँ भी सम्मिलित होकर सुरक्षित हो भेडी मन्दर मेहेल चणाया, गोख बिंध झरुखाजी। गयो । पर ऐसे राग्रह व्रन्थो का प्रकाशन भी बहुत ही कम जगल जाई पाय पसारया, ने धरणा कुस धौखाजी ॥६ हया है। हमने बरसो प्रयत्न करके समयसुन्दर, जिनहर्ष, चार दिन का मेला सबही, नाही कोई सखाई जी।
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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