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________________ अनेकान्त मन्दिर नं० २७ में संवत् १२१५ की प्रतिष्ठित एक काले इस प्रकार शिलालेखों, मूर्तिलेखोंकी परपरासे भी सिद्ध पाषाण की सभवनाथ की प्रतिमा स्थापित है । इस प्रतिमा होता है कि नाद गाँव व (अकोला) के सवत् १५४१ के मूर्तिलेख में भी पाहिल का उल्लेख हुआ है। यथा- के मूर्तिलेख चित्तोड़ में कीर्तिस्तभ के निर्माता शाह जीजा के पुत्र पुनसिंह की आम्नाय में या वश परपरा में उत्पन्न ॐ संवत् १२१५ माघ सुदि ५ श्रीमान मदनवर्म साह देउ नामक ग्रहस्थ द्वारा अकित कराये गये। कीर्ति देव प्रवर्षमानविजयराज्ये । गहपति वंशे घेष्ठि देदू स्तंभ के निर्माण काल की शोध में हमें इससे इतनी ही तत्पुत्र पाहिल्लः । पाहिलांग रुह साधु साल्हेनेदं प्रतिमा सहायता मिलेगी कि उस महान् निर्माता शाह जीजा की कारतेति........... अविच्छिन्न वश परंपरा और उसके वशजों की धार्मिक अब इन दोनों शिलालेखों के सन्दर्भ में यदि हम सं० निष्ठा स० १५४१ तक सूरक्षित और प्रवर्तमान थी। १०११ में प्रवर्तमान पाहिल के पुत्र के रूप में साधु साल्हे कीति स्तंभ के निर्माण काल की जानकारी करने के पादि को स्वीकार करें, जिन्होने २०४ वर्ष उपरान्त स० लिए हमें या तो उसकी निर्माण शैली पर से अनुमान १२१५ मे यह मूर्ति पधराई; तो बड़ी गड़बड़ हो जायगी। लगाना पडेगा या भारतीय पुरा विद्या के विशेषज्ञों की यहाँ भी हमें पाहिलांग रह साधु साल्हेन शब्दों का यही अयं करना पड़ेगा कि-"पाहिल के वश मे उत्पन्न साधु बात माननी पडेगी, और इस लेख में मेने यह सिद्ध करने साल्हे द्वारा यह प्रतिमा पधराई गई। पाहिल का यह का प्रयास किया है कि ये दोनो ही तथ्य बहुत स्पष्ट रूप वंशज कितने काल पश्चात् हुआ यह निर्णय हम प्रतिमा में और बड़ी दृढता से यह घोषित करते हैं कि दिगबर लेख के सवत से करेंगे, पाहिल के नामोल्लेख से नही। जैन स्थापत्य कला का यह अदभत प्रतीक ईसाकी बारहवी शताब्दी मे या उसके कुछ वर्ष पूर्व ही निर्मित हुअा था, ४४. वही पृष्ठ ५१ पश्चात् नहीं। परिशिष्ट नांद गांव को मूर्ति का लेखस्वस्ति श्री संवत् १५४१ वर्षे शाके (१४०६) प्रवर्तमाने कोधीता संवत्सरे उत्तरगणे [ज्येष्ठ] मासे शुक्ल पक्षे ६ दिने शुक्रवासरे स्वाति नक्षत्रे......योगेर कणे मि० लग्ने श्री वराट् (1) वेशे कारंजा नगरे श्री सुपाश्र्व नाथ चैत्यालये श्री (? मलस सेनगणे पुष्करगच्छ श्रीमत-वृषसेन [वषभसेन] गणघराचार्ये पारंपर्योद्गत श्रीदेववार भट्टाचार्याः ? तेषां पट्ट श्रीमद् भाय[राय] राजगुरु वसुन्धराचार्य महावाद वादीश्वर रायवादपिर्वा [पिता] महा [मह] सकल विद्वज्जन सार्घ (ई) भौम साभिमान वादीभसिंहाभिनय [व] विश्व [विद्य] सोमसेन भट्टारकाणामुपदेशात् श्री वघेरवालजाति खडवाड गोत्रे प्रष्टोत्तर शतमहोत्तुंग शिखरबद्ध प्रासाद समुद्धरण धीर त्रिलोक श्री जिन महाबिम्बोद्धारक-प्रष्टोत्तर-शत् श्री जिन महाप्रतिष्ठा कारक अष्टादशस्थाने अष्टादशकोटि श्रुतभण्डार संस्थापक, सवालक्षबन्दो मोक्षकारक, मेदपाटदेशे चित्रकूट नगरे श्री चन्द्रप्रभ जिनेन्द्र चैत्यालयस्थाने निजभुजोपाजित वित्तबलेन श्रीकोतिस्तम्भ पारोपक साह जिजा सुत सा० पुनसिंहस्य [माम्नाये] सा० देउ तस्यभार्या पुई तुकार तयोः पुत्रा. वचत्वारः तेषु प्रथम पुत्र साह लखमण..............."चैत्यालयोद्धरणधीरेणनिजभुजोपाजित वित्तानुसारे महायात्रा प्रतिष्ठा तीर्थक्षेत्र..........। (अपूर्ण) -खण्डहरों का वैभव पृ० १२५
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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