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________________ १५० अनेकान्त १५. मुनि ज्ञान विजय जो इस स्तंभ को धर्म प्रेमी श्री गौरीशंकर हीराचन्द पोझा तथा मुनि कांति सागर ये अल्लट राजा द्वारा वि० संवत् ८६५ मे बनवाया हुआ दो ही विद्वान ऐसे है जो इस स्तंभ का निर्माण काल मानते हैं । मुनि जी का यह भी कथन है कि “जब दिगंबर चौदहवी शताब्दी या उसके बाद का मानते हैं। इनमें भी और श्वेताम्बरों में प्रतिमा भेद प्रारम्भ नही हुआ था तब यह अन्तर ध्यान देने योग्य है कि प्रोझा जी अपनी की यह एक श्वेताम्बर कृति है।" मान्यता का कोई आधार प्रस्तुत नही करते तथा उनका १६. डा. कैलाशचन्द जैन : अनेकान्त वर्ष ८ पृष्ठ काल-अनुमान चौदहवी शताब्दी ईस्वी नहीं वरन्, १३६ के संदर्भ में इसे पन्द्रहवी शताब्दी की रचना मानते "विक्रम संवत का चौदहवी शताब्दी" है। इस प्रकार ईस्वी सन में उनका कालानुमान जानने के लिए इसमे से १७. मनि कांतिसागर जी नान्द गाँव के एक प्रतिमा छह दशक और घटाकर इसे देखना होगा जो तेरहवीं लेख के आधार पर सन १९५२ तक इस स्तंभ को पंद्रहवी शताब्दी का अन्त या चौदहवी का केवल प्रारम्भ बैठेगा। शताब्दी का निर्माण मानते थे" । सन् १९५३ मे उन्होने मुनि कांति सागर जी के कालानुमान का आधार इस स्तभ की आयु मे से गत सौ वर्ष और घटाकर इसे नान्द गाँव की एक प्रतिमा पर अकित लेख है जिस पर सोलहवी शताब्दी का निर्मित लिखा" । उनका काल मागे विचार किया जायेगा। स्तभ को बारहवी शताब्दी निर्णय जिस प्रतिमालेख पर आधारित है वह मुनि जी की का निर्माण मानने वाले विद्वानो की बुद्धि पर मुनि जी ने दोनो पुस्तको मे एक सा ही प्रकाशित है। यह लेख अने- व्यंग तो किया है पर अनुमान को सिद्ध करने के लिए कान्त मे भी दो बार प्रकाशित हो चुका है"। स्तभ की कला पर कोई विचार उन्होने अपने लेख मे १८. श्री अगरचन्द नाहटा ने अपने लेख का उप- नही किया । संहार करते हुए उनकी दृष्टि मे आये प्रमाणो पर सक्षिप्त इन दो विद्वानों के अतिरिक्त शेष सोलह विद्वानो की विचार करके अपना अनिश्चित सा मत दिया है कि नान्द मान्यता में इस स्तभ का निर्माण काल नवमी शताब्दी से गाँव का प्रतिमा लेख १५४१ सवत का है अतः कीति- बारहवी शताब्दी ईस्वी के बीच निर्धारित होता है। इन स्तभ सभवतः सवत् १५०० के आस पास ही बना मान्यताओं का सविस्तार उल्लेख ऊपर किया जा चुका है होगा। फिर भी हम इनमे से मोटे रूप से जो सर्वमान्य तथ्य इस प्रकार इस कीर्तिस्तंभ के निर्माणकाल के सबन्ध निकालना चाहते है वे इस प्रकार हैमे मुझे जो उल्लेख प्राप्त हो सके उन्हे मैने यथावत ऊपर १. स्तंभ के निर्माण का नवमी शताब्दी का अनुमान की पंक्तियो में प्रस्तुत कर दिया है। अब हम इन सभी सर्व श्री फर्ग्युसन और बाबू कामता प्रसाद जी ने वहाँ उद्धरणो पर तथा कीर्तिस्तभ की कलागत विशेषताओं पर किसी समय देखे गये एक शिलालेख के आधार पर चित्तौड़ तथा आस-पास के जैन पुरातत्त्व पर और नान्द लगाया है। यह प्राधार बहुत विश्वस्त नहीं लगता। गांव के प्रतिमा लेख पर क्रमशः विचार करेगे । सभवतः इसीलिए बाबू कामताप्रसाद जी ने एक अन्य विद्वानों की मान्यतायें: स्थान पर इसे १२-१३वी शताब्दी की रचना स्वीकार ऊपर दिये गये उद्धरणो से हमे पता चलता है कि किया है। २७. अनेकान्त वर्ष ८, पृष्ठ १४१ २. मुनि ज्ञान विजय जी इसे प्राचीन भी मानना २८. जैनिज्म इन राजस्थान, पृष्ठ ३० चाहते है और संभवतः श्वेतांबर कृति भो सिद्ध करना २६. श्रमण सस्कृति और कला, पृष्ठ ७२ चाहते है, अतः केवल इसी कारण वे इसका निर्माण काल ३०. खण्डहरों का वैभव, पृष्ठ १२१ विक्रम सं० ८६५ तक खींच कर यह दिखाना चाहते है ३१. अनेकान्त वर्ष ८, पृष्ठ १४२; व वर्ष २१ पृ. ८४ कि “जब दिगबर और श्वेताम्बरों में प्रतिमा भेद प्रारभ ३२. अनेकान्त वर्ष ८, पृष्ठ १४३ नहीं हुअा था तव की यह एक श्वेतांबर कृति है।" मुनि
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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