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________________ चित्तौड़ के जंन कोतिस्तम्भ का निर्माण काल १४७ का संक्षिप्त परिचय प्राप्त कर लें कि इस स्तम्भ के सम्बन्ध में अपनी मान्यता इन शब्दों में व्यक्त की हैनिर्माण काल के विषय में पुरातत्त्व के पारखी किन “यहाँ सबसे प्राचीन मकान जैन कीर्तिस्तम्भ है जो विद्वानों ने क्या-क्या अनुमान लगाये है। यह जानकारी ८० फुट ऊँचा है, जिसको बघेरवाल महाजन जीजा ने प्राप्त करने के उपरान्त मैं अपनी मान्यता और उसके १२वी या १३वी शताब्दी मे जैनियो के प्रथम तीर्थंकर आधार प्रस्तुत करने का उपक्रम करूँगा। श्री आदिनाथ की प्रतिष्ठा में बनवाया"। ... शासकीय प्रकाशन' जनरल ए. कनिघम ने राणा कुम्भा के जय स्तम्भ के नीचे जो पुराना मदिर उल्लेख किया है कि यह कीर्तिस्तम्भ ७५।।। फुट ऊंचा ३२ है उसके लेख से प्रगट है कि गुजरात के सोलकी राजा फुट व्यास का नीचे वा १५ फुट ऊपर है। यह बहुत कुमारपाल ने इस पर्वत के दर्शन किये थे। प्राचीन है। इसके नीचे एक पाषाण खण्ड मिला था। । यदि इस कीर्तिस्तम्भ का सम्बन्ध मूल में किसी जिसमें लेख था-"श्री आदिनाथ व २४ जिनेश्वर, पुण्ड- मन्दिर से होगा तो यह मन्दिर शायद उस स्थान पर रीक, गणेश सूर्य और नवग्रह तुम्हारी रक्षा करं। सं० होगा जहाँ वर्तमान में पूर्व की ओर अब पाषाण का ढेर १५२ वैशाख सुदी गुरुवार'। है"। जो श्वेताम्बर मन्दिर अब इस स्तम्भ के पास पार्यालॉजिकल सर्वे की ही रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण-पूर्व में है, उसका सम्बन्ध इस स्तम्भ से नहीं है "जैन कीर्तिस्तम्भ बहुत पुरानी इमारत है जो शायद सन् क्योंकि वह ३५० वर्ष पीछे बना। ११०० के करीब बनी थी। इस रिपोर्ट में यह भी अनु- डा० जी० आर० भण्डारकर के कथनानुसार दक्षिण मान लगाया गया है कि राजा कुमारपाल के राज्यकाल कालेज लाइब्रेरी में एक प्रशस्ति है जिसको-"श्री चित्र(बारहवी शताब्दी के मध्य) मे इस पहाड़ पर बहुत से कूट दुर्ग महावीर प्रसाद प्रशस्ति” कहते हैं। यह प्रशस्ति दिगम्बर जैनियो का निवास रहा होगा। कहती है कि यह कीति स्तम्भ मूल में सन् ११०० के इस कीति-स्तम्भ के निर्माता का उल्लेख भी शाम अनुमान रचा गया था, किन्तु राणा कुम्भा के समय में कीय अभिलेखों में कई प्रकार से मिलता है। एक लेख के सन् १४५० के आसपास इसका जीर्णोद्धार हुआ। अनुसार राजा कुमारपाल ने इसका निर्माण कराया था। ___ यह प्रशस्ति प्राचीन है जिसको चारित्रगणि ने वि० जब कि दूसरे दो अभिलेखों में इसे एक बघेरवाल महा स. १४६५ में सकलित किया तथा वि० स० १५०८ मे जन जीजा या जीजक द्वारा निर्मित कहा गया है। इसकी नकल की गई। प्रशस्ति लेख में किसी शिलालेख २.श्री ब० शीतल प्रसाद जो : ब्रह्मचारी जी ने इस की नकल है जो श्री महावीर स्वामी के जैन मन्दिर में २. ये उद्धरण ब्र० शीतल प्रसाद द्वारा सपादित- मौजूद था तथा कीर्तिस्तम्भ उसके सामने खड़ा था । यही "मध्यप्रान्त, मध्यभारत और राजपूताना के प्राचीन न्त, मव्यभारत पार राजपूताना के प्राचान लेख यह भी कहता है कि धर्मात्मा कुमारपाल ने यह जैन स्मारक" नामक पुस्तक से लिए गये है। ऊँची इमारत कीर्तिस्तम्भ नाम की बनवाई। ३. प्रार्यालॉजिकल सर्वे आफ इडिया रिपोर्ट, जिल्द २३, जो मूर्तियां इस कीर्तिस्तम्भ पर बनी हैं वे सब पृ० १०८. दिगंबर जैन हैं । यदि कुमार पाल ने इसे बनवाया हो तो ४. प्रायोलॉजिकल सर्वे ग्राफ इंडिया, फार १९०५-६, पृष्ठ ४३. यह मानना पडेगा कि कुमारपाल या तो दिगम्बर जैन होगा या दिगम्बर जैन धर्म का प्रेमी होगा। ५. It belongs to the Digamber Jains, many of whom seem to have been upon the६. मध्यप्रान्त, मध्यभारत और राजपूताना के प्राचीन hill in Kumarpals' time. जैन स्मारक, पृष्ठ १३४ ६. इम्पीरियल गजेटियर ग्राफ इडिया (राजपूताना)१९०८ १०. वही पृष्ठ १३५ ७. प्रार्यालॉजिकल सर्वे आफ इडिया १९०५-६ पृ. ४६. ११. वही पृष्ठ १३६ ८. A.P.R. of W. India 1906. १२. वही पृष्ठ १३७
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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