________________
चित्तौड़ के जंन कोतिस्तम्भ का निर्माण काल
१५१
जी का यह अनुमान पक्ष मोह से प्रेरित है, प्रत्यक्ष बाधित देखने से भी यह बात भली प्रकार समझी जा सकती है। है और सही नही है। श्री अगरचन्द नाहटा ने भी इस जब राणा कुभा के विजय स्तंभ का निर्माण काल (स. मान्यता को अमान्य किया है"।
१५०५ विक्रम) सूर्य के प्रकाश की तरह स्पष्ट और सर्व३. श्री अगरचन्द नाहटा अपने एक ही लेख में एक मान्य है तब जैन कीर्तिस्तभ की प्राचीनता सिद्ध करने के जगह इस स्तभ को राणा कुंभा के विजय-स्तभ से बहुत लिए हमें उसकी तुलना बहुत अधिक शिल्पावशेषों से पूर्व का बना सिद्ध करते है" और दूसरी जगह अनुमान करने की प्रावश्यकता नही पडेगी। केवल विजय स्तंभ लगाते है कि यह स्तंभ संवत १५०० के पास पास बना की कला से अपने स्तंभ की कला को तौल कर ही हमें होगा। राणा कुंभा का विजय स्तभ स० १४६७ मे निश्चय हो जाता है कि इन दोनों के निर्माणकाल मे लगप्रारंभ होकर स० १५०५ में बन कर पूर्ण हया और भग दो सौ वर्षों का अन्तर अवश्य है। उसकी औपचारिक प्रतिष्ठा भी उसी वर्ष माघ कृष्णा प्रसगवश मै यहाँ दोनों स्तभों के निर्माण के सबन्ध दशमी को हुई"। इस तथ्य से नाहटा जी का अन्तिम मे यह स्पष्ट करना चाहता हूँ कि दोनों ही स्तभ देव अनुमान उनके पूर्वानुमान का विरोधी तथा वस्तुत: गलत प्रासादों के सामने कीति स्तंभो की तरह स्थापित किये सिद्ध होता है।
गये थे। जैन स्थापत्य में जिस प्रकार जिनालय के समक्ष ४. शेष विद्वानों और कला पारखियों के मतानुसार-- मानस्तभ बनाने की परम्परा है उसी प्रकार वैष्णव अ-इस स्तभ का निर्माण ग्यारहवी-बारहवीं परम्परा मैं भी मन्दिरो के सामने विष्णुध्वज आदि के शताब्दी ईस्वी में हुआ।
नाम से कीर्तिस्तंभ बनाने की परपरा मिलती है। राणा ब-इसके समीप एक जिनालय था जो कालान्तर कु भा का विजयस्तभ भी वस्तुतः उनके कुभ स्वामी
मे नष्ट हो गया तथा सभवतः उसी के अव- मन्दिर के सामने बनवाया गया विष्णु स्तभ ही है। भ्रम
शेषों पर वर्तमान मन्दिर का निर्माण हुआ। वश लोग इस स्तभ का निर्माण मालवा के सुल्तान महमूद स-विक्रम सं० १४६५ के आसपास इस स्तभ का खिलजी तथा गुजरात के सुलतान कुतुबुद्दीन की संयुक्त
जीर्णोद्धार संपन्न हुआ। उसी समय समी- सेना पर महाराणा कु भा की विजय की स्मृति स्वरूप पस्थ जिनालय का भी जीर्णोद्धार हुआ। मानने लगे है। वस्तुस्थिति तो यह है कि उक्त विजय जीर्णोद्धार का यह कार्य महाराणा कु भा के विक्रम स० १५१४ मे हई थी। अतः नौ वर्ष पूर्व ही राज्यकाल में सन् १४२८ ई० में प्रोसवाल उस विजय की स्मृति स्वरूप विजय स्तभ का निर्माण कसे महाजन गुणराज ने कराया था यह निवि- हो सकता है ? वाद है।
___महाराणा कुंभा के राज्यकाल (१४३३-१४६८ ई.) कोतिस्तम्भ की कला तथा प्रासपास का पुरातत्त्व : मे जैन मन्दिरों का निर्माण और मूर्तियों की प्रतिष्ठा भी
ऊपर हम भली भांति देख चुके है कि कला की बहतायत से हई है। प्रायः इस समस्त निर्माण का इतिकसौटी पर प्रायः सभी विद्वानों ने इस स्तभ को राणा हास भी उपलब्ध है। यदि जैन कीर्तिस्तभ का निर्माण कुभा के विजय स्तभ से श्रेष्ठ, प्राचीन और महत्त्वपूर्ण इस काल में हा होता तो उसका भी उल्लेख इनके बीच माना है। स्तभ की संयोजना तथा उस पर उत्कीणित अवश्य होता। इससे भी ज्ञात होता है कीर्तिस्तंभ इसके सैकड़ो जैन प्रतिमाओं के शारीरिक अनुपात आदि को बहत पूर्व बन चुका था और जब इन अनेक मन्दिरों का ३३. अनेकान्त वर्ष ८, पृष्ठ १४१
निर्माण हो रहा था तब तक कीतिस्तंभ और उसके समी३४. वही पृष्ठ १४०
पस्थ जिनालय का जीर्णोद्धार होने लगा था। ३५. वही पृष्ठ १४३
३७. विजयशकर श्रीवास्तव, राजस्थान भारती, महाराणा ३६. कीर्तिस्तम्भ प्रशस्ति श्लोक १८६
कुम्भा विशेषांक मार्च १९६३ पष्ठ ४६.