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________________ साहित्य-संगोष्ठो विवरण १२ अक्टूबर से १४ अक्टूबर तक वाराणसी में होने के ग्रन्थ भडारों की सूची का कार्य किया उससे साहित्यिक वाले प्राच्यविद्या सम्मेलन के अवसर पर भारतीय ज्ञान विद्वानों को शोध करने में सहायता मिली। अब ग्रन्थमूची पीठ द्वाग ११ अक्टूबर को साहित्य संगोष्ठी का आयोजन का पाचवा भाग प्रकाशित होकर पापकी सेवामें पहुंचेगा। किया गया था । ज्ञानपीठ के सस्थापक साहू शान्तिप्रसाद डा. विमलप्रकाश जी ने डा. हीरालाल जी के सुझावों को जी ने गोष्ठी का प्रारभ किया और डा. ए. एन. र डा. ए. एन. महत्त्वपूर्ण बतलाते हुए कहा कि डा. साहिब ने उन सुझावों उपाध्ये ने अध्यक्षता की। डा० साहब के अग्रेजी भाषण मे अपने जीवन के अनुभवोंका निचोड उपस्थित किया है। के बाद डा. हीरालालजी के द्वारा भेजे गये सुझाव उन पर अमल करनेसे विक्रीकी समस्याभी हल हो जायगी। सुनाए गये । सुझाव महत्त्वपूर्ण और उपयोगी है । समागत इस तरह उक्त सभी विद्वानो ने डा. हीरालाल जी सभी विद्वानो ने उन्हें पसन्द किया। इतना ही नहीं किन्तु समसानो को मान्य किया। मैने भी उनकी मगहना सभी विद्वानो ने अपने भाषणो में उनकी अनुमोदना की। करते हुए बतलाया कि अब तक तक दि. जैन साहित्य की सूझाव अभी अप्रकाशित है । जिन विद्वानो ने भाषण दिया कोई मुकम्मिल सूची नही है । दि. जैन भण्डागे में प्रकाउनके नाम निम्न प्रकार है :-५० कैलाशचन्द जी सि० शित अप्रकाशित-ग्रन्थो की संख्या दश हजार से कम नही शास्त्री, डा. देवेन्द्रकुमारजी, डा० नेमचन्द जी शास्त्री, डा० राजाराम जी, ५० वशीधरजी एम ए, डा० नथमल है । किसी-किसी कविकी तो छोटी बडी ६० साठ रचनाए टाटिया, डा. हरीन्द्रभूषण जी, डा. मोहनलाल जी मेहता, तक है। उनकी सूची बनने पर शोधक विद्वानों को अनुडा. विमलप्रकाश जी जबलपुर, डा० दरबारीलाल जी १० सन्धान करने मे सुविधा हो सकती है। गोपीलाल 'अमर', प्रो० भागचन्दजी इटारसी, डा. कस्तूर दूसरे, जैन मन्दिर प्रौर मूर्ति लेखा का प्रामाणिक संकलन, अप्रकाशित तया प्रकाशित ग्रन्थो की पाद्यन्त चन्द कासलीवाल, प. हीरालालजी मि. शा. श्री नीरजजी प्रशस्तियो का सकलन, प्रकाशन और जैन कलाविषयक डा० भागचन्दजी नागपुर और परमानन्द शास्त्री आदि। १० कैलाशचन्द जी सि० शास्त्री ने अपने भाषण में प्रामाणिक पुस्तक का निर्माण तथा माधुनिक पटनक्रम की डा. हीरालाल जी के मुझावो का स्वागत करते हुए यह पुस्तक का भी निर्माण किया जाय । कहा कि इस पीढी के वरिष्ठ विद्वान डा. हीरालाल जी साहु शान्तिप्रसादजी ने अपने भाषणमे महत्वपूर्ण विचार और डा० ए एन उपाध्ये जी अब वृद्ध हो चले है । अत. उपस्थित किये । भारतीय ज्ञानपीठ ने साहित्य-सगोष्ठीका एव नई पीढी के विद्वानों को उनके द्वारा की गई महान् केवल प्रायोजनही नही किया प्रस्तुत उसकी समुचित व्यवस्था साहित्यिक सेवायो को ध्यान में रखते हए आगे बढ़ने का भी की। साह दम्पति उममे स्वय शामिल हुए, और भोजप्रयत्न करना चाहिये । ५० वशीधर जी ने डा. हीरालाल नादि की सुन्दर व्यवस्था की। विद्वानो के भापणी के जी के सुझावो की सराहना की, और ग्रन्थो की विक्री । अनन्तर डा. ए. एन. उपाध्ये ने भाषणो और योजना पर आदि सम्बन्ध में होने वाली अमुविधा का उल्लेख करते अपने विचार अंग्रेजीमे व्यक्त किये । इसके लिये एक कमेटी हुए कहा कि ज्ञानपीट के माध्यम से विक्री का प्रबन्ध का निर्माणभी किया गया, जो ग्रन्थोके प्रकाशन और विक्री सुचारुरूप से हो सकता है। प्रो. कुलभूषण जी ने अपने के सम्बन्धमे योजनाको कार्यान्वित करनेका सुझाव देगी। भाषण में विक्री की समस्या को अत्यन्त जटिल बनलाते भारतीय ज्ञानपीठ के ब्वयस्थापक डा गोकुलचन्दजी इम हुये कहा कि जीवराज ग्रन्थमाला शोलापुर में दो लाख कार्यम अत्यन्त व्यस्त दिखाई देते थे। इस योजनाको सम्पन्न रुपये की पुस्तके विक्रीके लिए पड़ी हुई है। मैने इसके लिये करने में उन्होंने जो अथक श्रम किया उसीका परिणाम है बहुन प्रयत्न किया, किन्नु तक प्रभी उसमें पूरी सफलता कि गोष्ठी का काय अच्छ कि गोष्ठी का कार्य अच्छी तरह से सम्पन्न हो सका। नही मिली, यदि सारी पुस्तक बिक जाय तो अन्य साहित्य साहित्य संगोष्ठी का यह कार्य अत्यन्त सराहनीय रहा है। के प्रकाशन में सुविधा हो सकती है। डा. कस्तुरचन्द जी प्राशा है भारतीय ज्ञानपीठ प्रागे होने वाले प्राच्य विद्या कासलीवाल ने डा. हीरालाल जी के सुझावों को मान्य सम्मेलनो के समय इसी तरह साहित्य संगोष्ठी को सफल करते हुए कहा कि मैने महावीरक्षेत्र की प्रोर से राजस्थान बनाने का प्रयत्न करती रहेगी। -परमानन्द शास्त्री
SR No.538021
Book TitleAnekant 1968 Book 21 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size17 MB
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