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________________ १४० अनेकान्त ३. श्री परसी ब्राउन : ने अपने ग्रन्थ में इस स्तम्भ इसका काल बारहवीं शताब्दी ईस्वी बताया गया है। का उल्लेख जिन शब्दों में किया है, उनका प्राशय इस ६. भारत सरकार के टूरिज्म विभाग ने राजस्थान प्रकार है-"विशाल स्तम्भों में सोलंकी काल का यह के दर्शनीय स्थलो की एक परिचय पुस्तिका निकाली है। सुनियोजित और असाधारण स्तम्भ बारहवी शताब्दी मे इसमे चित्तौड का उल्लेख करते हुए लिखा है-"किले निर्मित हुआ । यह स्तम्भ चित्तोड का प्राचीन स्तम्भ है। की मुख्य इमारते दो स्तम्भ हैं। ये कीर्ति स्तम्भ और (दूसरा स्तम्भ भी वही पर है जिसका निर्माण पन्द्रहवी जयस्तम्भ कहलाते है । इनमे कीर्तिस्तभ प्राचीन है । इसका शताब्दी में हुआ था)। मूलत. यह स्तम्भ एक मन्दिर के निर्माण एक जैन व्यापारी द्वारा बारहवी शताब्दी मे हुमा सामने बनाया गया कीर्तिस्तम्भ (Piller of Name) था, था। यह प्रथम तीर्थकर आदिनाथ को समर्पित है। यह पर वह मन्दिर अब पूर्णतः नष्ट हो गया है। इस स्तम्भ स्तम्भ नीचे से ऊपर तक विविध सुन्दर प्रतीकों के अकन के पास अब जो मन्दिर दिखाई देता है वह सभवतः उसी से तथा नग्न तीर्थकर मूर्तियो से सजाया गया है जो इस प्राचीन मन्दिर के अवशेषों पर चौदहवी शताब्दी मे बात का प्रतीक है कि यह स्तम्भ दिगबर जैनो का है। बनाया गया। यह पाठ मजिला स्तम्भ अस्सी फुट ऊँचा है । इसकी ८. श्री विजयशंकर श्रीवास्तव ने चित्तौडगढ़ महावीर सयोजना के समस्त जीवत अभिप्राय यह सिद्ध करते है जिनालय प्रशस्ति के उद्धरण पूर्वक स० १४६५ मे उक्त मन्दिर के जीर्णोद्धार की पुष्टि की है। इन्होने इस प्रशस्ति कि यहाँ के कलाकार केवल मन्दिर शैली के ही दास नही का प्रकाशन सदर्भ देते हुए इसकी भण्डारकर सूची का थे। वरन अावश्यकता पड़ने पर वे वैसे ही सुन्दर अन्य क्रमाक ७८१ तथा रायल एमियाटिक सोसाइटी जनरल अभिप्राय के प्रासाद निर्माण भी उतनी ही योग्यता से कर (बम्बई ब्रान्च) भाग २३ के पृष्ठ ४६ पर इसे प्रकाशित सकते थे। स्तम्भ की प्रत्येक मजिल को छज्जेदार बातायनों, प्रकोप्ठों, सुन्दर छतों और प्रासाद विधा के अन्य बताया है"। यह मन्दिर कीर्तिस्तम्भ के समीप स्थित कहा अनेक सशक्त अभिप्रायो से सजाया गया है। यह स्तम्भ गया है। सौन्दर्य और सुदृढ़ता का ज्वलत उदाहरण है। श्रीवास्तव जी ने इस घटना की पुष्टि करते हुए ४. श्री प्रानन्द के० कुमार स्वामी ने चित्तौड के अन्यत्र अपने लेख मे लिखा है-"चित्तौड़ दुर्ग स्थित जैन प्रसंग मे राणा कुम्भा द्वारा सन् १४४०-४८ मे निर्मित स्तम्भ के निकट वाले महावीर स्वामी के मन्दिर का बडे स्तम्भ की चर्चा करके लिखा है-" ऐसा ही किन्तु जीर्णोद्धार महाराणा कुम्भा के समय में वि. स. १४६५ मे इससे कुछ छोटा जन स्तम्भ भी चित्तौड में है जो बारहवी भोसवाल महाजन गुणराज ने कराया"।" शताब्दी का निर्मित है। ८. श्री जी० एस० प्राचार्य, राजस्थान परिचय ग्रथ५. माधुरी देसाई द्वारा भूला भाई मेमोरियल इस्टी- माला के प्रथम पुप्प मे इसी मान्यता का पोषण करते हैट्यूट बम्बई से प्रकाशित पुरातत्त्व सबन्धी चार्ट मे तो "सूरज पोल से उत्तर जैन कीर्तिस्तम्भ पाता है। इस चित्तौड से केवल एक ही चित्र प्रकाशित किया गया है। सात मजिले, ७५ फुट ऊंचे स्मारक का निर्माण दिगंबर उक्त चार्ट मे चित्तौड़ का प्रतिनिधित्व करने वाला यह सःप्रदाय के बधेरवाल महाजन सानाय के पुत्र जीजा ने चित्र इसी जैन कीर्तिस्तम्भ का है । सूची में इसे श्रीप्रल्लट १५. माधुरी देसाई, प्राचिटेक्चुरल एन्ड स्कल्पचरल मानू अथवा तन-रानी-स्तम्भ के नाम से उल्लिखित करके मेन्टस ग्राफ इंडिया, १९५४, सूची क्र. ३०. १३. पारमी ब्राउन, इडियन, आचिटेक्चर (बुद्धिस्ट एण्ड १६. इडिया (राजस्थान) फरवरी १६६२, पृ० ४६. हिन्दू) पृष्ठ १५०-१५१. १७. राजस्थान-भारती ( महाराणा कुम्भा विशेषांक) १४. हिस्ट्री आफ इडियन एड इन्डोनेशियन आर्ट, बाई मार्च १६६३ अंक १-२, पृ० १४६. आनन्द के. कुमार स्वामी, पृष्ठ १११. १८. वही पृ० ५६.
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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