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चित्तौड़ के जैन कीतिस्तम्भ का निर्माण काल
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कराया था। इसका निर्माण बारहवी शताब्दी का माना “निर्माण को शैली की दृष्टि में रखते हुए यह कालानुमान जाता है । यह कीर्तिस्तम्भ आदिनाथ का स्मारक है। इसके बहुत प्राचीन ज्ञात होता है। संभावना यह है कि यह चारों पार्श्व पर पाँच-पांच फुट ऊँची आदिनाथ की दिगबर स्तंभ बारहवी शताब्दी का निर्मित होना चाहिए। कहा मूर्तियाँ खुदी हुई हैं। जैन कीर्तिस्तम्भ के पास ही महावीर जाता है कि यह प्रथम जैन तीर्थकर आदिनाथ को समस्वामी का जैन मन्दिर है। इसका जीर्णोद्धार महाराणा पित किया गया था। इस पर सैकड़ो नग्न तीर्थंकर प्रतिकुम्भा के समय सन् १४२८ ई० मे प्रोसवाल महाजन गण माएं अकित है जिससे यह दिगबर जैन स्तभ ठहरता है। राज ने कराया था।
इसके समीप ही दक्षिण की ओर जो मन्दिर बना है वह ६. श्री ई० वी० हाबल : ने भी चित्तौड के केवल इस स्तभ से बहुत पीछे की रचना है और एक अन्य दोनो स्तम्भी का ही उल्लेख किया है। उन्होदे जैन कीति- विलुप्त मन्दिर के अवशेषो पर निर्मित है।" स्तम्भ को नवमी शताब्दी की हो रचना माना है
१२. डा० उमाकान्त प्रेमानन्द शाह की मान्यता है शिल्प और मित्र कला के क्षेत्र में भी इन गौरव कि इस कीर्तिस्तभ का निर्माण सन् ११०० ईस्वी के पास शाली जन कलाकारो ने स्वयं को उत्कृष्ट सिद्ध किया
पास हुआ तथा सन् १४५० मे इसका जीर्णोद्धार कराया वे निर्माता अद्भुत थे और उनकी निर्माण शैली के कारण
गया। उनका अनुमान है कि मूलतः यह एक मन्दिर के विश्व मे अद्वितीत है।
सामने का मान-स्तम्भ था और इसमें ऊपर एक सर्वती १०. श्री फर्ग्युसन : चित्तौड के जैन कीर्तिस्तम्भ को
भद्रिका (चतुर्म ख) जिन प्रतिमा स्थापित थी। 'कीतिममकालीन स्थापत्य मे एक उत्कृष्ट निर्माण मानते है ।
स्तभ' नाम से इसकी ख्याति बाद में हुई। इसकी समानता "चित्तौड में अल्लट का स्तम्भ बहुत सुन्दर है। स्तम्भ के
करने वाला दूसरा कोई स्तंभ देखने में नहीं आता।
१३. बाबू कामता प्रसाद जी के अनुसार-“कीतिसमीप कुछ समय पूर्व तक स्थित एक शिलालेख के अनु
स्तभ को स० ६५२ मे बघेरवाल जाति के जीजा या मार इस स्तम्भ का निर्माण सन् ८८६ ईस्वी में हुआ।
जीजक ने बनवाया था-उसका लेख कर्नल टॉड को निर्माण शैली से भी इसके नवमी शताब्दी में निर्मित होने
मिला था। प्रार्यालॉजिकल रिपोर्ट आफ वेस्टर्न इडिया में कोई सन्देह नहीं रह जाता। यह स्तम्भ प्रथम तीर्थकर
१६०६ मे २२०५ से २३०६ तक चित्तौड के शिलालेख आदिनाथ को समर्पित किया गया था। इस पर सैकडो
है, उनमें बघेरवाल के बनवाने का उल्लेख है।" तीर्थकर प्रतिमानो का अंकन हुआ है। यह लगभग ८०
बाबू जी ने ही दूसरे स्थान पर इसको "दिगबर जैन फीट ऊँचा है और नीचे से ऊपर तक विविध कलात्मक
बघेरवाल महाजन जीजा ने १२-१३वी शताब्दी मे प्रथम अकनो और मूर्तियो से सजा हुआ है। इस स्तम्भ को
तीर्थकर श्री आदिनाथ की प्रतिष्ठा मे बनवाने का उल्लेख कला का एक अति सुन्दर उदाहरण कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है"।"
१४. श्री गौरीशकर होराचन्द प्रोझा अपने ग्रन्थ११. डाक्टर सत्यप्रकाश : राजस्थान पुरातत्त्व विभाग "उदयपुर के राज्य का इतिहास" मे लिखते है :के निर्देशक है। उन्होने फग्र्युसन साहब की उपरोक्त -"जैन कोतिस्तभ प्राता है, जिसको दिगबर सम्प्रमान्यता से अपनी असहमति प्रकट करते हुए लिखा है-- दाय के बघेरवाल महाजन सानाय के पुत्र जीजा ने विक्रम १६. जी० एस० आचार्य, चित्तौड़ दुर्ग, पृ० ६५.
सवत् की चौदहवीं शताब्दीके उत्तराद्धं में बनवाया था।" (शिव प्रकाशन बीकानेर) २२. एज स्टोन स्पीक इन राजस्थान, पृ० ५. (चित्तौड़) २०. ई-बी० हावल, दि पार्ट हैरिटेज आफ इडिया, नवीन २३. स्टडीज इन जैन आर्ट, पृष्ठ २३. सस्करण, पृ० १७३.
२४. अनेकान्त वर्ष ८, पृष्ठ १४१ २१. श्री फर्ग्युसन हिस्ट्री आफ इडियन एड ईस्टन-प्राचि- २५. जैन तीर्थ और उनकी यात्रा, पृष्ठ ८७ टेक्चर, पृ० २५१.
२६. अनेकान्त वर्ष ८, पृष्ठ १४१