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________________ चित्तौड़ के जैन कीर्तिस्तम्भ का निर्माण काल श्री नीरज जैन चित्तौड़ के किले में निर्मित जैन कीर्तिस्तम्भ अनेक प्रागे करूँगा। इधर पिछले बीस-पच्चीस वर्षों से कतिपय दृष्टियो से हमारा एक महत्त्वपूर्ण, ऐतिहासिक और प्रभा- शोधक विद्वानो ने उपरोक्त मान्यता की अवहेलना करके वना जनक धर्मायतन है। इसका महत्त्व तब और बढ यह तथ्य स्थापित करने का प्रयास किया है कि इस स्तम्भ जाता है जब हमें ज्ञात होता है कि इसी किले में निर्मित का रचना काल बारहवी शताब्दी न होकर पद्रहवी या राणा कुम्भा का बहु प्रसिद्ध नौ मंजिला विजय स्तम्भ, सोलहवी शताब्दी ईस्वी है। यद्यपि इस नवीन स्थापना इसी जैन कीर्ति स्तभ से प्रेरणा लेकर, इसके निर्माण के का समर्थन साहित्य या कला क्षेत्र के किसी भी कोने से बहत समय बाद बनाया गया। राणा कुम्भा ने इस स्तम्भ नहीं हो पा रहा है परन्तु फिर भी प्रस्तुत किये उक्त की अपेक्षा अपने स्तम्भ में कुछ परिष्कार करने का भी स्थापनाओं के साथ आधार भी प्रस्तुत किये गये है अतः इसी के आधार पर प्रयास किया। वास्तविकता की कसौटी पर उनका परीक्षण प्रावश्यक है। जैन मन्दिरों के सामने मानस्तम्भ बनाने की परम्परा अनेकान्त वर्ष २१ के जून ६८ के प्रक मे पृष्ठ ८३ बहुत प्राचीन है। तीर्थकरो के समवशरण के सामने पर श्रीमान् प० नेमचन्द धन्नूसा जैन का एक लेख इस वणित मानस्तम्भ से यह परम्परा चली है। जैन मान कीर्तिस्तम्भ के निर्माण काल के सम्बन्ध में प्रकाशित हा स्तम्भो की शृखला मे कालक्रम से चित्तौड़ का यह स्तम्भ है। इस लेख मे लेखक ने एक महत्त्वपूर्ण प्रतिमा लेख का भले ही प्राचीनतम न ठहरे और स्थापत्य के कलागत उद्धरण देकर श्री मुनि कातिसागर के एक लेखाश (अनेमूल्यांकन मे भी चाहे इसे सर्वोत्तम न माना जाय परन्तु कान्त वर्ष ८ पृ० १४२) का परिष्कार करने का उद्यम अपनी अद्वितीय और आकाश-विलासिनी ऊंचाई के कारण किया है तथा इस स्तम्भ की शैली आदि के प्राधार पर निर्माण योजना के सौष्ठव और अनुपात की विशिष्टता के भी इसके निर्माण काल की ईसा की बारहवी शताब्दी के कारण तथा समस्त समकालीन स्थापत्य के बीच अपनी पासपास की मान्यता को ही समर्थन देना चाहा है। विविधता के कारण यह स्तम्भ देश के प्रायः सभी उप लेखक ने स्पष्टता पूर्वक स्वीकार किया है कि उन्हे स्तम्भ लब्ध जैन मान-स्तम्भों में विशिष्ट, श्रेष्ठ और महत्त्व के निरीक्षण का अवसर प्राप्त नही हुआ है और मुनि जी पूर्ण है। के लेखवाला अनेकान्त का उक्त प्रक भी उनके सामने भारतीय पुरा विद्या और पुरातत्त्व के प्रायः सभी . नहीं है। निष्पक्ष ज्ञाताओं ने इस स्तम्भ को बारहवी शताब्दी ईस्वी ___ यह मात्र प्रसग की बात है कि अपने गत राजस्थान या उसके पूर्व की रचना माना है। स्तम्भ की निर्माण प्रवास मे इसी सितम्बर मास मे मुझे चित्तौड़ की यात्रा शैली और उस पर अकित कला के आधार से तथा अन्य का सौभाग्य मिला था। अनेकान्त के सभी पिछले अक भी अनेक उद्धरणों और प्राधारों से इन विद्वानों ने अपने इन मेरे सग्रह मे है और इस विषय की कुछ और सामग्री भी अनुमानों की पुष्टि यथा स्थान की है जिसका उल्लेख मै मेरे पास उपलब्ध है, इसलिए मैं श्री पं० नेमचन्द धन्नूसा १. श्री अगरचन्द नाहटा, अनेकान्त वर्ष ८ पृ० १४०. की आकाक्षा के अनुरूप इस सम्बन्ध में यह लेख लिखने "चित्तौड़ के जैन कीर्तिस्तम्भ का निर्माण काल एवं का साहस कर रहा हूँ। निर्माता" मैं समझता हूँ कि पहिले हम एक दृष्टि में इस बात
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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