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ज्ञानसागर की स्फुट रचनाएँ
डा० विद्याधर जोहरापुरकर, मण्डला
ब्रह्म ज्ञानसागर काष्ठासंघ-नन्दीतटगच्छ के भट्टारक दाता जगमें बहु कह्या कविजन गुण वर्णन करे। श्रीभूषण के शिष्य थे। सं० १६३५ से १६७६ तक श्री इह भव पर भव सफल तस ब्रह्म शान इम उच्चरे ॥११ भूषण का समय ज्ञात है। यही ज्ञानसागर का कार्यकाल
इनमें पहले छप्पय से पूज्यपाद प्राचार्य के बारे में यह था । ज्ञानसागर की कई रचनाओं का परिचय अनेकान्त
कथा ज्ञात होती है कि वे बारह वर्ष एकान्तर (एक दिन मे समय-समय पर प्रकाशित हुआ है। यहां हम शक
उपवास और दूसरे दिन आहार का निरतर क्रम) तपस्या १६९१ (=संवत् १८३६) में लिखे गये एक हस्तलिखित
कर अध्ययन करते रहे थे तथा उन्हे इस अवधि मे लक्ष्मीगुच्छक में प्राप्त कुछ स्फुट रचनायो का परिचय दे रहे हैं।
मती नामक श्राविका ने पाहार दान दिया था। दूसरे १. समवशरण कवित्त-इसमें ग्यारह छप्पय हैं तथा छापय में गुजरात व राजस्थान के प्रसिद्ध दानी महानुभरत चक्रवर्ती द्वारा प्रादि तीर्थकर के समवसरण के दर्शन भावों के नाम गिनाये है। वस्तुपाल, समरासाह जैसे का वर्णन है । इसका अन्तिम छन्द यह है
श्वेतांबर दानशील पुरुषों का कवि द्वारा उल्लेख होना योजना बार प्रमाण समवसरण वृषभेश्वर । साप्रदायिक सौमनस्य का अच्छा उदाहरण है। मन वच काया शुस ववे भरत नरेश्वर ॥
३. नाराचबंघ चउवीसी-नाराच छद के २६ पद्यो पूजा प्रष्ट प्रकार स्तवन करि घरह प्राइया ।
में चौबीस तीर्थंकरो का स्तवन है तथा उनके जन्मनगर, वो जयजयकार सुरवरने मन भाइया ॥
मात पिता आदि का यथासभव उल्लेख किया है। एक पाले दया पूजा करे वत पाले निज घर रहे।
उदाहरण प्रस्तुत हैधावक मार्ग नित अनुसरे ब्रह्म ज्ञानसागर कहे ॥
वानारसी नामे पूर अश्व (विश्व) सेन नुप सूर मेघश्याम २. दानोपरि छप्पय-ये १२ छप्पय है । चार प्रकार काय नूर पावजी प्रसिद्ध है । कमठ गुमान हारि भव्यजीव के दान की प्रशंसा का इनमे वर्णन है। इस रचना के दो हितकारी सदा बालब्रह्मचारी व्रतभार लिद्धहै। विदेश छंद पठनीय है
कियो विहार सुजन उतारे पार प्रखंड सुख दातार ज्ञानदान लक्ष्मीमति गुणवंत प्रति दुर्बल धनहीनी।
दिखहै । काठासंघको शृगार श्रीभूषण गुरु सार ब्रह्मज्ञान पूज्यपाद मुनि प्राय प्रार्थना ताहि सु कोनी ॥ के विचार पाश्वदेव किडहै ॥२३ जो तू दे मुन्न पाहार तो मुझ पढणो थाये।
४. गुरुदेव कवित्त-इसमे २२ छप्पय है। गुरु की प्रगटे ज्ञान भंडार मूर्खपणा सवि जाये ॥
कृपा का महत्त्व तथा गुरुहीन की तुच्छता का इसमे वर्णन एकांतर निश्चय करी वरस बार स्वामी रह्या। है। अन्तिम छन्द में प्रसिद्ध जैन गुरुओं के कुछ नाम ज्ञान प्राहार तप दानये शास्त्रमाहि तस गुण का दिये हैवस्तुपाल जगसाह दाता सरस कहायो ।
गौतम जंबूस्वामि समतभद्र प्रकलंकह । सारंग समरोसाह दानयी जग जस पायो॥
प्रभाचर जिनसेन रामसेन मुनिचदह ।। दाता भैरवदास बंध चित्तोड छुड़ायो।
लोहाचार्य मुनींद्र रविषेणह व्रतधारी । दाता श्रीषनपाल जैन गुणदान ठरायो॥
नेमिसेन गुणवत धर्मसेन सुखकारी ।