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________________ चित्तौड़के कीतिस्तम्भ का निर्माण काल पुनसिंह के वंश में उत्पन्न शाह देउ ने सं० १५४१ मे यह स्मरण से ही किया है। यह मूर्तिलेख इस प्रकार हैलेख पकित कराया। ऐसा पढने पर यह लेख इतिहास ॐनमो वीतरागाय सम्मत भी हो जायगा तथा लेखों की परंपरा के अनुसार प्रहपति वश सरोरुह सहन रश्मिः सहन कूटं यः । भी इसकी संगति अधिक ठीक बैठ जायगी। अपनी इस बाणपुरे व्यषितासीत् श्रीमानिह देवपाल कृति ॥ धारणा की पुष्टि में मैं तीन प्रमाण विद्वानों के विचारार्थ श्री रत्नपाल इति तत्तनयो वरेण्यः। यहाँ प्रस्तुत करना चाहता हूँ। पुण्यक मूर्तिरभवद् वसु हाटिकायांम् ॥ १. अकोला के सेनगण दिगंबर जैन मन्दिर में पीतल कोतिर्जगत्रयपरिभ्रमणश्रमार्ता । की नन्दीश्वरी बावन चैत्यालय प्रतिमा पर इसी संवत् यस्य स्थिराजनि जिनायतनच्छलेन ॥ १५४१ का इन्हीं सज्जनों द्वारा अंकित कराया ठीक ऐसा ही एक महत्त्वपूर्ण प्रतिमा लेख प्राप्त हुआ है। यह लेख श्रीमान् पं० नेमचन्द धन्नूसा ने अपने लेख मे प्रकाशित किया है । अन्तर केवल इतना है कि नान्द गाँव का लेख सोऽय धेष्ठि वरिष्ठ गल्हण कृति, धीरल्हणल्यादि भूत" सं० १५४१ के ज्येष्ठ शुक्ला ६ शुक्रवार का है और यह तस्मादजायत कुलाम्बर पूर्णचन्द्रः। लेख ज्येष्ठ शुक्ला ११ भानुवार (रविवार) का है। वैसे श्री जाहडस्तनुजोदयचन्द्रनामा ॥" जब छटमी शुक्रवार को पडेगी तो एकादशी किसी भी इस लेख मे स्पष्ट हो कहा गया है कि सहस्रकूट के प्रकारभानुवार को नहीं हो सकती अतः यह भानुवारभौमवार की जगह प्रमाद से लिखा गया प्रतीत होता है, निर्माता देवपाल रत्नपाल आदि पूर्वजों के श्रेष्ठि गल्हण रल्हण आदि वंशज हुए। मर्तिकला की दृष्टि से भी पर यह एक अलग विषय है। अहार की मूर्ति और वाणपुर के मन्दिर के निर्मातामों में इस लेख का प्रयोजनीय भाग बहुत स्पष्ट है छह सात पीढियों का अन्तर सहज ही निर्धारित किया "xxxचित्रकूट नगरे श्री कीर्तिस्तंभस्यारोपक जाता है। सा. जिजा सुत साह पुन सिंहस्य माम्नाये सा. देउ भार्या ३. खजुराहो के जगत प्रख्यात पारसनाथ मन्दिर का तुकाई तयोः पुत्राश्चत्वारः IXxx" निर्माण संवत् १०११ में पाहिल नामक श्रेष्ठि द्वारा हुआ अकोला के इस प्रतिमा लेख के उल्लेख के बाद इस । था। इस मन्दिर के शिलालेख का प्रारम्भ इस प्रकार संबन्ध में विशेष कुछ कहने को नहीं रह जाता। होता है - २. बाणपुर (जिला टीकमगढ़, म० प्र०) मे दसवी ॐ सवत् १०११ समये। निजकुल अवलोयग्यारहवी शताब्दी का एक सुन्दर, चतुर्मुख, सहस्रकूट, दिव्य मूर्तिः स्वशील, सम दम गुण युक्त-सर्व शिखर बंद मन्दिर बना हुआ है। मैने एक प्रथक् लेख में सत्वानुकम्पी। स्वजन जनित तोषो धग राज्येन इस मन्दिर का सचित्र वर्णन प्रकाशित किया है"। मान्यः । प्रणमति जिन नाथोय भव्य पाहिल इसी मन्दिर के निर्मातायो के वंशधरों ने प्रागे चल नामा"। कर स० १२३७ में अहार (टीकमगढ़, म०प्र०) की इस लेख से पाहिल द्वारा संवत् १०११ मे इस जिनासुप्रसिद्ध और १८ फुट उत्तुग शातिनाथ प्रतिमा की प्रतिष्ठा लय के निर्माण की स्पष्ट पुष्टि होती है। खजुराहो के ही कराई। इस प्रतिमा के मतिलेख का प्रारभ निर्माताओं ने ४२. नीरज जैन, अतिशय क्षेत्र प्रहार, अनेकान्त अक्टूबर अपने पूर्वजों द्वारा निर्मित बाणपूर सहस्रकूट चैत्यालय के १९६५, पृष्ट १७८. ४०. अनेकान्त वर्ष २१, पृष्ठ ८४ ४३. नीरज जैन एवं दशरथ जैन, जैन मानुमेन्ट्स एट ४१. अनेकान्त वर्ष १६ पृष्ठ ५१ खजुराहो-पृष्ठ ३३.
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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